रविवार, 16 दिसंबर 2012

सोलह दिसम्बर.......... कहां गये वो लोग......

आज सोलह दिसम्बर है, आज का दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है... आज का दिन अपनी सेना पर गर्व करनें का दिन है... आज का दिन उस कीर्तिमान को याद करनें का दिन है जब ९५००० पाकिस्तानी सैनिकों नें घुटनें टेक कर आत्मसमर्पण किया और सम्पूर्ण विश्व नें हमारी शक्ति को जाना और पहचाना। आईए उस वाक्ये को थोडा विस्तार से पढें.... 

पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान एक सिलसिलेवार तरीके से लगभग अत्याचार, नरसंहार और दमन की योजना पर अमल कर रहा था, इसके कारण उस क्षेत्र से लगभग दस लाख लोगों नें भारत के पूर्वी राज्यों में शरणार्थी के रुप में आना शुरु कर दिया। पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय में इन शरणार्थी शिविरों की भीड बन चुकी थी। भारत उस समय एक खस्ताहाल आर्थिक देश था, और इन शरणार्थियों को किसी भी प्रकार से शरण देनें की स्थिति में नहीं था। 

भारतीय सरकार नें इस मुद्दे को बार बार अंतराष्ट्रीय मंचों पर उठाया, लेकिन कोई सुनवाई न होती देख २७ मार्च १९७१ को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी नें पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता आन्दोलन को अपना पूर्ण समर्थन देनें की घोषणा कर दी। उस समय का यह फ़ैसला एक बडी कूटनीतिक विजय थी क्योंकी इसके बाद सभी देशों नें भारत को गंभीरता से लेना शुरु किया.... सच कहें तो इसके पहले भारत की कोई सुनता नहीं था। 

इन्दिरा गांधी नें पाकिस्तान के खूनी दमन का अन्त करनें के लिए बांग्ला मुक्ति वाहिनी को समर्थन देनें का फ़ैसला किया।  नवम्बर तक यह निश्चित हो चुका था की लडाई होकर रहेगी....  इसी महीनें पाकिस्तानी सेना नें लाहौर और करांची जैसे शहरों में मार्च किया और इस बात की घोषणा की कि वह हिन्दुस्तान पर विजय प्राप्त करेंगे और अपनी जनता को हिन्दुस्तान तोहफ़े में देंगे।  

३ दिसम्बर को  लडाई शुरु हो चुकी थी, पाकिस्तान की वायूसेना नें उत्तर-पश्चिमी भारत में बम गिरानें शुरु कर दिए थे। उस समय ताज महल की रक्षा के लिए जंगल में सफ़ेद संरचना बना दी गई थी ताकि ताज-महल को बचाया जा सके। पाकिस्तानी आपरेशन के प्रमुख चंगेज़ खान नें खैरात में मिले इज़राईली जहाज़ों से हमला बोल दिया था। इस हमले के बाद भारत नें पूरा जवाब दिया और पाकिस्तानी जहाजो को खदेड कर बाहर किया। इस वार में नुकसान भारत का हुआ था और अब जवाब देनें की बारी भारत की थी। 

भारत नें पाकिस्तान के हर नापाक प्रश्न का उत्तर दिया, हमारी सेना नें जल, थल और वायू हर जगह पाकिस्तान को हराया और फ़िर सोलह दिसम्बर को वह दिन आया जब पाकिस्तान नें घुटनें टेक दिए... और भारत के समक्ष ९५००० सैनिकों के साथ आत्म-समर्पण करनें वाला यह चित्र आया। 


इस चित्र नें दुनियां को बता दिया की भारत को हल्के में लेना किसी के लिए भी अच्छा नहीं होगा... और भारत यदि सहिष्णु देश है तो वह हमला भी कर सकता है और लडाई जीत भी सकता है। 

कुछ अन्य चित्र: 












मित्रों इसके बाद की कहानी कहना ज्यादा ज़रूरी है, क्योंकी शहीदों पर होनें वाली राजनीति मुझे बहुत विचलित करती है। यहां हम किसी राजनीतिक दल की वकालत करनें या किसी को नीचा दिखानें की बात नहीं कर रहे हैं.... हम बात कर रहे हैं उन ५६ भारतीय बंदियों की जो इस युद्ध के बाद से गायब हो गये....  बाद में टूटती खबरे आईं की वह पाकिस्तान की किसी जेल में बंद हैं और अमानवीय यातनाएं झेलनें के लिये मज़बूर हैं। सरकारें अपनी पीठ ठोकती रहीं और किसी नें उन सैनिकों को घर वापसी के लिए कोई मज़बूत कदम नहीं उठाए... किसी भी सरकार नें कोई राजनीतिक और कूटनीतिक पहल नहीं की। अंतराष्ट्रीय जगत तो छोडिये कभी दोनो पक्षों की वार्ता में इन सैनिकों का ज़िक्र नहीं मिलता। आखिर हमारी मजबूरी क्या थी.... आखिर अमेरिका के पिट्ठू पाकिस्तान को धूल चटानें के बाद भारत पर कोई अंतराष्ट्रीय दवाब था... आखिर उस समय की हकीकत क्या थी... इस प्रश्न नें मुझे सोनें नहीं दिया तो मैनें कुछ अन्य पुस्तकों और जनरलों को खंगाला.... उस समय अंतराष्ट्रीय दवाब इस हद तक था की अमेरिका भारत के खिलाफ़ लामबन्दी कर रहा था और यदि हिन्दुस्तानी सेना पाकिस्तान से बाहर नहीं आती तो फ़िर अमेरिकी दखलंदाज़ी हो सकती थी। अब यह सच है या झूठ लेकिन उन ५६ सैनिकों और उनके परिवारों के प्रति मेरी पूरी संवेदना है.... कम से कम कुछ जांच कराई जाती और कारण देशवासियों को बताया जाता की आखिर क्यों हमनें घुटनें टेके और हमनें क्यों उनकी घर वापसी के प्रयास नहीं किए.......  

क्यों.... आखिर कहां गये वो लोग..... 

-देव