बुधवार, 30 जनवरी 2013

आखिरी वसीयतनामा और आज का भारत


मित्रों, आज की कांग्रेस जो खुद को गांधी वादी कहती है और शहरी करण और ग्लोबलाईज़ेशन के ज़रिए देश की मुद्रा की कीमत को रसातल में पहुंचा कर खुद की तरक्की पर स्वयं ही खुश होती है... उस गांधी की विचारधारा की सबसे अधिक दुर्दशा कांग्रेस ने ही तो की है।  आज स्वदेशी जैसे मुद्दे कांग्रेस को टीस की तरह चुभते हैं, कोई असली गांधीवादी विचारधारा का व्यक्ति आ जाए तो कांग्रेस को कापीराईट उल्लंघन जैसा लगता है। मित्रों आईए आपको गांधीजी की आखिरी चिट्ठी से रूबरू कराते हैं। यह आखिरी वसीयतनामें के तौर पर गांधीजी के द्वारा देश को दी गई आखिरी विरासत थी। इसमें गांधीजी नें स्वदेशी, ग्रामीण विकास, पंचायत इकाई और आत्मनिर्भरता की बात की थी, लेकिन नेहरू की नीति में विकास केवल शहरीकरण और उद्योगीकरण से ही हो सकता था। वैसे दिक्कत यह भी रही की हम ना तो शहरीकरण में ही विकास कर पाए और न ही ग्रामीण भारत को ही बचा कर रख पाए। हमनें शहरों के विकास के लिए ग्रामीण भारत का दोहन किया और जो कुछ भी योजनाएं बनी उसके पैसे को कुर्ता पैजामा खा गया...  भारत भ्रष्ट बना और दुनिया के नक्शे पर हमारी पहचान एक गरीब देश की ही रही। सोने की चिडिया..... थी... आज तो अजीब सा भारत है। लीजिए इस आखिरी वसीयतनामें पर नज़र डालिए और सोचिए हम कहां पहुंच गये?
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गांधीजी का आखिरी वसीयतनामा
[कांग्रेस के नये विधान का नीचे दिया जा रहा मसविदा गांधीजी ने 29 जनवरी, 1948 को अपनी मृत्‍यु के एक ही दिन पहले बनाया था। यह उनका अन्तिम लेख था। इसलिए इसे उनका आखिरी वसीयतनामा कहा जा सकता है। ]
देश का बंटवारा होते हुए भी, भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस द्धारा मुहैया किये गये साधनों के जरिये हिन्‍दुस्‍तान को आजादी मिल जाने के कारण मौजूदा स्‍वरूप वाली कांग्रेस का काम अब खतम हुआ- यानी प्रचार के वाहन और धारा सभा की प्रवूत्ति चलाने वाले तंत्र के नाते उसकी उपयोगिता अब समाप्‍त हो गई है। शहरों और कस्‍बों से भिन्‍न उसके सात लाख गांवो की दृष्टि से हिन्‍दुस्‍तानी की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। लोकशाही के मकसद की तरफ हिन्‍दुस्‍तान की प्रगति के दरमियान फौजी सत्‍ता पर मुल्‍की सत्‍ता को प्रधानता देने की लडा़ई अनिवार्य है। कांग्रेस को हमें राजनीतिक पार्टियों और साम्‍प्रदायिक संस्‍थाओं के साथ की गन्‍दी होड़ से बचाना चाहिये। इन और ऐसे ही दूसरे कारणों से आखिल भारत कांग्रेस कमेटी के नीचे दिये हुए नियमों के मुताबिक अपनी मौजूदा संस्‍था को तोड़ने और लोक-सेवक- संघ के रूप में प्रकट होने का निश्‍चय करे। जरूरत के मुताबिक इन नियमों में फेर फार करने का इस संघ को अधिकार रहेगा।
गांववाले या गांववालों के जैसी मनोवृत्ति वाले पांच वयस्‍क पुरूषों या स्त्रियों की बनी हुई हर एक पंचायत एक इकाई बनेगी।
पास-पास की ऐसी हर दो पंचायतों की, उन्‍हीं में से चुने हुए एक नेता की रहनुमाई में, एक काम करने वाली पार्टी बनेगी।
जब ऐसी 100 पंचायतें बन जायं, तब पहले दरजे के पचास नेता अपने में से दूसरे दरजे का एक नेता चुनें और इस तरह पहले दरजे का नेता दूसरे दरजे के नेता के मातहत काम करे। दो सौ पंचायतों के ऐसे जोड़ कायम करना तब तक जारी रखा जाय, जब तक कि वे पूरे हिन्‍दुस्‍तान को न ढक लें। और बाद में कायम की गई पंचायतों को हर एक समूह पहले की तरह दूसरे दरजे का नेता चुनता जाय। दूसरे दरजे के नेता सारे हिन्‍दुस्‍तान के लिये सम्मिलित रीति से काम करें ओर अपने- अपने प्रदेशों में अलग- अलग काम करें। जब जरूरत महसूस तब दूसरे दरजे के नेता अपने में से एक मुखिया चुनें, और वह मुखिया चुनने वाले चाहें तब तक सब समूहों को व्‍यवस्थित करके उनकी रहनुमाई करें।
(प्रान्‍तों या जिलों की अन्तिम अभी तय न होने से सेवकों के इन समूह को प्रान्‍तीय जिला समितियों में बाटने की कोशिश नहीं की गई। और, किसी भी वक्‍त बनाये हुए समूहों को सारे हिन्‍दुस्‍तान में काम करने का अधिकार रहेगा। यह याद रखा जाय कि सेवकों के इस समुदाय को अधिकार या सत्‍ता अपने उन स्‍वामियों से यानी सारे हिन्‍दुस्‍तान की प्रजा से मिलती है, जिसकी उन्‍होंने अपनी इच्‍छा से और होशियारी से सेवा की है।)
1. हर एक सेवक अपने हाथ- काते सूत की या चरखा- सेघ द्धारा प्रमाणित खादी हमेशा पहनने वाला और नशीली चीजों से दूर रहने वाला होना चाहिये। अगर वह हिन्‍दू है तो उसे अपने में से और अपने परिवार में से हर किस्‍म की छुआछूत दूर करनी चाहिये और जातियों के बीच एकता के, सब धर्मों के प्रति समभाव के और जाति, धर्म या स्‍त्री- पुरूष के किसी भेदभाव के बिना सबके लिए समान अवसर और समान दरजे के आदर्श में वि श्‍वास रखने वाला होना चाहिये।
2. अपने कार्यक्षेत्र में उसे हर एक गांववालों के निजी संसर्ग में रहना चाहिये।
3. गांववालों में से वह कार्यकर्ता चुनेगा और उन्‍हें तालीम देगा। इन सबका वह रजिस्‍टर रखेगा।
4. वह अपने रोजाना के काम का रेकार्ड रखेगा।
5. वह गांवों को इस तरह संगठित करेगा कि वे अपनी खेती और गृह- उद्योगों द्धारा स्‍वंयपूर्ण और स्‍वावलम्‍बी बनें।
6. गांववालों को वह सफाई और तन्‍दुरूस्‍ती की तालीम देगा और उनकी बीमारी व रोगों को रोकने के लिए सारे उपाय काम में लायेगा।
7. हिन्‍दुस्‍तानी तालीमी संघ की नीति के मुताबित नई तालीम के आधार पर वह गांववालों की पैदा होने से मरने तक की सारी शिक्षा का प्रबंध करेगा।
8. जिनके नाम मतदाताओं की सरकारी यादी में न आ पायें हों, उनके नाम वह उसमें दर्ज करायेगा।
9. जिन्‍होंने मत देने के अधिकार के लिए जरूरी योग्‍यता हासिल न की हो, उन्‍हें वह योग्‍यता हासिल करने के लिए प्रोत्‍साहन देगा।
10. ऊपर बताये हुए और समय- समय पर बढा़ये हुए उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए, योग्‍य कर्त्‍तव्‍य- पालन करने की दृष्टि से, संघ के द्धारा तैयार किये गये नियमों के अनुसार वह स्‍वयं तालीम लेगा और योग्‍य बनेगा। संघ नीचे की स्‍वाधीन को मान्‍यता देगा

1. आखिल भारत चरखा- संघ
2. आखिल भारत ग्रामोंद्योग संघ
3. हिन्‍दुस्‍तानी तालीमी संघ
4. हरिजन-सेवक-संघ
5. गोसेवा- संघ

संघ अपना मकसद पूरा करने के लिए गासंववालों से और दूसरों से चंदा लेगा। गरीब लोगों का पैसा इकट्ठा करने पर खास जोर दिया जायेगा।
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गुरुवार, 24 जनवरी 2013

लेफ़्ट, राईट, सेंटर और हम...

मित्रों, लेफ़्ट राईट और सेंटर... तीनों के बारह बजे हुए हैं। सच कहा जाए तो जो कुछ यह सभी दल कर रहे हैं और जिस प्रकार की क्षवि प्रस्तुत कर रहे हैं वह दुर्भाग्यपूर्ण है। चाहे कुछ भी कहें लेकिन दोनों बडे दलों पर परिवार हावी हैं और रिमोट से चलायमान होना इनकी नियति है। ऐसे में देश आखिर करे तो क्या करे? 

कांग्रेस पर परिवार वादी होनें का आरोप लगता है और वह वाकई में हिन्दुस्तान की दुर्दशा के लिए बडे हद तक ज़िम्मेदार है, लेकिन विकल्प हीनता की स्थिति में आखिर जनता करे भी तो क्या करे.... वाजपयी जैसे व्यक्तित्व के कारण भाजपा सत्ता शिखर तक पहुंची लेकिन क्या वह स्थिति अभी भी है? भानुमती का पिटारा बन चुके एनडीए के सभी दल कैसी मिसाल प्रस्तुत कर रहे है? आखिर राजनीति किस रसातल में जा रही है? केन्द्रीय गॄह मंत्री जब आरएसएस और भाजपा को भगवा आतंकवाद से जोड देते हैं और खुद को हिन्दुत्व लाईन में गिननें वाली भाजपा उसका पुरज़ोर विरोध करनें के स्थान पर इस बात को भी तय नहीं कर पाती की उसके शिखर पर कौन बैठेगा? मेरे मन में खिन्नता है क्योंकी मैं स्वयं संघ से जुडा रहा हूं और संघ की पॄष्ठभूमि राष्ट्रवादी और अखंड भारत की पक्षधर रही है। संघ का क्या योगदान है यह किसी कांग्रेसी को बतानें की आवश्यकता नहीं है। यह बात स्वय़ं कांग्रेस भी मानेगी लेकिन यह उसकी वोट बैंक की राजनीति है जो दिग्गी राजा हाफ़िज़ सईद जैसे आतंकी को साहब और शिंदे साहब संघ को आतंकी घोषित कर देते हैं। यह राजनीति की सबसे निम्न स्तरीय तुलनाएं हैं। 

मित्रों जब कांग्रेस को अंग्रेजों से सत्ता मिली तो विरासत में कई टिप्स भी मिलें... मतलब हिन्दुस्तानियों पर राज करनें का मूल मंत्र "बांटों और राज किए जाओ" का उसनें आत्म सात किया। इसीलिए तो कभी एक साथ एक मंच पर आनें का और एकीकरण का कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। उसका नतीज़ा यह है की आज भी हम बंटे हुए हैं.... कोई उत्तर भारतीय है, कोई दक्षिण भारतीय... कोई हिन्दु है, मुसलमान है और सिख है, जैन हैं, इसाई और पारसी हैं... यह सभी वोटर हैं... मुसलमान रीझ जाएं उसके लिए कांग्रेसी किसी भी सीमा तक जानें के लिए तैयार हैं। समाजवादी पार्टी की हरकतें तो वाकई निन्दनीय हैं।

इस लिंक को देखिए:

समाजवादी पार्टी आरोपियों को छुडवानें के लिए इस हद तक गई? भला हो न्यायप्रणाली का जो आज भी सक्रिय है, अन्यथा न जानें क्या हो गया होता। अब संसद और न्यायिक व्यवस्था में टकराव की स्थिति बनती दीख रही है,  न्यायालयें अब उन मामलें में भी फ़ैसले देती दीख रहीं है जो पहले दीगर होती थीं.. इनके पीछे कारण हमारी पंगु होती राजनीतिक व्यवस्था हैं। मेरी आज तक समझ में नहीं आया की आखिर मुस्लिम भारत में केवल वोट बैंक क्यों हैं? आखिर उनके जीवन प्रणाली में कोई फ़ायदा आया आज तक उनके चुनाव से? फ़िर क्यों न वह जातिय समीकरण से उपर उठकर सकारात्मक रूप से अपनें विकास को देखे? आखिर दिक्कत क्या है... आखिर मुस्लिम वोटर को रिझानें के लिए हाफ़िज़ सईद को "साहब" से संबोधित करना कहां तक न्यायसंगत है।

मित्रों हिन्दुस्तान की आज़ादी से लेकर आज तक हमनें कभी इंसान नहीं गिने, राजनीति के इस रूप का हमनें कभी विरोध नहीं किया। हम स्वयं इसी गुणा-गणित में लगे रहे की किस क्षेत्र की जातिय स्थिति क्या है और वहां फ़लां फ़लां पार्टी नें इस जाति का उम्मीदवार खडा किया है तो क्या स्थिति बनेंगी... क्या हम उम्मीदवार की योग्यता को देखते हैं? यदि नहीं तो फ़िर हमें बोलनें का भी कोई अधिकार नहीं... मैं रोज कई लोगों से मिलता हूं और उनमें से लगभग सभी आजकल की स्थिति से दुखी हैं... सरकार को गाली देते हुए थकते नहीं... और न जानें कैसे कैसे विश्लेशण करते हैं... मैने केवल इतना पूछा की क्या आपका वोटिंग लिस्ट में नाम है... तो उत्तर देते हैं की वोटिंग देने में उनका विश्वास नहीं.. मित्रों यह एक विचित्र विडम्बना है क्योंकी भारत की राजनीति यदि आज इस स्तर तक पहुंची है तो फ़िर उसे उठाने के लिए वोटिंग प्रणाली में विश्वास आना ज़रूरी है। यदि शत-प्रतिशत चुनाव हो तो संसद का एक अलग ही रंग होगा... वाकई में यदि ऐसा हो तो फ़िर एक ही दिन में स्थिति उलट हो जाएगी। तिहाड के योग्य व्यक्ति जो आज संसद में पहुंचे हैं तो वह अपनें असल ठिकानें पहुंच जाएंगे... जातिगत राजनीति करनें वाले दल दुम दबा के निकल लेंगे। हाफ़िज़ सईद को "साहेब" कहनें वाले मूंह काला कराके किसी कोनें में दुबक के बैठे मिलेंगे।

विकास यात्रा में हम बाकी सभी देशों से पिछड गये हैं, चीन आज हमसे कहीं आगे है... हम आई-टी में आगे होनें का दम ज़रूर भरते हैं लेकिन उसमें भी हम टेक्नोलोजी के उपभोक्ता अधिक हैं.. हम कुछ नया बनानें में आगे नहीं... ठीक ऐसे ही हर क्षेत्र में देखिए.. दुनियां के हर कोनें में आपको हिन्दुस्तानी दिखेंगे लेकिन बाहर... यहां हम केवल बक बक करनें में आगे हैं।  सुरक्षा देखिए... हमारे हथियार विदेश से आते हैं... हम इस क्षेत्र में आत्म निर्भर कभी नहीं बन सकते। चीन ज़ब बैलेस्टिक मिसाईल का परीक्षण करता है तो हम मूंह बाए उसे भारत के ऊपर से हिन्द महासागर में जाते हुए देखते हैं और जब वह दुनियां की सबसे तेज़ रेल का उदघाटन करता है तो भी उसे वक्र दृष्टि दे देखते हैं.... आखिर भारत पीछे क्यों रह गया?

न कोई राजनीति बन्द होगी और न ही यह नेता हमारे लिए कुछ सोचनें वाले हैं। सरकार केवल चूसनें और माल दबाके खूब मौज मनानें के मूड में है.. उसे मालूम है की देश की जनता मूर्ख है और उसे ही वोट देगी... और विपक्ष का तो कहना ही क्या...  वह तो इस छलावे में है की सरकार से त्रस्त जनता उसे ही वोट देगी.... न कोई दिशा है और न कोई मार्ग दर्शन का माद्दा लेकिन सभी खुशमिज़ाजी में हैं।

मित्रों जाग जानें और जो न जागे उसे जगानें का समय है... अपनी ताकत को पहचानिए... वोटिंग लिस्ट में अपना नाम लिखाईए... और वोट डालनें के लिए हर सम्भव प्रयास कीजिए... आपका एक वोट किसी अपराधी को आपका प्रतिनिधि बनानें से रोकेगा। आपका प्रतिनिधित्व कोई पढा लिखा और योग्य व्यक्ति करेगा।

सोचिए ज़रा...

(इस पोस्ट को मैनें अपने टैब से लिखा है सो कोई वर्तनी त्रुटि के लिए क्षमा प्राथी हूं)

सोमवार, 21 जनवरी 2013

नेताजी... सत्य क्या है?

२३ जनवरी.... नेताजी का जन्मदिवस.... २३ जनवरी आनें को है और हमारे सामनें फ़िर से वही सवाल आने को हैं। पिछले दिनों अनुज धर जी की पुस्तक मॄत्यु से वापसी और बिगेस्ट कवर-अप को पढा और कई अन-सुलझे सवालों के उत्तर मिले। मैं अपनें ब्लाग के माध्यम से अनुज जी को धन्यवाद देना चाहूंगा की उन्होनें जिस बेबाकी से अपनी राय रखी है उसकी मिसालें बहुत कम हैं। सार्थक और सटीक लेखन अभी जीवित है और हमारी पत्रकारिता अभी भी बहुत मज़बूत है। 




एक प्रश्न मेरे दिमाग में हमेशा कौंधता रहता था की आखिर नेताजी से कांग्रेस इतना डरी हुई क्यों थी... आखिर नेहरू के समर्थन वाली कांग्रेस क्या वाकई हिन्दुस्तान का प्रतिनिधित्व करती थी? 

"१९४४ में अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर से बात करते हुए, महात्मा गाँधी ने नेताजी को देशभक्तों का देशभक्त कहा था। नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि अगर उस समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन न होता। स्वयं गाँधीजी ने इस बात को स्वीकार किया था।"

जय हिन्द का नारा देने वाले नेताजी वाकई में जन जन के नेता थे इसमें किसी तत्कालीन कांग्रेसी को भी शक न होगा। लेकिन उस समय भी कांग्रेस का रवैया वैसा ही था जैसा आज है... सत्ता प्राप्ति... कैसे भी... जब गांधी जी पूर्ण स्वराज के स्थान पर डोमीनियन नेशन की मांग पर समझौता करनें को तैयार थे और सत्ता प्राप्त करनें को आतुर थी। शहीदे-आज़म और नेताजी नें पूर्ण स्वराज के अतिरिक्त किसी और माडल पर बात करनें से इनकार किया। मजबूरन कांग्रेस को झुकना पडा और उसके बाद पूर्ण स्वराज की मांग को आगे अंग्रेजों के साथ टेबल पर रखा गया। लेकिन शहीदे आज़म भगत सिंह की फ़ांसी पर गांधी जी और अंग्रेजो के बीच हुई डील नें नेताजी को झकझोड दिया। भगत सिंह को न बचा पाने पर, नेताजी गाँधीजी और कांग्रेस के तरीकों से बहुत नाराज हो गए। 

१९३८ की फ़रवरी में नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष चुनें गये... वह कांग्रेस के सबसे कम आयू के अध्यक्ष बनें। 


अपनें भाषण में उन्होनें सहिष्णुता, सहनशीलता और अहिंसक आन्दोलन पर जोर दिया और साथ ही साथ यह भी जोडा की कोई भी शान्ति प्रधान देश भी बिना सैन्य शक्ति के अपनी शान्ति व्यवस्था बनाएं नहीं रख सकता। नेताजी के काम करनें के तरीके से महात्मा गान्धी जी खुश नहीं थे और 1938 में गाँधीजी ने कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू को चुना तो था, मगर गाँधीजी को सुभाषबाबू की कार्यपद्धती पसंद नहीं आयी। 1939 में जब नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का वक्त आया, तब सुभाषबाबू चाहते थे कि कोई ऐसी व्यक्ती अध्यक्ष बन जाए, जो इस मामले में किसी दबाव के सामने न झुके। ऐसी कोई दुसरी व्यक्ती सामने न आने पर, सुभाषबाबू ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष बने रहना चाहा। लेकिन गाँधीजी अब उन्हे अध्यक्षपद से हटाना चाहते थे। गाँधीजी ने अध्यक्षपद के लिए पट्टाभी सितारमैय्या को चुना। कविवर्य रविंद्रनाथ ठाकूर ने गाँधीजी को खत लिखकर सुभाषबाबू को ही अध्यक्ष बनाने की विनंती की। प्रफुल्लचंद्र राय और मेघनाद सहा जैसे वैज्ञानिक भी सुभाषबाबू को फिर से अध्यक्ष के रूप में देखना चाहतें थे। लेकिन गाँधीजी ने इस मामले में किसी की बात नहीं मानी। कोई समझोता न हो पाने पर, बहुत सालो के बाद, कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए चुनाव लडा गया। सब समझते थे कि जब महात्मा गाँधी ने पट्टाभी सितारमैय्या का साथ दिया हैं, तब वे चुनाव आसानी से जीत जाएंगे। लेकिन वास्तव में, सुभाषबाबू को चुनाव में 1580 मत मिल गए और पट्टाभी सितारमैय्या को 1377 मत मिलें। गाँधीजी के विरोध के बावजूद सुभाषबाबू 203 मतों से यह चुनाव जीत गए।

जब अंग्रेजो ने दूसरे विश्व युद्ध में हिन्दुस्तानी फ़ौजियों के समर्थन के लिए गांधी जी से बात की तो उस समय नेताजी ऐसी किसी भी बात के उलट हिन्दुस्तानियों को अंग्रेजों के खिलाफ़ एक नया मोर्चा खोलनें के लिए और हिन्दुस्तान की आज़ादी के संघर्ष करनें के लिए कृत संकल्प कर चुके थे।   

जापान के पतन के बाद नेताजी के साथ क्या हुआ... सच कहें तो १९४५ की उस घटना की कभी भारत सरकार द्वारा कोई जांच कराई ही नहीं गई । शायद नेताजी को लेकर नेहरू जी और अंग्रेजों के रवैये के कारण ऐसा हुआ होगा। वैसे यह कहना गलत नहीं होगा की नेताजी के तरीके से आन्दोलन के ज़रिए मिलनें वाली आज़ादी एक सच्ची आज़ादी होती। अभी तो है वह हमारे देश वासियों के लिए सत्ता हस्तांरतरण प्रक्रिया मात्र था।  नेताजी होते तो विभाजन न होता, देश आज भी एक संघ होता। आईए देश के विभाजन के समय के कुछ तथ्यों पर गौर फ़रमाएं। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७, जिसके तहत अंग्रेजों नें सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को एक अमली जामा पहनाया । भारत और पाकिस्तान दो टुकडों में बंटनें को तैयार थे। अंग्रेजों का षडयंत्र कामयाब हो चुका था। 

कुछ लोगों के व्यक्तिगत स्वार्थ नें देश के टुकडे करा दिए थे, सत्ता हस्तांतरित हुई... और हमें सदैव लडनें और मरनें के लिए एक दुश्मन मिल गया... जी पाकिस्तान के रूप में। यह कांग्रेस और मुस्लिम लीग पर अंग्रेजों की सबसे शातिर बाज़ी थी। जिसमें विरासत के रूप में हमें पाकिस्तान से दुश्मनी मिली। 

अब आईए नेताजी के दर्शन और नेताजी के प्लान आफ़ एक्शन पर नज़र डाली जाए... नेताजी नें आज़ाद हिन्द फ़ौज को सम्बोधित करते हुए जो कहा वह ज्यों का त्यों पढिए... 
“भारत की आज़ादी की सेना के सैनिकों!...  आज का दिन मेरे जीवन का सबसे गर्व का दिन है। प्रसन्न नियति ने मुझे विश्व के सामने यह घोषणा करने का सुअवसर और सम्मान प्रदान किया है कि भारत की आज़ादी की सेना बन चुकी है। यह सेना आज सिंगापुर की युद्धभूमि पर- जो कि कभी ब्रिटिश साम्राज्य का गढ़ हुआ करता था- तैयार खड़ी है।...
“एक समय लोग सोचते थे कि जिस साम्राज्य में सूर्य नहीं डूबता, वह सदा कायम रहेगा। ऐसी किसी सोच से मैं कभी विचलित नहीं हुआ। इतिहास ने मुझे सिखाया है कि हर साम्राज्य का निश्चित रुप से पतन और ध्वंस होता है। और फिर, मैंने अपनी आँखों से उन शहरों और किलों को देखा है, जो गुजरे जमाने के साम्राज्यों के गढ़ हुआ करते थे, मगर उन्हीं के कब्र बन गये। आज ब्रिटिश साम्राज्य की इस कब्र पर खड़े होकर एक बच्चा भी यह समझ सकता है कि सर्वशक्तिमान ब्रिटिश साम्राज्य अब एक बीती हुई बात है।...  
“1939 में जब फ्राँस ने जर्मनी पर आक्रमण किया, तब अभियान शुरु करते वक्त जर्मन सैनिकों के होंठों से एक ही ललकार निकली- “चलो पेरिस! चलो पेरिस!” जब बहादूर निप्पोन के सैनिकों ने दिसम्बर 1941 में कदम बढ़ाये, तब जो ललकार उनके होंठों से निकली, वह थी- “चलो सिंगापुर! चलो सिंगापुर!” साथियों! मेरे सैनिकों! आईए, हम अपनी ललकार बनायें- “चलो दिल्ली! चलो दिल्ली!”...
“मैं नहीं जानता आज़ादी की इस लड़ाई में हममें से कौन-कौन जीवित बचेगा। लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि अन्त में हमलोग जीतेंगे और हमारा काम तबतक खत्म नहीं होता, जब तक कि हमारे जीवित बचे नायक ब्रिटिश साम्राज्यवाद की दूसरी कब्रगाह- पुरानी दिल्ली के लालकिला में विजय परेड नहीं कर लेते।...
“अपने सम्पूर्ण सामाजिक जीवन में मैंने यही अनुभव किया है कि यूँ तो भारत आज़ादी पाने के लिए हर प्रकार से हकदार है, मगर एक चीज की कमी रह जाती है, और वह है- अपनी एक आज़ादी की सेना। अमेरिका के जॉर्ज वाशिंगटन इसलिए संघर्ष कर सके और आज़ादी पा सके, क्योंकि उनके पास एक सेना थी। गैरीबाल्डी इटली को आज़ाद करा सके, क्योंकि उनके पीछे हथियारबन्द स्वयंसेवक थे। यह आपके लिए अवसर और सम्मान की बात है कि आपलोगों ने सबसे पहले आगे बढ़कर भारत की राष्ट्रीय सेना का गठन किया। ऐसा करके आपलोगों ने आज़ादी के रास्ते की आखिरी बाधा को दूर कर दिया है। आपको प्रसन्न और गर्वित होना चाहिए कि आप ऐसे महान कार्य में अग्रणी, हरावल बने हैं।...
 “जैसा कि मैंने प्रारम्भ में कहा, आज का दिन मेरे जीवन का सबसे गर्व का दिन है। गुलाम लोगों के लिए इससे बड़े गर्व, इससे ऊँचे सम्मान की बात और क्या हो सकती है कि वह आज़ादी की सेना का पहला सिपाही बने। मगर इस सम्मान के साथ बड़ी जिम्मेदारियाँ भी उसी अनुपात में जुड़ी हुई हैं और मुझे इसका गहराई से अहसास है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि अँधेरे और प्रकाश में, दुःख और खुशी में, कष्ट और विजय में मैं आपके साथ रहूँगा। आज इस वक्त मैं आपको कुछ नहीं दे सकता सिवाय भूख, प्यास, कष्ट, जबरन कूच और मौत के। लेकिन अगर आप जीवन और मृत्यु में मेरा अनुसरण करते हैं, जैसाकि मुझे यकीन है आप करेंगे, मैं आपको विजय और आज़ादी की ओर ले चलूँगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश को आज़ाद देखने के लिए हममें से कौन जीवित बचता है। इतना काफी है कि भारत आज़ाद हो और हम उसे आज़ाद करने के लिए अपना सबकुछ दे दें। ईश्वर हमारी सेना को आशीर्वाद दे और होनेवाली लड़ाई में हमें विजयी बनाये।...
“इन्क्लाब ज़िन्दाबाद!...
“आज़ाद हिन्द ज़िन्दाबाद!”
 


जून 1943 में टोकियो रेडियो से सुभाष बोस ने घोषणा की कि अंग्रेजों से यह आशा करना व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे। हमें स्वयं भारत के भीतर व बाहर से भी स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करना होगा। 21 अक्टूबर 1943 के सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपाइन, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी। 

नेताजी ने देश वासियों को टोकियो से सम्बोधित किया

मित्रों, जापान के पतन के साथ आज़ाद हिन्द फ़ौज का भी पतन हो गया। आज़ादी पानें के लिए नेताजी का यह प्रयास असफ़ल रहा क्योंकि कांग्रेस और गांधी का कोई समर्थन न मिला। देश आज़ाद हुआ और हम दो देश बन गये... किसी विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण।

आज हम समस्याओं से ग्रसित हैं, भ्रष्टाचार से पीडित हैं.. और न जानें कैसे कैसे नासूर आज भी नाक में दम किए हुए हैं। इनका प्रमुख कारण कांग्रेस की विचारधारा और कुछ न करनें के निर्णय पर अडे रहना और राजनीतिक नफ़े नुकसान का आंकलन कर लेने के बाद ही कोई कार्यवाही करना। यह सब कांग्रेस को अंग्रेजों से विरासत में मिला हुआ ज्ञान है। कांग्रेस आज अंग्रेजों की तरह अडियल रुख अपनाती है और देश की जनता को हर विरोध के लिए सडक पर आना पडता है। यह अपनें आप में एक त्रासदी है जब हमारे संसद में आधे से अधिक लोग किसी न किसी मामले में आरोपी हैं और उनके खिलाफ़ मामलें लम्बित हैं।

नेताजी जिस स्वराज की कल्पना करते थे उसमें उनका मानना था की भारत को आज़ादी के बाद एक अच्छे तानाशाह की ज़रूरत होगी जो भारत के ढांचे में नीतिगत बदलाव करे और उसे मज़बूत करे। उनकी यह सोच आपको किसी साम्यवादी की तरह लगेगी परन्तु भारत और चीन के आज के अन्तर को देखिए आप शायद उनकी इस सोच को भी समझ पाएंगे। हम लोकतंत्र बनें, लेकिन यह लोक तंत्र भीड तंत्र बन गया। जातिगत जनगणना, अस्पर्शयता, छुआ-छूत जैसी समस्याओं से हम आज भी पीडित हैं और शायद हमेशा रहेंगे। ग्राम विकास और आत्मनिर्भरता के लिए नेताजी के माडल पर शायद कभी कोई विचार हुआ ही नहीं। नेहरू हमेशा शहरी करण में विश्वास करते थे और उनके इस माडल में ग्राम अपना महत्व खोते गये। नतीज़तन हमारा विकास शहरों में होता गया और ग्राम विकास यात्रा में पिछडते गये। इसकी परिणिति देखिए की आज कॄषि प्रधान भारत देश की कुल विकास दर में खेती का योगदान केवल सोलह प्रतिशत हैं।  

लेकिन सबसे बडा यक्ष प्रश्न अभी भी वहीं का वहीं है। आखिर नेताजी के साथ हुई सन पैतालीस की घटना में वाकई नेताजी की मॄत्यू हो चुकी थी? या फ़िर कोई ऐसा रहस्य है जो कभी खुला ही नहीं। हमनें और आपनें जो इतिहास पढा वह वही था जो हमारे प्रतिनिधियों नें हम पर थोप दिया।

नेताजी की मृत्यू को दर्शानें वाली जापान सरकार के इस नोट को देखिए



शाहनवाज़ समिति, खोसला आयोग, मुखर्जी आयोग तीन बार जांच कराई जा चुकी है और हर बार तथ्यों को नकारा जाता रहा है। गुमनामी बाबा या भगवान जी पर भारत सरकार कभी कोई स्पष्ट वक्तव्य देती नहीं दिखी। हर बार ढुल मुल तरीके से होनें वाली जांच किसी न किसी राजनीतिक निर्देश से प्रभावित दिखी। मित्रों नेताजी का सच क्या था... आप अनुज धर की पुस्तक मॄत्यू से वापसी और बिगेस्ट कवर अप को पढकर अपनें कुछ अन्य प्रश्नों का हल पा सकते हैं। यकीनन मैनें जबसे इन पुस्तकों को पढा है आन्दोलित भी हूं और आक्रोशित भी। आखिर सच क्या है?  

कुछ चित्रों पर नज़र डालिए... यकीनी तौर पर १९४५ के दावे पर शक की पूरी सूई घुमती है।







क्यों नेताजी को भारत रत्न दिया जाता है और साथ में मरणोपरान्त जोड दिया जाता है। बाद में सुप्रीम कोर्ट के दखल से उसको सुधारा जाता है.. लेकिन सच्चाई बयान करनें से हर कोई बचता है। मित्रों यह स्वतंत्र भारत की सबसे बडी कहानी है जिसके बारे में आज तक कभी कोई कांग्रेसी सरकार नें कोई बयान नहीं दिए... कोई प्रयास नहीं किए गए जिससे देशवासियों को असलियत से रूबरू कराया जाता। आखिर क्यों....

-देव