सोमवार, 21 मई 2018

मोदी और हमारी रूस/इज़राइल पॉलिसी?

भारत की रूस पॉलिसी क्या होनी चाहिए, भारत की फिलिस्तीन/इज़राइल पॉलिसी क्या होना चाहिए... यह सब अजीब सवाल हैं... पिछले सप्ताह जर्सी सिटी के स्टेशनों के बाहर फ़्री-फिलिस्तीन की तख्तियां लिए लोग दिखे जो शायद येरूसलम शहर में इज़राइल के होने पर अपना प्रदर्शन कर रहे थे। यह एक अजीब बात जरूर है लेकिन भारत की पॉलिसी क्या हो?

सावरकर ने राष्ट्रवाद की व्याख्या के लिए कहा था कि किसी धर्म/ पंथ की आस्था उसके मूल से जुड़ी हुई होती है सो फिलिस्तीन, पाकिस्तान और या कोई मुस्लिम पंथ पर चलने वाले देश किसी एक ही मूल से जुड़े हैं। यह हमारा दुर्भाग्य है कि भारत के नागरिकों का भारतीयकरण कभी हो ही न पाया सो आज भी हम बंटे हुए हैं... यदि हमारा भारतीयकरण हुआ होता तो सभ्यताएं घुलमिल गयी होतीं लेकिन जिस पैमाने पर होना चाहिए वैसा हुआ नहीं। इसके नतीजे यह हुए कि आज भी देश के नागरिकों की आस्था देश के बजाय उनके पंथ से ही जुड़ी रही। अब यह पंथ-विशेष पर चलने वाली कौम आजतक किसी और के आदेश/फतवे पर वोट देती आई और बदले में उन राजनीतिक दलों ने उन्हें जानबूझकर गरीब बनाए रखा। मित्रों इस अजीब सी राजनीतिक मजबूरी जनित मजबूती के कारण पंथ-विशेष के विरुद्ध जाने का सामर्थ्य किसी राजनीतिक दल में नहीं!

मित्रों फिलिस्तीन ने लगभग हर अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ वोट दिया है और इज़राइल ने हमेशा समर्थन... और हाँ वोटबैंक पॉलिटिक्स के कारण भारत ने हमेशा इज़राइल का विरोध किया है। खुद से पूछिए कि सत्तर साल बाद इज़राइल जाने वाले मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री क्यों हुए? पहले के प्रधानमंत्रियों की वोटबैंक के अलावा दूसरी और कौन सी मजबूरी थी? ठीक वैसे ही रूस हमेशा भारत के पक्ष में खड़ा रहा है... आज जब बाजार और ग्लोबलाइजेशन के दौर में हम यूरोपियन संघ/अमेरिका के पास खड़े दिखते हैं लेकिन यकीन मानिए यदि कोई विपत्ति आएगी तो मदद के हाथ सिर्फ रूस और इजरायल से ही आएंगे।

बुधवार, 16 मई 2018

पुल गिरना आम घटना नहीं होती?

पुल गिरना आम घटना नहीं होती... फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी वाला फुट-ओवर ब्रिज खराब क्वालिटी के कारण गिरा या फिर ग्रांट रोड मुम्बई का फुट-ओवर ब्रिज अफवाह के कारण ओवरलोडेड होकर गिरा लेकिन यह अपने साथ कई जाने ले गया... अब बनारस... पीड़ा और दुख... अजीब है..  कैंट स्टेशन के पास निर्माणाधीन पुल का पैनल गिरा... अठारह लोग मारे गए... इस हृदय विदारक घटना के बाद प्रशासनिक अमला हरकत में आया और आनन-फानन में कार्यवाही दिखाने के लिए दो चार अधिकारी सस्पेंड कर दिए गए... इससे क्या होगा? कुछ नहीं.. जी बिल्कुल कुछ नहीं.. ज्यादा से ज्यादा दो चार लाख का सरकारी मुआवजा मिल जाएगा... उससे ज्यादा कुछ नहीं...

मैं पिछली बार जब बनारस गया तो पाया था कि पूरा बनारस खोद दिया है... प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है सो जगह जगह निर्माण कार्य होना स्वाभाविक ही है लेकिन इन हो रहे निर्माणों में लोगों की भागीदारी और नेगलिजेन्स अजीब सा था... यहाँ अमेरिका में जब कभी कोई निर्माण होता है तो सड़क बन्द कर देते हैं, लोगों के लिए बेरिकेटिंग होती है और उस जगह पर पुलिस खड़ी रहती है ताकि कोई अगर हुड़दंगी आए तो तुरंत कार्यवाही हो लेकिन यह भारत में या फिर बनारस में तो कतई नहीं हो सकता। अगर कोई सड़क बन्द होगी तो फिर बनारस ही बन्द करना होगा... अब कैंट के पास वाली जीटीरोड पर तो किसी भी समय लाख आदमी रहते है तो ऐसे में सड़क बन्द कैसे हो सकती है? अब अगर सड़क बन्द नहीं हो सकती तो फिर ऐसे हादसों के लिए हमेशा रिस्क तो रहने ही वाला है...

मित्रों प्राचीन नगरों में निर्माण हमेशा से चैलेंजिग ही होते हैं.. और बनारस के तो खैर अपने अलग ही रूप रंग हैं...  दिल्ली मेट्रो ने कितनी जाने ली? मुम्बई मेट्रो ने कितनी जान गवाई? हमने उन हादसों से कितना सीखा? शायद कुछ नहीं!

अब बनारस को अगर विकास चाहिए, फ्लाय-ओवर चाहिए तो फिर लोगों की भागीदारी ज़रूरी है। सड़क ब्लॉक कीजिए जब कभी भी फ्लाय-ओवर का कोई पैनल रख रहे हों या फिर कोई पैनल फिक्स किया जा रहा है.. जब तक इंजीनियर पैनल का टेस्टिंग, वेलिडेशन करे उसके बाद ही सड़क खुले.. काशी में यह सब कितना सम्भव है वह कहना बहुत कठिन है..