रविवार, 22 नवंबर 2009

शिवसेना, मनसे और कांग्रेस :- बिल्लिओं की लड़ाई में बन्दर का फायदा

(इस ब्लॉग में लिखे गए वक्तव्य मेरे निजी हैं, और मेरी स्वतन्त्र टिप्प्णियां हैं|)

लो भैया आज का दिन भी बीत गया... दिन भर की मारा मारी के बाद रविवार का दिन भी आखिर शांति से बीत ही गया.... बस कोई कोई समाचार चैनल चिल्ला रहे थे... वह शिवसेना ने हल्ला मचाया ना.. यार नया क्या है इसमें... | एक खबर आई असम में बम फटने और उसमे ७ लोगों की जान जाने की भी... मगर संवेदन शीलता तो ख़त्म हो गयी है सो वह भी एक खबर ही रही... ना किसी को कोई फर्क पड़ा और ना ही मीडिया को इस खबर को अधिक देर तक दिखाने में कोई फायदा दिखा.. सो एक खबर बनी रही नीचे घुमती हुई आती है ना... | और हाँ शाम होते होते एक खबर और देखी सचिन तेंदुलकर पर फिर कुछ बोल दिया भाई अपने संजय राउत जी ने... | यार क्या फायदा हुआ यह सब बयान बाज़ी से.. | बिना मतलब मीडिया से लड़ाई मोल ले ली और क्या... | हर चैनल पे शिवसेना ही शिवसेना है भाई वाह एक ही दिन में इतनी बड़ी पब्लिसिटी, क्या बात है भाई,.... | बदनाम हुए तो क्या नाम ना हुआ... यही फंडे पे आज कल शिव सेना और मनसे काम कर रही हैं...| दोनों सुर्खिओं में आने या सुर्खिओं में बने रहने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.. | वैसे मेरे को तो लगता है की सब कुछ फिक्स है.. | मुझे तो यहाँ तक संदेह है की अबू आज़मी के अपमान की घटना भी फिक्स थी.. | देखिये एक झापड़ खाने से अबू आज़मी मुंबई में उत्तर भारतीओं और हिंदी भाषिओं के फेवरेट हो गए.. मनसे भी मराठी मानुष के हक़ में लड़ने वाली पार्टी हो गयी... और कांग्रेस भी खुश हो गयी... क्योंकि शिवसेना एक बार और दब गयी.. | अब आई बी एन के दफ्तरों में हो रही तोड़ फोड़ और सामना में सचिन तेंदुलकर पर किये गए कमेन्ट भी उसी खीज का ही नतीजा है|



मेरा मानना है की हिंदुस्तान के पत्र-कारिता या मीडिया कहूँ तो उसमे भी भ्रष्टाचार पनपने लगा है... अब हर समाचार चैनल किसी ना किसी राजनीतिक सोच से प्रेरित लगने लगे हैं..| पत्र-कारिता अब स्वतन्त्र नहीं रही...| हर समाचार चैनल को चलने और जिंदा रखने के लिए जो पैसा आ रहा है वह कहाँ से आ रहा है उसकी जांच कीजिये.... आपको शायद सच्चाई पता चले... | समाचार चैनल मदारी और बन्दर का खेल दिखाते हैं और ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर अनाप शनाप दिखाते रहेंगे.. | अभी राज ठाकरे साहब को भी हीरो बनाने वाला मीडिया ही था.. | महाराष्ट्र की राजनीति का सच भले कुछ भी हो मगर जनता के पास चुनावो में कोई अच्छा विकल्प है नहीं... और मीडिया में भी खबरों को परोसने के तौर तरीके पर लगाम लगाने वाला कोई नहीं है | नतीजतन एक अजीब सा माहौल बन रहा है जिसमे जनता उदासीन होती जा रही है... राजनीतिक समाचारों के और राजनीतिक गतिविधिओं के लिए... |

देखिये शिवसेना के मेरे भाइयों क्यों ना अच्छे मुद्दों पर राजनीति की जाए..| यकीन मानिए इन मुद्दों पर मारा मारी करने से शिवसेना अपना ही जनाधार कम करेगी.. | और बिना मतलब के देश को कांग्रेस के हाथों में दे देगी.. | भाई अंग्रेजो ने जाते जाते कांग्रेस को यह मन्त्र दिया की बांटो और राज करो.. | वही काम कांग्रेस आज भी कर रही है | मनसे और शिव सेना का हाल बिल्लिओं के आपस में लड़ने वाली बात जैसा हो रहा है और इनकी आपस की लड़ाई में बन्दर को फायदा पहुँच रहा है | भाई लोगों अभी भी सुधर जाओ और अपने अच्छे मुद्दों को टटोलो और मुंबई को लड़ाई का अखाडा बनाने की जगह दुनिया के सबसे अच्छे शहरों के रूप में विकसित करने के लिए सम्मिलित प्रयास करो... |

देव
नवम्बर २२, २००९

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

भारत और चीन :- बढती अर्थ-व्यवस्थाएं या बढ़ता असंतुलन


एक पुरानी कहावत है आप इतिहास बदल सकते हैं मगर भूगोल नहीं ... भारत और चीन, विश्व की सबसे तेजी से उभरती दो उभरती शक्तियां... दो आगे बढती हुई अर्थ-व्यवस्थाएं | दो ऐसी शक्तियां जिनसे विश्व को बहुत अपेक्षाएं हैं और खतरे भी | यूरोप और अमेरिका दोनों के लिए बीते वर्ष की आर्थिक मंदी बहुत दुःख दाई सिद्ध हुई | पूरी दुनिया ने देखा कैसे भारत और चीन ने ना सिर्फ इस मंदी का सामना किया वरन अपनी विकास दर को बनाये रखा | अब दुनिया खास तौर पार अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन अपनी विदेश निति में भारत और चीन को विशेष दर्जा देने पर मजबूर हैं | साथ ही दक्षिण एशिया में हो रहे सामरिक असंतुलन और अपने बर्चस्व के लिए अमेरिका पाकिस्तान को अपने स्वाभाविक मित्र के तौर पर भी देख रहा है | इस बदलते समीकरण में भारत को इस क्षेत्र को संतुलन में रखने के लिए और शक्तिशाली होना ही होगा |

यदि भारत और चीन के आज के हालत को देखा जाये तो चीन गाहे बगाहे भारत को यह चेताने से बाज नहीं आता की भारत को तिब्बत को लेकर क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए... | अब चीन खुद अपने गिरेबान में देखने की जगह भारत पर दबाव की राजनीती में विश्वास रख रहा है | भारत सरकार की ढुल-मुल नीतियां और चीन के प्रति ज़रूरत से ज्यादा रक्षात्मक रवैया दूरदृष्टि से घातक सिद्ध हो सकता है | एक तो चीन तिब्बत पर अवैध कब्जा जमाये हुए है और भारत को लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के लिए आगाह करता रहता है | इससे ना सिर्फ क्षेत्र का संतुलन बिगड़ रहा है और लगातार बढ़ रही चीन की गतिविधियाँ हमें सोचने पर मजबूर कर रही हैं | नींद में सो रही भारत सरकार कब जागेगी, क्यों आज भी हमारी कोई ठोस चीनी विदेश नीति नहीं है | क्यों आज भी हमारी सीमा बंगला देश और नेपाल के रस्ते खुली है और आतंकिओं को देश में घुसने और यहाँ लूटपाट मचाने की स्वतंत्रता दे रही है | जितने भी नक्सली समूह भारत में सक्रिय है वह सभी पाकिस्तान या चीन से सहायता प्राप्त कर रहे हैं, और भारत की सरकार उनका कोई समाधान तलाशने के स्थान पर फाइव-स्टार होटल में बैठ कर रणनीति तय कर रही है |

आज चीन ना केवल भारत को अ-स्थिर कर रहा है बल्कि पिछले दरवाजे से पाकिस्तान के रास्ते भारत विरोधी गतिविधिओं को भी समर्थन कर रहा है | शक्ति-संतुलन क्षेत्र की शांति के लिए बहुत आवश्यक है और भारत को अपनी रण-नीतिओं को तय करते समय सामरिक रूप से अधिक बलवान होने पर भी ध्यान देना होगा.. | हर मोर्चे पर सफल हो रही हमारी अर्थ-व्यस्था पडोसिओं की आँखों में खटक रही है और भारत को हर मोर्चे से अपनी तैयारी को मजबूत करना होगा... और साथ ही साथ चीन को उसकी बन्दर घुड़की के लिए उत्तर भी उसी भाषा में देना होगा.. | शठे साठ्यम समाचरेत अर्थात दुष्ट के साथ सदाचार व्यव्हार विनाश को निमंत्रण है सो समय रहते चेत जाना भारत के लिए समय की मांग है और विश्व शांति के लिए एक बड़ी पहल भी ...

देव कुमार
नवम्बर, १३, २००९