शनिवार, 26 दिसंबर 2015

भ्रष्ट होता न्यायतंत्र...

मैंने अक्सर हाई कोर्ट को बकवास फ़ैसला देते हुए देखा है, सत्र न्यायालय से दोषी को उस राज्य के हाई कोर्ट से निर्दोष साबित होते और फिर सर्वोच्च न्यायालय के सत्र न्यायालय के साक्ष्यों पर संज्ञान लेते और जाँच के बाद आरोपी को दोषी सिद्ध होते हुए भी देखा है। कई मामले ऐसे ही हुए हैं। सलमान खान का मामला इसका ताज़ा उदाहरण है, उच्च न्यायालय के जज का साक्ष्य, सबूत, रवींद्र पटेल के बयान इत्यादि पर कोई संज्ञान न लेना और इतनी जल्दबाज़ी में फ़ैसला सुना देना वाक़ई में ग़लती है। सलमान अगर बेगुनाह होते तो १३ साल बाद हम यह बात नहीं कर रहे होते की उस दिन गाड़ी कौन चला रहा था। निहसंदेह उस दिन गाड़ी सलमान ही चला रहे थे और उनको बचाने के लिए जो सबूत मिटाए गए, लोगों को बिना किसी मुआवज़ा मरने को छोड़ दिया गया उसका भी निबटान ज़रूरी है। वैसे हाई कोर्ट का इस प्रकार के बेवक़ूफ़ाना फ़ैसला देने की आदत इसलिए भी हो सकती है क्योंकि उन्हें पता है कि कोई न कोई पक्ष तो ऊपर सर्वोच्च न्यायालय जाएगा ही सो जो भी फ़ैसला दो क्या फ़र्क़ पड़ता है, लेकिन उसकी ऐसी जल्दबाज़ी से लोगों के मन में उच्च न्यायालय के प्रति विश्वास कम हुआ है। हम भारत में न्यायपालिका के भ्रष्टाचार की बात नहीं करते क्योंकि उसे पवित्र माना जाता है, लेकिन यहाँ न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया ही ग़लत है तो उसका क्या? जजों के भ्रष्टाचार की कोई बात करता है? साक्ष्यों को तोड़ना, मिटा देना या फिर उनका अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करने वाले वकीलों का क्या?

कोई पुलिसवाला अपनी जान पर खेलकर किसी उग्रवादी को पकड़ता है और उस उग्रवादी को बचाने के लिए वकीलों की फ़ौज खड़ी हो जाती है, क्या किसी ने भी इन लोगों की जाँच की बात की, कि आख़िर क्या स्वार्थ था इन लोगों का जो इन्होंने आतंकी की सज़ा माफ़ी के लिए आधी रात में सुप्रीम कोर्ट खुलवा दिया? देश का दुर्भाग्य है जो न्यायमूर्ति भ्रष्ट हैं और ऐसे वकीलों से हमारी अदालतें भरी हैं। 

कोई अगर इस लेख पर आपत्ति करे तो उन्हें जस्टिस काटजू सरीखे लोगों को देख लेना चाहिए। देशद्रोही न कहूँ तो क्या कहूँ इनको आप ही कहिए? 

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

हवाबाज़ी की राजनीति...

सहिष्णुता या असहिष्णुता की बहस किसी फ़ोल्डिंग चारपाई सरीखी हो चली है और जब जिसे मन कर रहा है बिछा कर आराम कर लेता है और जब काम निकल जाता है तब मोड़ कर दीवार पर टिका कर आराम से निकल लेता है। सिर्फ़ बिहार चुनाव के समय एवार्ड वापसी, आमिर खान और शाहरुख़ खान के हालिया दिए गए बयान और उनपर आयी प्रतिक्रिया इस बात की पुष्टि करते से लगते हैं। अब इसका हमारे आम जीवन पर कितना प्रभाव पड़ा है? सोच कर देखिए ज़रा? फ़िलहाल अब इस बहस से असली आम आदमी(टोपी वाला आम आदमी नहीं) इतना ऊब चुका है कि उसे इससे मुक्ति चाहिए। कोई सहिष्णु हो या न हो लेकिन फ़ालतू की बात पर ऊर्जा खपाने का लाभ नहीं!

फ़िलहाल आज कल मुझे जो बात सबसे अधिक विचलित करती है, वह है भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विपक्ष का इस क़दर नकारात्मक हो जाना। वह सरकार के विरोध में देशद्रोह की हरकतों पर उतर आया है। इसी चिढ़ में हमारा विपक्ष पाकिस्तान जैसे देशों से मोदी सरकार गिराने के लिए मदद और समर्थन ले आया है। यह लोग झूठ और अनर्गल प्रलाप करते हुए कोई भी बात की हवाबाज़ी करके असली विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। झूठ बोलना, झूठ चिल्लाना और सिर्फ़ पर्सेप्शन की हवाबाज़ी करते रहना ही उसे अकेला रास्ता दीख रहा है। इस बात को मानने में कोई शक नहीं कि कांग्रेस हमेशा घोटाले ही करती आयी और तंत्र को अपनी लूट के लिए इस्तेमाल करती आयी है। आज जब कांग्रेस के शीर्षस्थ नेतृत्व चारसौबीसी के मामले में आरोपी हैं और ज़मानत पर बाहर हैं तो ऐसे में कांग्रेसियों का ऐसा पर्सेप्शन बनाना मानो गांधीजी के "अंग्रेज़ों भारत छोड़ो" टाइप की कोई क्रांतिकारी मामले में माँ बेटे जेल जा रहे हो।

अब भाई सीधा सीधा मामला धोखाधड़ी और चारसौबीसी का है... ठीक ऐसा ही कुछ नौटंकी केजरीवाल ने नितिन गड़करी मामले में भी किया था और उसका उन्हें भरपूर राजनैतिक लाभ भी मिला था। मीडिया ने पूरी कवरेज दी, नौटंकी हुई और बाद में लिखित माफ़ी माँगी गयी। जिस मीडिया ने आरोपी की गिरफ़्तारी को किसी हीरो सरीखी कवरेज दी उसी मीडिया ने माफ़ी की कवरेज को पूरी तरह से दबाया। ऐसा ही कुछ केजरीवाल के बाद अब कांग्रेसी माँ बेटे के मामले में होता दिख रहा है। दरअसल आज विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए कोई मुद्दा नहीं है। विकास पर वह घेर नहीं सकती, गवरनेंस पर घेर नहीं सकती, किसी और राजनैतिक, कूटनीतिक मुद्दे पर नहीं घेर सकती तो ऐसे में वह अपना अस्तित्व बचाए तो कैसे? सो बाहरी देशों से आ रहे पैसे और चंदे का साथ और बाहरी देशों के नियंत्रण में चलने वाला मीडिया यह दोनों ही मिलकर देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। देश के संघीय ढाँचे को मजबूत करना इन्हें बहुत मुश्किल लग रहा है। एक और बड़ा कारण यह भी है कि कांग्रेस को विपक्ष में रहने की आदत नहीं है सो वह आज भी बौखलाई हुई है और इसी बौखलाहट में उसे सही और ग़लत की पहचान ही नहीं हो पा रही। यदि विपक्ष एक सकारात्मक माहौल बनाए, देश के समग्र विकास में साथ दे तब स्थिति कितनी सुधर जाएगी। लेकिन सोनिया और राहुल जैसे भ्रष्ट नेतृत्व में ऐसा होना असम्भव ही है, रही सही कसर नौटंकीलाल ने पूरी कर दी है!!


सोमवार, 14 दिसंबर 2015

।।जय लोकतंत्र।।

कांग्रेस सांसद नहीं चलने दे रही, उसे लोकतंत्र पर ख़तरा दीख रहा है। सोनिया और राहुल के एक धोखाधड़ी मामले में सत्र न्यायालय से मिले अदालत हाज़री के सम्मन मात्र से यह तिलमिला गए हैं। मित्रों उनका तिलमिला जाना और संसद न चलने देना एक तरह से कांग्रेस की भारतविरोधी मानसिकता को ही दर्शाता है। कांग्रेस राजनीति के निम्नतम स्तर पर आ गयी है, उसे अब सही और ग़लत का फ़र्क़ समझना पूरी तरह से बन्द हो गया है। उसपर भी दरबारी क़िस्म के चरण चाटुकार कांग्रेस पार्टी को और गर्त में धकेले दे रहे हैं। मित्रों लोकतंत्र में एक मज़बूत विपक्षी दल का होना आवश्यक होता है लेकिन यहाँ सभी विपक्षी दल सिर्फ़ झूठ और फ़रेब की राजनीति पर उतर आए हैं। मीडिया में छुपे हुए उनके चारण भाट सदैव इसी झूठ को ज़ोर से चिल्लाने और ब्रेकिंग न्यूज़ बनाने को तत्पर हैं। सोशल मीडिया ने इस समय सबसे अहम रोल निभाया है। मीडिया और कांग्रेस, आआपा जैसे दलों के कई झूठ का पर्दाफ़ाश इसी सोशल मीडिया ने ही किया है।

वैसे भारत को कांग्रेस से अधिक कांग्रेसी मानसिकता ने चोट पहुँचाई है। घर-घर में नाकारों की फ़ौज, मुफ़्त का माल बटोरने की मानसिकता। सरकारी कर्मचारी का ऑफ़िस देर से आना, मामले को लटकाना, कमाई की उगाही के तरीक़े खोजना। यह सब कुछ ऐसी बातें हैं जो ग़ौर करने वाली हैं। आज इसी कांग्रेसी मानसिकता के ध्वजवाहक हर ओर हैं। सुनने में आया है कि केन्द्रीय कर्मचारियों के किसी महासंघ ने अगले चुनाव में मोदी के ख़िलाफ़ जाने का फ़ैसला लिया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, हमने महान उत्तर प्रदेश द्वारा नक़ल विरोधी अध्यादेश वापसी के मुलायम सिंह के वायदे पर भाजपा को हारते देखा है और जातिवाद के कुचक्र में जकड़े बिहार द्वारा लालू को चुनलेना भी देखा है। जातिवाद से जकड़ी और जामा मस्जिद के इमाम द्वारा दिए गए फ़तवे के कारण पड़े एकतरफ़ा वोट पाने से दिल्ली की सत्ता पर बैठे केजरीवाल को भी देखा है। 

जो व्यक्ति दिन में अठारह घंटे काम करता हो, जिस पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप न हो, जो बैलगाड़ी और मर्सीडिज दोनों को एक साथ लेकर चलने, विज्ञान और आध्यात्मिक भारत का मंत्र देता हो, धर्म और संस्कृति, ब्राण्ड इंडिया की बात करता हो, मुफ़्त की सब्सिडी की जगह आत्मसम्मान की बात करता हो, मुफ़्तख़ोरी और बेरोज़गारी की जगह रोज़गार और अवसर की बात करता हो ऐसे व्यक्ति की आलोचना के लिए भर भर के झूठ लिखा जाना क्या ठीक है?