आज शाम को शिवम मिश्रा जी ने अपनें फ़ेसबुक स्टेटस पर चौरासी के दंगो पर एक लाईन लिखी और उस पर जो तर्क, कुतर्क हुए उसनें मुझे सोचनें पर मजबूर कर दिया की आखिर जनता की याददाश्त इतनी कम क्यों होती है। आखिर क्या वाकई हमारी सोच इतनी कमज़ोर है जो हमें चौरासी याद नहीं और गुजरात याद है? आखिर ऐसा कैसे हो रहा है... देखो, हिन्दुस्तान की सबसे बडी विडम्बना यही है की हमारे यहां इतिहास को पाठ्यक्रम
में उसी हिसाब से लिया गया जैसा आज़ादी के पहले गोरे चाहते थे और बाद में कांग्रेसी।
यह मैकाले की एक सोची समझी साज़िश थी जिसको कांग्रेस नें आज़ादी के बाद भी फ़ालो किया।
इसमें भारत के इतिहास को तोड मरोड कर नई तस्वीर खींची गई। मुझे बडा खेद होता है जब
कोई यह कहता है की फ़लां फ़लां बात बहुत पुरानी हुई और अब तो उसका कोई औचित्य नहीं
है। यार नरसंहार को कैसे भुलाया जा सकता है। अगर गुजरात याद रखना है तो गोधरा याद
रखो, चौरासी भी याद रखो.... और भागलपुर भी याद रखो...
सरकारी साज़िश है
जो हर चीज़ को अपनें फ़ायदे से तोडती है... मरोडती है और जनता के सामनें वही रखती है
जो वह चाहती है। कितनें लोग जानते हैं की नेहरू की मौत कैसे हुई थी.. कितनें लोगो को पता है की शास्त्री जी की मौत में भी साज़िश थी..
अब चुंकि हर जानकारी मौजूद है तो हमारा फ़र्ज़ है की सच सभी के सामनें लाएं। सरकार जो
चाहे वह करे लेकिन हमें अपनें इतिहास को भूलनें की जगह उसे एकदम याद रखना चाहिए।
कांग्रेस हो या भाजपा जो कोई भी गलत है वह गलत है। कोई धुला हुआ नहीं है हर कोई एक
ही जैसा है। कांग्रेस एक छुपा हुआ चेहरा है जिसकी कथनी और करनी में जमीन आसमान का
अन्तर है। गांधी जी के यह तथाकथित चेले गांधी वाद के सबसे बडे हत्यारे हैं। सोच कर
देखो....
मित्रों हमारी याददाश्त की कमज़ोरी का फ़ायदा हमेशा राजनीतिक दलों नें उठाया है। अगर कोई आम आदमी या हमारे जैसा कोई आम ब्लागर यह कहता है की "चौरासी के दंगो को हमनें भुला दिया क्योंकी उस समय हम नहीं थे और उनसे हमारा भावनात्मक जुडाव नहीं है लेकिन चूकि गुजरात के दंगे हाल फ़िलहाल में हुए तो उनसे हमारा भावनात्मक जुडाव है" यह अपनें आप में एक बहुत बडी बात है... आम आदमी की सोच में ऐसी बात... लेकिन इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है की हमारी देश की जनता वाकई कांग्रेसी राज के ही लायक है। और कांग्रेसी साज़िश एकदम कामयाब है। मित्रों आज सारी जानकारी उपलब्ध है... आईए बेनकाब करें हर उस चीज़ को जो हमें हकीकत से दूर करे। खुद समझे और अपनें आस पास के लोगों को जागरूक करें। सरकारें आएंगी और जाएंगी... लेकिन यदि हम अपने विवेक से अपनें प्रतिनिधि चुनेंगे तो अपना ही विकास करेंगे।
याद रखिए... अपनें अतीत को... और अपनें वर्तमान और अपनें भविष्य को देखिए.... जो मुल्क अपने इतिहास की गलती से नहीं सीखता.... वह पिछड जाता है। और शायद हमारे पिछडनें का कारण यही है... शहीदे-आज़म भगत सिंह की कुरबानी भूलकर गांधीजी का नाम कैसे लिया जा सकता है। आज़ाद और नेताजी को कांग्रेस आतंकवादी की संज्ञा देती है, तो ऐसे में इनकी हकीकत को सबके सामनें लाना क्या हमारा फ़र्ज़ नहीं? अब इसके आगे क्या लिखें, थोडा आन्दोलित हूं इसलिए बात यहीं खत्म करता हूं...
-देव