जैसे कि उम्मीद थी ओलम्पिक में भारत की दुर्गति का सिलसिला जारी रहा और बुद्धिजीवियों ने क्रिकेट को गालियाँ देकर अपनी कुंठा शांत की। इसी बीच क्रिकेट में भारत ने वेस्टइंडीज़ को धूल चटा दी और नंबर एक की ओर एक कदम बढ़ा लिया। अब इन दोनों में क्या समानता है और क्या फर्क है? सब क्रिकेट को गालियाँ ज़रूर देते हैं लेकिन क्रिकेट से कुछ सीखने की बात नहीं कहते। अब अगर क्रिकेट में भी हारना शुरू करें तब बुद्धिजीवियों की कुंठा शांत हो जायेगी? आपको अब क्रिकेट में जीत पर गर्व नहीं होता?
मित्रों सन अस्सी में भारत ने हॉकी में अपना आखिरी ओलम्पिक सोना जीता और तिरासी में भारत ने क्रिकेट विश्व कप और यकीन मानिए भारत के विश्व कप जीतने के पहले कोई क्रिकेट को समझता भी नहीं था और न ही यह भारत में कोई बाज़ार ही था। विश्व कप जीतने के बाद भारत वासियों ने समझा कि क्रिकेट भी कोई खेल है, बहरहाल इसके बाद भारतीय खेलों के इतिहास में जो हुआ वह समझने के प्रयास कीजिये। बीसीसीआई को मिली स्वायत्तता और खेलों से मिले पैसे के सही उपयोग की क्षमता से भारत में क्रिकेट का एक बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा हुआ। हर शहर में क्रिकेट के मैदान, सामान की उपलब्धता हुई, क्रिकेट फल फूल रहा था और उधर बदलती हुई दुनिया में हॉकी हाई-टेक और एस्ट्रोटर्फ की ओर जा रही थी और भारत परंपरागत हॉकी से बाहर नहीं आ पा रहा था। लगातार हार से लोग हॉकी से दूर और क्रिकेट के करीब आते गए। बीसीसीआई मालामाल और बाकी खेल कंगाल होते गए। भारत सरकार ने कभी खेलों के लिए अपनी नीति बनाई ही नहीं और एथेलेटिक्स, हॉकी, फुटबॉल जैसे खेल कभी कमाकर कुछ दे ही नहीं पाए सो नतीजा यह हुआ कि पैसे की कंगाली के कारण खिलाड़ी और बोर्ड बदहाल होते गए।
इन खेलों को अगर ऊपर लाना है तो बीसीसीआई की तरह इनकी एशोसियेशन बनाओ, स्वायत्तता दो, पैसा दो और खेलों का आधारभूत ढांचा खड़ा करो। बच्चो को स्विमिंग पूल दो, रनिंग ट्रैक दो ताकि बचपन से ही टैलेंट को निखारा जा सके। और हाँ इन खेलों को भी बाज़ार में लाना होगा, पैसा कमाना होगा, जीतना होगा। और हाँ एक और बात, हम हिंदुस्तानियों को खेल नहीं तमाशा चाहिए, मनोरंजन चाहिए सो इन खेलों को मनोरंजन का साधन बनाना होगा। क्रिकेट से सीखो कुछ, और पैसा कमाने का साधन खोजो।
अगर ऐसा सही में हुआ तब कहीं जाकर बीस तीस साल में भारत की ओलम्पिक में हालत सुधर सकती है। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो चुप बैठो लेकिन क्रिकेट को गालियाँ मत दो।