आजकल चर्चा में है यूरोपियन संघ... यूरोप की सबसे बड़ी समस्या बन गया है यह। आइए समझते हैं कि आखिर यूरोपियन संघ क्या है और आखिर ब्रिटेन इससे निकलना क्यों चाहता है। और इस उठापटक से भारत जैसे देशों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
यूरोपियन संघ: 4,324,782 वर्ग किमी, लगभग पचास करोड़ की आबादी, यूरोप के अठाइस समृद्ध देशों का एक ऐसा संघ जो इन देशों के बीच व्यापार, पर्यटन, नौकरी करने के लिए सुविधाएं देता है। यूरोपियन देशों के बीच बेरोकटोक यातायात और बिना वीज़ा के घूमने और काम करने की सुविधा देता है। इस यूरोपियन संघ की राजधानी ब्रुसेल्स में है और लन्दन और पेरिस दो सबसे बड़े देश हैं। व्यापारिक मुद्दों पर इस संघ का अपना नियम है और यूरोपियन संघ के सभी देश इन्ही नियम से बंधे हुए हैं। यदि कोई देश अपने देश के लिए कोई बदलाव चाहता है तब उसे यूरोपियन यूनियन को प्रस्ताव भेजना होगा और फिर सभी सदस्यों की मंज़ूरी लेनी होगी।
इसके अठारह सदस्य करेंसी के लिए यूरो का प्रयोग करते हैं। यूरोपियन यूनियन नॉमिनल जीडीपी के अनुसार विश्व की कुल अर्थव्यवस्था का चौबीस प्रतिशत और परचेज पॉवर पैरिटी के अनुसार दुसरे स्थान(अठारह ट्रिलियन डॉलर) पर है। यह संगठन विश्व में वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन, जी-8, जी-20 देशों का हिस्सा रहा है। यह विश्व में देशों के अब तकके सबसे बड़े संगठनों में से एक है। सही मायने के कहें तो यह आर्थिक महाशक्ति है।
यूरोपियन देशों की अपनी नागरिकता है, अपना लीगल(कानूनी) सिस्टम है और सदस्य देश इस नियम से बंधे हैं, कई बार यह उस देश के क़ानून से विरोधाभास होने के बावजूद उस देश के न्यायालय यूरोपियन यूनियन के न्याय प्रणाली, क़ानून को ही ध्यान में रखकर फैसला दे सकते हैं। इससे किसी एक देश की मोनोपोली बंद हुई और यूरोप में शान्ति का एक नया दौर फैला। इन्ही प्रयासों से 2012 के विश्व शान्ति का नोबेल पुरस्कार यूरोपियन संघ को दिया गया।
ब्रिटेन क्यों निकलना चाहता है?
ब्रिटेन विश्व की एक महाशक्ति है और वह यूरोपियन यूनियन में होने के बावजूद भी अपनी करेंसी पौंड को ही इस्तेमाल करता है। इस संधि से यूरोप के कई देशों के निवासी इंग्लैण्ड में जॉब के लिए बेरोकटोक आ जाते हैं। यात्रा, पर्यटन सभी का लाभ तो है लेकिन फिर भी ब्रिटेन को अपने देश के क़ानून के अनुसार इन्हें नियंत्रित करने का कोई अधिकार नहीं है। यूरोप से ब्रिटेन को जितना लाभ है उससे कहीं ज्यादा यूरोप को ब्रिटेन की जरुरत है। यदि ब्रिटेन इस संघ से निकल जाता है तब वह यूरोपियन संघ से जुड़ा भी रहेगा लेकिन व्यापारिक मामलों में अपना नियंत्रण भी रख सकेगा। फिलहाल ब्रिटेन का एक्सपोर्ट सबसे अधिक यूरोपियन संघ में ही होता है जो हमेशा ब्रिटेन के लिए फायदे का सौदा नहीं होता।
ब्रिटेन का बढ़ता हुआ राजकोषीय घाटा एक दूसरा अपरोक्ष कारण है।
यदि ब्रिटेन निकल जाता है?
भारत जैसे देशों को इसका लाभ मिलेगा क्योंकि उस स्थिति में ब्रिटेन यूरोपियन संघ से इतर आयात निर्यात, कच्चे माल, निर्माण सेक्टर में भारत और अमेरिका जैसे देशों से भी व्यापार कर सकेगा। वह यूरोपियन संघ के देशों से भी व्यापार कर सकेगा लेकिन अपनी खुद की शर्तों पर। भारत भी यूरोपियन संघ की शर्तों से इतर ब्रिटेन से सायबर सिक्युरिटी और सैन्य क्षेत्र में अपनी क्षमताओं को ब्रिटेन के साथ द्विपक्षीय वार्ता से ही निपटा लगा जो अभी यूरोपियन संघ के नियम के अनुसार कठिन है। ब्रिटेन के लिए यूरोपियन संघ से हुआ नुकसान मेक-इन-इण्डिया से सुधर सकता है।
इन्वेस्टमेंट बैंकिंग सेक्टर सबसे बड़े खतरे में आएगा, ब्रिटेन के निकलने की स्थिति में एचएसबीसी पहले ही अपने ऑफिस को फ़्रांस ले जाने की बात कह चुका है, और इसी प्रकार की बात आई अन्य देशों ने भी कही है।
उन सभी कंपनियों के मालिक अपने मूल देश के व्यापारिक प्रतिष्ठानों को सुदृढ़ रखने का प्रयास करेंगे और वह एमर्जिंग मार्केट से पैसा निकालने का प्रयास करेंगे। यकीन मानिए चौबीस जून को विश्व के शेयर बाज़ार जबरदस्त उठापटक मचाएंगे। अगला हफ्ता बैंकिंग सेक्टर में काम करने वाले लोगों के लिए बहुत व्यस्त रहने वाला है।
बहरहाल कई ऐसी यूरोपियन कम्पनियाँ हैं जिनका हेड-क्वार्टर ब्रिटेन में है और वह सभी अभी पशोपेश की स्थिति में हैं। ब्रिटेन के नागरिक 23 जून को निर्णय लेंगे और यह अभी तक के सबसे महत्तवपूर्ण जनमत संग्रहों में से एक होगा। और हाँ एक और बात, इस वोटिंग प्रक्रिया में भाग लेने वाले लगभग दस लाख वोटर भारतीय मूल के हैं सो देखते हैं यह एंग्लो-इन्डियन वर्ग क्या करता है और यूरोपियन संघ पर आये इस संकट का क्या होता है...