सोमवार, 7 मई 2012

जंगल से निकलकर संसद में पहुंच गए हैं डाकू....

बाबा रामदेव कहते हैं, जंगल से निकलकर संसद में आ गये हैं डाकू.... गलत है ? या कहें की बात तो सही है लेकिन शब्द चयन में थोडी गडबड है... दर-असल आज कल एक अजीब सा माहौल हो गया है, हर कोई तुरत फ़ुरत में फ़ैसला लेने और अपनी चमकानें में लगा हुआ है... बाबा रामदेव को भी लग रहा है की आज कल सरकार के खिलाफ़ बोलनें में ही भलाई है और इसी में उनका भविष्य सुरक्षित है... वैसे सरकार के खिलाफ़ बाबा रामदेव का यह कहना कोई गलत भी नहीं है, लेकिन इसका कोई परिणाम निकलेगा इसमें एक बडा प्रश्नवाचक चिन्ह है....

आज कल मंहगाई अपनें चरम पर है, सरकारी रास्ते से कोई समाधान निकलता दीख नहीं रहा है, जनता त्रस्त है लेकिन फ़िर भी सरकार पर कोई असर नहीं क्योंकि इस समय कोई व्यव्धान उत्पन्न हो नहीं सकता। जनता को आदत है, वह इसी मंहगाई और भ्रष्टाचार के रास्ते पर जीनें का तरीका निकाल ही लेगी। आखिर पक्ष और विपक्ष दोनों ही इस निर्णय पर अडे हों की "कोई निर्णय लेना ही नहीं है" तो फ़िर जनता आखिर जाये तो जाये कहां । लेकिन फ़िर भी होना क्या है ? सरकार कहती है, लोकतांत्रिक तरीका अपनाईए और अपनी बात संसद के माध्यम से कहिए.... विपक्ष कहता है संसदीय रास्ते से लोकपाल और भ्रष्टाचार से जुडे हुए मामले का हल निकाला जाए... मुझे इस समय भाजपा की सोच और उसकी दशा-दिशा पर एक बडा प्रश्नवाचक चिन्ह नज़र आता है।  याद कीजिए जेपी का आन्दोलन, कैसे बच्चा बच्चा सडक पर था... सरकारें हिल गईं थी और कांग्रेसी सरकार की चूलें हिल गईं थी... यदि उस समय भी संसद के रास्ते से हल निकाला जाता तो क्या निकलता ? दर-असल आज़ाद हिन्दुस्तान में देशव्यापी आन्दोलन से ही कांग्रेसी सत्ता हिली है... याद कीजिए १९७७, १९८९ और १९९८...आपातकाल नें संघ और जनता पार्टी को सत्ता का बीज़ दिया..... कोई भी जन-आन्दोलन किसी भी राजनैतिक दल और विचारधारा के लिए सत्ता का बीज हो सकता है लेकिन वह स्वयं में सत्ता चलानें का दम खम रखती है इसकी कम से कम आज़ाद भारत के लोकतंत्र में कोई मिसाल देखनें को नहीं मिलती।


आज जनता त्रस्त है और सरकार एकदम मद-मस्त चल रही है, यकीन मानिए चलती रहेगी...और अगले चुनावों में भी कांग्रेस ही आयेगी क्योंकी इस देश की जनता को आदत है इसी माहौल में रहनें की और बेकार की बक बक करनें की... नेताजी सुभाष चंद्र बोस और शहीदे-ए-आज़म भगत सिंह के तरीके से आज़ादी पाई होती तो कहते, हमनें तो सत्ता हस्तांतरण कराया और अंग्रेजों के जानें के बाद काले अंग्रेजों की गुलामी पाई। क्या कहेंगे....  नेताजी नें कहा था "भारत को स्वतंत्रता के बाद कुछ वर्षों तक एक तानाशाह की ज़रूरत होगी" यह यकीनी तौर पर सही होता... यदि देश की बागडोर नेताजी के हाथ होती तो हमारी क्या हैसियत होती यह किसी को बतानें की ज़रूरत नहीं है....  ज़रा सोचिए.....

2 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सब से पहले पोस्ट मे थोड़ा फेर बदल करते हुये नेता जी के बारे मे जहां जहां आपने लिखा है वहाँ वहाँ उनके नाम के आगे "नेताजी" लिखिए !
अगर एम के गांधी "महात्मा" है तो फिर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस "नेताजी" थे ... है ... रहेंगे !

वैसे ही आपने शहीद ए आज़म सरदार भगत सिंह जी का नाम भी ऐसे ही लिख दिया ...
आपसे विनती है कृपया यह भूल सुधार लें !

Dev K Jha ने कहा…

भूल सुधार ली गई है... बहुत बहुत धन्यवाद...