आईए आपको कुछ तथ्यों से रूबरू कराते हैं। बहुत दिनों से हम और आप केन्द्र सरकार के भारत निर्माण के प्रचार को देख कर हैरानी से हक और शक के अन्तर को समझनें का प्रयास कर रहे हैं। आईए आपको कुछ आंकडे दिखाएं ताकि आप समझ सकें की वाकई भाजपा और कांग्रेस में क्या अन्तर है। वामपंथी विचारधारा और तटस्थ प्रजाति के कुछ प्राणियों को मेरा यह लेख पसन्द न आए मुझे उम्मीद है लेकिन फ़िर भी देखिए और समझिए... यूपीए-१ कामयाब रहा था... देश नें कांग्रेस को एक बार फ़िर जनाधार दे दिया था। क्या किसी नें कभी गौर किया की यूपीए-१ की कामयाबी के पीछे कारण क्या थे, जी उसके पीछे कोई कांग्रेस की नीतियां ज़िम्मेदार नहीं थीं। उसके पीछे ज़िम्मेदार थे एनडीए के समय की एक कामयाब, मजबूत और नीतिगत आर्थिक विचार। यूपीए-१ के दौर की नाकामयाबी यूपीए-२ के दौर में सामनें आईं क्योंकि इन्होनें किसी भी योजनाओं को न आगे बढाया और न ही कोई अन्य मोर्चे पर मजबूती के संकेत दिए। देश का आर्थिक ढांचा चरमरा गया और हम फ़िर से सन नब्बे के रास्ते पर आ गये। न देश के आधारभूत ढांचे के विकास के लिए कोई प्रयास हुआ और न ही आन्तरिक सुरक्षा, फ़ूड गारंटी बिल जैसे मुद्दे समाधान तक पहुंचे।
मुम्बई स्थित वरली बांद्रा सी लिंक जिसको कांग्रेस राजीव गांधी समुद्र सेतु का नाम देकर फ़ूली नहीं समाती, दर-असल उसका विचार और शिलान्यास बाला साहेब ठाकरे ने १९९९ मे किया था। महज़ पांच वर्ष में पूरा होने वाला यह प्रोजेक्ट कांग्रेस के हाथ में जाते ही दस साल तक खिच गया। वैसे ही दिल्ली की मेट्रो जिसका श्रेय कांग्रेस लेनें से नहीं चूकती, वह भी बाजपई सरकार द्वारा शुरु की गई एक प्रक्रम का ही हिस्सा था। मित्रों बाजपई सरकार के दौर में देश में आधारभूत ढांचे को मजबूत करनें के लिए एक सार्थक प्रयास हुए थे। यह प्रयास किसी अन्य शासक नें कभी नहीं सोचे। किसी भी कांग्रेसी सरकार नें कभी भी देश की सडको को मजबूत और पक्का करनें का कोई प्रयत्न नहीं किया। यूपीए-१ और २ बाजपई सरकार के किए हुए कार्यक्रम को ही आगे चलाती दिखी वह भी कछुआ रफ़्तार से। हर परियोजना में अपनें और सभी के खानें पीनें के इंतज़ाम करते हुए।
- महाराष्ट्र में वामपंथ को तोडनें के लिए शिवसेना को खडा किया
- शिवसेना के वर्चस्व को तोडनें के लिए राज ठाकरे को खडा किया
- भिंडरावाले को बढावा देनें वाली कांग्रेस
- कावेरी जल विवाद का कभी समाधान निकालने का प्रयास न हुआ
- नेपाल से कोई जल सन्धि नहीं
- चीन पर कोई नीति नहीं
- पाकिस्तान पर कोई नीति नहीं
- आतंकवाद पर कोई कठोर कानून नहीं, केवल इस्लामिक वोट पर नज़र गडाए यह लोग आतंकवाद पर भी नरम रवैया अपनाते हैं
- कमजोर आर्थिक नीति
- कमजोर विदेश नीति
- भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र
- दंभी मंत्री
- दमन कारी सरकार :- यूपीए-२ के किए गये कार्यकलापों को याद रखिए
इसके अलावा भी बहुत से मुद्दे निकलेंगे... सबसे गंभीर मसला है देश की मीडिया का कांग्रेसी करण हो जाना। अब गुजरात में साबरमती नदी के किनारे पर लोग टट्टी करते थे। मोदी सरकार नें साबरमती नदी को साफ़ करके उसके किनारे पक्के करनें का सफ़ल प्रयास किया। इसकी रिपोर्टिंग एनडीटीवी नें कुछ ऐसे की, "मोदी की सरकार में लोगों का टट्टी करना भी दूभर हो गया" यह एक बानगी भर है।
जो मीडिया एक बार भी सोनिया गांधी की बीमारी का कारण नहीं खोज पाया, वह मीडिया भाजपा और एनडीए की हर खबर की कांग्रेसी ढंग से विवेचना क्यों करता है। सोच कर देखिए..... देश वाकई में बदलाव चाहता है.... कांग्रेस को हटाना और मोदी को लाना वाकई में इस समय की एक बडी जरूरत है। एक बिना रीढ की हड्डी वाले प्रधानमंत्री की जगह एक मजबूत शासक का आना बहुत बडी ज़रूरत है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें