आखिर धर्म की परिभाषा क्या है? यह प्रश्न शायद कुछ लोगों को अजीब लगे लेकिन फ़िर भी आज कल इस प्रश्न का उत्तर खोजना ज़रूरी बन पडा है? क्या धर्म वह है जो हर सुबह चैनलों पर बक बक करता हुआ दीखता है.. या फ़िर कैम्पों में भारी भरकम फ़ीस चुकानें के बाद तथाकथित बुद्धिजीवियों के साथ बैठकर गम्भीर मुद्रा में चिन्तन सीखता हुआ दीखता है.. आखिर धर्म है क्या? मेरे विचार से वाकई धर्म और आध्यात्म दो अलग अलग चीजें हैं... धार्मिक होना और आध्यात्मिक होनें में फ़र्क है। धर्म रुढिवादिता के दलदल में घसीटता है और आध्यात्म मनुष्य को प्रकाश की ओर ले जाता है। आध्यात्म मानव में विश्वास का संचार करता है और धर्म अन्ध-विश्वास का।
बचपन से आदर पूर्वक सभी किस्सों कहानियों से यही तो सीखा.. सच बोलो और साफ़ बोलो। बात को घुमाए फ़िराए बिना बोलो... मैं भगवान राम में मानवीय आदर्श देखता हूं.. अब कोई राम पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगाए तो क्या कहा जाए.. मेरे लिए राम से बडा आदर्श अपनी किसी भी धार्मिक पुस्तक या फ़िर किसी समाज सेवक में नहीं दिखता.. वह एक मानव के लिए आचार संहिता हैं। अब राम के प्रति मेरा यह अनुराग विश्वास जनित है... यदि इसमें अन्ध-विश्वास का पुट आ जाएगा तो फ़िर यह भी प्रदूषित हो जाएगा। विश्वास प्रेरणा है, संजीवनी है और अन्धविश्वास विष है।
आईए अब हम अपने मुख्य मुद्दे की ओर आते हैं। धर्म की परिभाषा को आज कल के दौर में कुछ ठेकेदारों नें अजीब रूप में प्रदर्शित की है, यह हज़ारो करोड के टर्न ओवर वाले व्यापारी खुले आम धर्म बेचते हैं। यह बहुत बडे एक्टर हैं... और बालीवुड को भी मात दे सकते हैं। कोई किरपा बेच रहा है तो कोई किस्से कहानियां... हज़ारो लोग चंदे के रूप में उनको अपना पैसा दान दे रहे हैं। और यह भगवान बने बैठे हैं....
मुझे तकलीफ़ है इन बाबाओं के अन्ध भक्तो से... जो पैसे लूटनें के लिए कलेक्शन एजेंट की तरह व्यवहार करते हैं। जो कभी पुलिस से भिड लेते हैं तो कभी जनता से... एक पल को अगर सच और झूठ का फ़ैसला कर लो तो समझ जाएगा की कितनी बडी बेवकूफ़ी कर रहे हो... और यह बाबा लोग... भाई पैसा देकर किराए पर बाऊंसर रखे जाते हैं सतसंग में? यह धर्म की कैसी परिभाषा लिख रहे हैं यह बाबा लोग... सरकार और सत्ताधारी दल इनसे एक बडी रकम चंदे के रूप में पाते हैं सो वह कोई कार्यवाही नहीं करते और यह अपनी मनमानी करते रहते हैं... हम और आप एक मूर्ख के समान ठगे से दोनों पक्षों को देखते रहते हैं...
इस पोस्ट के पीछे मेरा उद्देश्य है की आप और हम किसी भी प्रकार के अंध-विश्वास से बचें... और अपने बुद्धि का परिचय देकर सकारात्मक फ़ैसला करें। अब अंध-भक्ति चाहे भगवान की हो या इंसान की वह भयानक परिणाम ही लाएगी। सत्य सबसे बडा धर्म है.. और यही मानव के लिए सबसे उत्तम मार्ग है।
5 टिप्पणियां:
सटीक सामयिक चिंतन
सटीक सामयिक चिंतन
वाह, बहुत खूब। उम्दा लेखन।
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार ,बधाई. कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
बिलकुल सही कहा है आपने.
धर्म और अध्यात्म में अंतर है.
हालाँकि यहाँ मैं, धर्म को संप्रदाय के रूप में प्रचलन पर कह रहा हूँ..
वैसे तो धर्म की सही भावार्थ "सही, न्यायोचित" होता है|
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