अगस्त का महीना... हिरोशिमा और नागासाकी की तबाही को याद करने का महीना है। विध्वंस की पराकाष्ठा और मानवीय संवेदना के नाश को याद करने का महीना है। अमेरिका के पर्ल-हारबर में हुई जापानी कार्यवाही के बाद द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका को परोक्ष रूप से उतरना पड़ा (इसके पहले यह सिर्फ आग में चिंगारी देकर दूर से मजे ले रहे थे)। शक्तिशाली अमेरिका के कूदने के बाद जापान और उसके मित्र देश कमज़ोर पड़ गए और इस विध्वंसकारी युद्ध की पूर्णाहुति परमाणु हमले और लाखों लोगों की आहुति से हुई। आज जब परमाणु शक्ति से संपन्न अनेकानेक देश अपनी शक्ति के मद में चूर हैं वैसे में विश्व को बचाए रखने और इसका संतुलन बनाए रखने में देशों को महती भूमिका निभानी होगी।
अमेरिका सरीखे देश सदैव अपने स्वार्थ के लिए क्षद्म लड़ाइयां करते आये हैं। शीत युध्द का सहारा लेकर और वामपंथी शक्तियों को कमज़ोर करने के लिए अमेरिका ने ही इस्लामिक आतंक की पौध को तैयार की थी। वामपंथी शक्तियाँ (रूस और चीन) सदा से अमेरिका के लिए चुनौती बने रहे और इस इस्लामिक गठबंधन ने अमेरिका को शीत युद्ध में विजय दिलाने में महती भूमिका निभाई। अब यदि आप भूत पालेंगे तो वह आपको ही खायेगा और यही अमेरिका के साथ भी हुआ है। आज अमेरिका संभल चुका है और उसको अपनी इस गलती की बहुत बड़ी सजा मिल चुकी है। इसलिए आतंकवाद के खिलाफ विश्वव्यापक कार्यवाही में अमेरिका बहुत हद तक सम्मिलित है और उसे और देशों का समर्थन चाहिए। इस्लामिक आतंक आज विश्व के लिए आज एक बड़ा खतरा है और लगभग सभी देश इससे चिंतित हैं। आज जब आईएस जैसा संगठन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अपनी नापाक हरकतें फैलाने की बात करता है और उसे भारत से ही देशद्रोहियों का समर्थन मिलता है तब मुझे बहुत घृणा होती है। भारत में आज भी जयचन्दों की फ़ौज बैठी हुई है और यह देशद्रोही लोग हर प्रकार से निजी स्वार्थ के लिए देशहित से समझौते कर सकते हैं। वैसे अभी सत्य असत्य और धर्म अधर्म पर भारी है इसलिए हमारा अस्तित्व बना हुआ है।
आज प्रत्येक भारतीय (चाहे उसकी कोई भी जाति हो), समझे अपनी संस्कृति को। धर्म और आध्यात्म, योग और परमात्म हमारा सत्य है। विश्व बंधुत्व और मानवमात्र की सेवा हमारा सत्य है। भगवान राम, कृष्ण और विवेकानंद का देश है भाई। भ्रमित युवा, भ्रमित शिक्षा, खुले और उद्विग्न समाज में फैले कुचक्र मानवीय मूल्यों को कम कर रहे हैं। अब समय आ गया है जब सत्य को समझा जाए और अपने मूल्यों की ओर चला जाए। अब भी न चेते तो विनाश निश्चित है।
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