कांग्रेस सांसद नहीं चलने दे रही, उसे लोकतंत्र पर ख़तरा दीख रहा है। सोनिया और राहुल के एक धोखाधड़ी मामले में सत्र न्यायालय से मिले अदालत हाज़री के सम्मन मात्र से यह तिलमिला गए हैं। मित्रों उनका तिलमिला जाना और संसद न चलने देना एक तरह से कांग्रेस की भारतविरोधी मानसिकता को ही दर्शाता है। कांग्रेस राजनीति के निम्नतम स्तर पर आ गयी है, उसे अब सही और ग़लत का फ़र्क़ समझना पूरी तरह से बन्द हो गया है। उसपर भी दरबारी क़िस्म के चरण चाटुकार कांग्रेस पार्टी को और गर्त में धकेले दे रहे हैं। मित्रों लोकतंत्र में एक मज़बूत विपक्षी दल का होना आवश्यक होता है लेकिन यहाँ सभी विपक्षी दल सिर्फ़ झूठ और फ़रेब की राजनीति पर उतर आए हैं। मीडिया में छुपे हुए उनके चारण भाट सदैव इसी झूठ को ज़ोर से चिल्लाने और ब्रेकिंग न्यूज़ बनाने को तत्पर हैं। सोशल मीडिया ने इस समय सबसे अहम रोल निभाया है। मीडिया और कांग्रेस, आआपा जैसे दलों के कई झूठ का पर्दाफ़ाश इसी सोशल मीडिया ने ही किया है।
वैसे भारत को कांग्रेस से अधिक कांग्रेसी मानसिकता ने चोट पहुँचाई है। घर-घर में नाकारों की फ़ौज, मुफ़्त का माल बटोरने की मानसिकता। सरकारी कर्मचारी का ऑफ़िस देर से आना, मामले को लटकाना, कमाई की उगाही के तरीक़े खोजना। यह सब कुछ ऐसी बातें हैं जो ग़ौर करने वाली हैं। आज इसी कांग्रेसी मानसिकता के ध्वजवाहक हर ओर हैं। सुनने में आया है कि केन्द्रीय कर्मचारियों के किसी महासंघ ने अगले चुनाव में मोदी के ख़िलाफ़ जाने का फ़ैसला लिया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, हमने महान उत्तर प्रदेश द्वारा नक़ल विरोधी अध्यादेश वापसी के मुलायम सिंह के वायदे पर भाजपा को हारते देखा है और जातिवाद के कुचक्र में जकड़े बिहार द्वारा लालू को चुनलेना भी देखा है। जातिवाद से जकड़ी और जामा मस्जिद के इमाम द्वारा दिए गए फ़तवे के कारण पड़े एकतरफ़ा वोट पाने से दिल्ली की सत्ता पर बैठे केजरीवाल को भी देखा है।
जो व्यक्ति दिन में अठारह घंटे काम करता हो, जिस पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप न हो, जो बैलगाड़ी और मर्सीडिज दोनों को एक साथ लेकर चलने, विज्ञान और आध्यात्मिक भारत का मंत्र देता हो, धर्म और संस्कृति, ब्राण्ड इंडिया की बात करता हो, मुफ़्त की सब्सिडी की जगह आत्मसम्मान की बात करता हो, मुफ़्तख़ोरी और बेरोज़गारी की जगह रोज़गार और अवसर की बात करता हो ऐसे व्यक्ति की आलोचना के लिए भर भर के झूठ लिखा जाना क्या ठीक है?