पत्रकार कभी भी निष्पक्ष राजनीतिक सोच नहीं रख सकता क्योंकि वह भी एक मनुष्य है और उसका भी अपना एक दृष्टिकोण है। इस दृष्टिकोण में वह किसी न किसी सोच से प्रभावित होगा ही, वह भले कोई भी राजनैतिक दल हो। कोई पत्रकार निष्पक्ष रहने का प्रयास करे वह या तो झूठ बोलकर सामने वाले को खुश रखने का प्रयास करेगा या फिर सत्ता परिवर्तन के बाद विपक्षी दल के सत्ता में आने के बाद खुद की दुकानदारी चलाने के लिए चाटुकारी करेगा। फ़िलहाल भारत में हमेशा से यही होता आया, कांग्रेसी सोच वाले पत्रकार, एमएलए, एमपी के रिश्तेदार पत्रकारिता को चमकाए रहे और खबरिया दलाली चमकती रही। निष्पक्षता का तो खैर जाने की दीजिये लेकिन मुख्य रूप से पत्रकारिता सत्ता की गलियारों में रेड कार्पेट पर सुख और सुकून से चलती रही। प्रधानमन्त्री के साथ विदेश यात्राओं में जाना, इंटरव्यू के नाम पर मौज उड़ाना, पूरी ऐश चलती रही।
वामपंथी सोच वाले पत्रकारिता के विद्यार्थियों का तो कहना ही क्या! यह तो पैदा ही क्रान्ति करने के लिए हुए थे सो क्रांति ही करेंगे। हर जगह क्रांति, बस स्टैंड में क्रांति, बस में जगह के लिए क्रांति, स्कूल में क्रांति, घर में बाहर में हर जगह क्रांति ही क्रांति, इस क्रांतिकारी सोच के जलजले को शांत करने के लिए एक पेग लेना ज़रूरी हो जाता है सो एक स्कॉच की बोतल से इस क्रांतिकारी का दिमाग शांत होता है। यह क्रांति फिर स्त्री पुरुष की समानता के नाम पर किसी भी स्तर पर जाने को तैयार होती है, अब वह सब जायज है क्योंकि क्रांति तो करनी ही है न, क्रांति की ज्वाला को शांत करने के लिए कभी शराब तो कभी अफीम तो कभी पोर्न खाया पिया और देखा जाता है... यह सब करने के बाद ही क्रांतिकारी के अंदर की आग शांत होती है। इस क्रन्तिकारी सोच में दाढ़ी बनाने, नहाने, साफ़ सफाई जैसी छोटी और तुच्छ चीजो के लिए समय ही कहाँ मिल पाता है सो सभी वामी विद्यार्थी एकदम स्कॉलर दिखने के लिए दाढ़ी बढ़ाए रहते हैं, यह उनका ड्रेस कोड है, जो जितना अस्त व्यस्त दिखेगा उसे पत्रकारिता उतना ही अच्छा प्लेसमेंट मिलेगा।
जब इनकी क्रन्तिकारी सोच देश की सीमाओं के परे पाकिस्तान परस्ती पर उतर जाती है तब हम जैसों को तकलीफ होने लगती है। मामला देश के सम्मान से जुड़ा हुआ हो तब कोई समझौता नहीं...
समझ में आया या नहीं?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें