आज यूँ ही शाम को अमेरिका में घरेलु कामकाज के लिए बाई के बारे में विषय निकला और फिर देवयानी खोबरागड़े की चर्चा निकली। कैसे देवयानी को घरेलु नौकरानी को न्यूयॉर्क स्टेट के नियम के उल्लंघन और वीज़ा में बताये गए प्रति घंटे की मजदूरी से कहीं कम मजदूरी देने पर गिरफ्तार किया गया था और भारत अमेरिका के बीच शायद अब तक का सबसे बड़ा राजनयिक तनाव हो गया था।
मैं विदेशी मामलों का कोई विशेषज्ञ नहीं लेकिन अपनी समझ से मुझे भारत की विदेश नीति में बहुत कुछ विरोधाभास नज़र आता है, यह एकदम साफ़ नहीं है और यह हमेशा भेदभाव से भरी हुई रही है। यदि आपको इसमें कोई संदेह है तो फिर आप दो मामले ले लीजिये... देवयानी खोबरागड़े और कैप्टन सौरभ कालिया... आप यह पूछ सकते हैं कि देवयानी और कैप्टन के मामले में समानता क्या है? तो मित्रों एक गम्भीर समानता है और यह दोनों की मुद्दे भारत की विदेश नीति से जुड़े हुए हैं।
आइए एक तुलना करते हैं, देवयानी और कैप्टन के मामले की:
कैप्टन कालिया:
1. पंद्रह मई 1999 को भारतीय सेना के कैप्टन कालिया, पांच सिपाही: (अर्जुन राम, भंवर लाल, भीका राम, मूला राम और नरेश सिंह) के साथ पेट्रोलिंग में थे जब उन्हें पाकिस्तानी फौजियों ने पकड़ लिया था।
2. प्रताड़ना: (यहाँ कुछ सवेदनशील शब्द हैं सो कृपया ध्यान से पढ़े): पोस्ट-मोर्टेम रिपोर्ट से जाहिर हुआ कि सैनिकों के शरीर पर सिगरेट से दागे जाने के कई निशान थे, आँख और कान को लोहे की रॉड से फोड़ दिया गया था। दांत, सर, और लगभग सभी हड्डियाँ तोड़ दी गयी थी, होंठ और नाक और अंग काट दिए गए थे। ऐसे भयंकर अमानवीय प्रताड़ना के बाद सर में गोली मार दी गयी थी।
भारत का रवैया?
1. कैप्टन के पिता को अपने ही बेटे को इन्साफ दिलाने के लिए लड़ाई शुरू करनी पड़ी, किसी भी राजनयिक का कोई समर्थन नहीं मिला।
2. कैप्टन के मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाने की मांग को लेकर कितनी ही चिट्ठियां लिखी गयी, कितने ही प्रोटेस्ट हुए - लेकिन कभी किसी भी सरकार ने इसको लेकर गम्भीरता पूर्वक आचरण नहीं किया।
कैप्टन के पिता इस मामले को लेकर आज भी इन्साफ के लिए लड़ रहे हैं, उन्होंने ठीक ही कहा था "मैं भारतीय होने पर शर्मिंदा हूँ, इस देश के राजनेता रीढ़ की हड्डी के बिना ही हैं"
उन्होंने कई विदेशी देशों को भी संपर्क किया लेकिन मामला जून 2015 में मोदी सरकार के द्वारा बंद कर दिए जाने के बाद ख़त्म हो गया। कैप्टन को लेकर भारत सरकार का रवैया बेहद बचकाना और निराशाजनक था, धिक्कार है भारत के सभी राजनेताओं पर.....
देवयानी खोब्रागडे
1. दिसंबर 2013 में न्यूयॉर्क स्टेट नियम के अनुसार वीज़ा को लेकर की गयी एक धोखाधड़ी और घरेलू नौकरानी के बारे गलत जानकारी दी जाने को लेकर गिरफ्तारी हुई
2. देवयानी को गिरफ्तार किया गया और उन्हें जिस धारा में बुक किया गया उसमे बॉडी-कैविटी सर्च "स्ट्रिप सर्च" किया जा सकता था।
भारत का रवैया:
1. भारत ने दिल्ली में स्थित अमेरिकी दूतावास के आगे सुरक्षा बैरियर हटा लिए
2. भारत ने अमेरिका से बिना किसी शर्त के माफ़ी मांगने और मामला वापस लेने के लिए कहा, और भारत ने भारत में अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए.... महज़ एक हफ्ते में अमेरिका ने मामला वापस लिया और यह गतिरोध ख़त्म हो गया। इस जीत में भारत की एक बहुत बड़ी हार थी क्योंकि किसी ने इसकी जांच नहीं की कि देवयानी की गलती थी या नहीं? मैडम का आदर्श घोटाले से कोई लेना देना है? मैडम को फ़्लैट किस सुविधा के तहत मिला?
इन दोनों स्थितियों की तुलना आज मैंने इसलिए की क्योंकि यही हमारा सत्य है, देवयानी दलित समुदाय से आती हैं, जो कि वोट बैंक है, सौरभ कालिया फौजी थे और कोई वोट-बैंक नहीं थे। जब जब कैप्टन सौरभ कालिया का ज़िक्र आता है, खुद के भारतीय होने पर धिक्कार होता है, वाकई वोट बैंक नहीं तो न इन्साफ मिलेगा और न कोई सुनवाई होगी... भले आप कैप्टन कालिया हों या डॉक्टर नारंग।
धिक्कार ऐसे लोकतंत्र पर!!!
4 टिप्पणियां:
This is unfortunate!
धिक्कार है ऐसे नीति का।
This is unfortunate!
धिक्कार है ऐसे नीति का।
This is unfortunate!
धिक्कार है ऐसे नीति का।
सच है रीड़ की हड्डी राजनेता ही नहीं और भी कई जगह नहीं है इस देश के लोगों में जो हमेशा महसूस कराती है आदमी का लिजलिजा छिपकली हो जाना । अच्छा आलेख ।
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