आदरणीय रवीश कुमारजी, प्रणाम... अमेरिका में होने के कारण आपका प्राइम टाइम टीवी पर नहीं देख पाया लेकिन अभी यूट्यूब पर देखा.... आज सुबह लोगों ने बताया कि एनडीटीवी के प्रणव रॉय के यहाँ सीबीआई का छापा पड़ा है। मामले को समझने पर लगा कि यह धोखाधड़ी का मामला है और सीबीआई की कार्यवाही काफी समय से लंबित थी। आप तो जानते ही हैं कि ऐसे मामले लंबे खिंचते हैं सो न जाने कितने महीने पुराने मामले की चार्जशीट पर सीबीआई ने आज यह कार्यवाही की होगी।
वैसे आज जब आपका प्राइम टाइम देखा तो लगा आप काफी क्रोधित हैं, आप न जाने क्या क्या कह गए लेकिन यकीन मानिए मुझे हैरानी नहीं हुई क्योंकि आपका चरित्र मुझे मालूम है। आप तो ज्ञानी हैं इसलिए चार सौ बीसी के मामले पर भी आप विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं। आपने इस मामले की ऐसी प्रतिक्रिया दी जैसे कि मानो सरकार ने आपातकाल लगा दिया हो और आप उसके विरोध में सत्याग्रह पर निकलने की तैयारी में हों।
आज के प्राइम टाइम में आप कहते हैं, "तो आप डराइये, धमकाइये, पूरी रिपोर्टिंग टीम को से लेकर सबको लगा दीजिये। ये लीजिये हम डर से थर थर काँप रहे हैं।" जी आपको थर थर कांपना भी चाहिए और उसकी वजह आप जानते हैं।
आप कहते हैं कि अब आपको डर लगता है: जी अब आपको डर लगना चाहिए भी क्योंकि आपने लगातार झूठ बोलकर पत्रकारिता को बदनाम किया है। आपको डर लगने की वजह इसलिए भी है क्योंकि आप अपने देशद्रोही एजेंडे पर काम करते हैं। आपको इसलिए भी डर लगना चाहिए क्योंकि आप लगातार देश के शत्रुओं को लाभ पहुंचाते रहे हैं। आपको डर लगने की एक वजह और भी है कि अब देश की जनता आपकी असलियत जान चुकी है और आपकी पैतरेबाजी और शातिरपने का उत्तर देना लोगों ने सीख लिया है। अब आपको डर इसलिए भी लगने लगा है क्योंकि आपका झूठ बेनकाब हो जाता है जब आप गाय को बैल बोलते हैं और आपके एजेंडे को बेनकाब करने वाले व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आज़ादी की परवाह किये बिना बहस से निकाल देते हैं? आपको डर इसलिए भी लगता है कि आपकी एकतरफा "अभिव्यक्ति की आज़ादी" का सच अब लोगों के सामने आ गया है। अब आप सच के आईने में अपने वीभत्स चेहरे को देखकर और कानून के डंडे को सामने पाकर डर गए हैं ।
यदि आपमें पत्रकारिता का कोई भी लक्षण होता तो आप दावा करते कि जांच करा लो और गलती मिले तो सजा दो... आप बताते कि प्रणव रॉय की संपत्ति खरबों में होने के पीछे का सच क्या है? लेकिन मुझे पता है कि आप यह सब नहीं करेंगे।
अंत में आप कह गए कि "मिटाने की इतनी ही खुशी है तो हुजूर किसी दिन कुर्सी पर आमने सामने हो जाइयेगा। हम होंगे, आप होंगे और कैमरा लाइव होगा" जी लेकिन फिर आप उस बहस में गाय को बैल बताने का विरोध करने वाले को बाहर तो नहीं कर देंगे? यह तो सुनिश्चित कीजिए कि पत्रकारिता निष्पक्ष होगी? अभिव्यक्ति की आज़ादी का रोना पीटने वाले आप जब बहस में बुलाएंगे तब वहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी होगी न? वैसे जवाब देने की जल्दी नहीं है, जिन लोगों का काला पैसा आप सफेद करते हैं उन लोगों से पूछ लीजियेगा और सोच कर बताइयेगा।
-देव
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1 टिप्पणी:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’विश्व महासागर दिवस और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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