परसेप्शन बहुत अजीब चीज है लेकिन इसे ठीक करने के लिए कठिन प्रयास करने होते हैं... बिहार दिवस पर एक अनुभव साझा करना चाहता हूँ... ठीक ठीक तो याद नहीं लेकिन शायद सतासी अठासी की बात होगी... स्कूल में नए मास्टर साहब ने परिचय के दौरान यूँ ही नाम पूछा.. मेरे नाम बताने पर वह बोले कि वाह बिहार के बच्चे तो पढ़ने में तेज़ होते हैं, देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद बिहारी थे, यहाँ तक कि आर्यभट्ट और गुरु गोविंद सिंह से लेकर महात्मा बुद्ध तक सभी देश की महान विभूतियाँ हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति में बिहार का अभूतपूर्व योगदान है और यहाँ तक की जब देश की सत्ता ने आपातकाल लगाया तब भी बिहार ने ही देश को दिशा दी। अब उस उम्र में कुछ समझ नहीं आया लेकिन आज भी मुझे अक्षरशः यह याद है क्योंकि पूरी कक्षा के सामने सिर्फ बिहारी होने के कारण शाबाशी मिली थी। ठीक बीस वर्ष बाद 2006 अप्रैल में जब मैं जॉब चेंज करना चाहता था तब इंटरव्यू के दौरान बन्दे ने मुझसे बोला "ओह वाउ यू आर फ्रॉम लालू'स बिहार"... अब उसे मैंने क्या उत्तर दिया वह यहाँ लिख पाना संभव न होगा लेकिन यह अनुभव अजीब सा था। उसके बाद फिर मुम्बई में शिवसेना और मनसे के कुछ लोगों की वोट बैंक राजनीति और उनका उप्र और बिहार के लोगों को लेकर उग्रवादी रवैया भी देखा...
लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि पंद्रह बीस साल में बिहार को लेकर बाकी देश का रवैया इतना उपहास से भरा और अजीब सा हो गया? मित्रों, इसका ज़िम्मेदार बिहार और बिहारी खुद है। जब देश और देश की जनता विकास के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहती थी तब बिहार ने जातिवाद का लपूझन्ना पकड़े रहना पसंद किया। आज भी बिहार में ब्राह्मण, क्षत्रिय, राजपूत, दलित और मुस्लिम हैं लेकिन इंसान नहीं हैं सो बिहार के इसी गलत फैसले से आर्यभट्ट और कौटिल्य का बिहार अपराध का गढ़ बन गया। परसेप्शन अजीब सी चीज है और इसे बदलने के लिए सामाजिक क्रांति की आवश्यकता होती है जो मौजूद स्थिति में असंभव ही है... आज भी बिहार की जनता का रवैया जातिवादी और भयंकर उतार चढ़ावों से युक्त और दिशाहीन ही है। किसी भी राज्य की बहुमत वाली सरकार उस राज्य की जनता के विचार का ही प्रतिबिम्ब है सो जहाँ 243 सदस्यों की विधानसभा में 158 पर आपराधिक और गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हों वहाँ सरकार की नीयत और उसका चालचलन क्या ही होगा? जब जनता जातिवाद की हद पार कर अपराध को भी चुनाव में जिताए तो यदि बाकी का देश उसका मजाक बनाए तो तकलीफ क्या है?
हाँ कौटिल्य और आर्यभट्ट का बिहार था कभी लेकिन अब जातिवादी जनता और अपराधियों का बिहार है....
2 टिप्पणियां:
काश इतनी सी बात राजनीति कर अपना उल्लू सीधा करने वाले लोग समझ पाते
जातिवाद का दंश यूपी, बिहार ही नहीं अन्य राज्यों में भी घुन की तरह खाये जा रहा है राज्य को देश को।
सार्थक सामयिक चिंतन प्रस्तुति।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है? ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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