शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

भारत और चीन :- बढती अर्थ-व्यवस्थाएं या बढ़ता असंतुलन


एक पुरानी कहावत है आप इतिहास बदल सकते हैं मगर भूगोल नहीं ... भारत और चीन, विश्व की सबसे तेजी से उभरती दो उभरती शक्तियां... दो आगे बढती हुई अर्थ-व्यवस्थाएं | दो ऐसी शक्तियां जिनसे विश्व को बहुत अपेक्षाएं हैं और खतरे भी | यूरोप और अमेरिका दोनों के लिए बीते वर्ष की आर्थिक मंदी बहुत दुःख दाई सिद्ध हुई | पूरी दुनिया ने देखा कैसे भारत और चीन ने ना सिर्फ इस मंदी का सामना किया वरन अपनी विकास दर को बनाये रखा | अब दुनिया खास तौर पार अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन अपनी विदेश निति में भारत और चीन को विशेष दर्जा देने पर मजबूर हैं | साथ ही दक्षिण एशिया में हो रहे सामरिक असंतुलन और अपने बर्चस्व के लिए अमेरिका पाकिस्तान को अपने स्वाभाविक मित्र के तौर पर भी देख रहा है | इस बदलते समीकरण में भारत को इस क्षेत्र को संतुलन में रखने के लिए और शक्तिशाली होना ही होगा |

यदि भारत और चीन के आज के हालत को देखा जाये तो चीन गाहे बगाहे भारत को यह चेताने से बाज नहीं आता की भारत को तिब्बत को लेकर क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए... | अब चीन खुद अपने गिरेबान में देखने की जगह भारत पर दबाव की राजनीती में विश्वास रख रहा है | भारत सरकार की ढुल-मुल नीतियां और चीन के प्रति ज़रूरत से ज्यादा रक्षात्मक रवैया दूरदृष्टि से घातक सिद्ध हो सकता है | एक तो चीन तिब्बत पर अवैध कब्जा जमाये हुए है और भारत को लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के लिए आगाह करता रहता है | इससे ना सिर्फ क्षेत्र का संतुलन बिगड़ रहा है और लगातार बढ़ रही चीन की गतिविधियाँ हमें सोचने पर मजबूर कर रही हैं | नींद में सो रही भारत सरकार कब जागेगी, क्यों आज भी हमारी कोई ठोस चीनी विदेश नीति नहीं है | क्यों आज भी हमारी सीमा बंगला देश और नेपाल के रस्ते खुली है और आतंकिओं को देश में घुसने और यहाँ लूटपाट मचाने की स्वतंत्रता दे रही है | जितने भी नक्सली समूह भारत में सक्रिय है वह सभी पाकिस्तान या चीन से सहायता प्राप्त कर रहे हैं, और भारत की सरकार उनका कोई समाधान तलाशने के स्थान पर फाइव-स्टार होटल में बैठ कर रणनीति तय कर रही है |

आज चीन ना केवल भारत को अ-स्थिर कर रहा है बल्कि पिछले दरवाजे से पाकिस्तान के रास्ते भारत विरोधी गतिविधिओं को भी समर्थन कर रहा है | शक्ति-संतुलन क्षेत्र की शांति के लिए बहुत आवश्यक है और भारत को अपनी रण-नीतिओं को तय करते समय सामरिक रूप से अधिक बलवान होने पर भी ध्यान देना होगा.. | हर मोर्चे पर सफल हो रही हमारी अर्थ-व्यस्था पडोसिओं की आँखों में खटक रही है और भारत को हर मोर्चे से अपनी तैयारी को मजबूत करना होगा... और साथ ही साथ चीन को उसकी बन्दर घुड़की के लिए उत्तर भी उसी भाषा में देना होगा.. | शठे साठ्यम समाचरेत अर्थात दुष्ट के साथ सदाचार व्यव्हार विनाश को निमंत्रण है सो समय रहते चेत जाना भारत के लिए समय की मांग है और विश्व शांति के लिए एक बड़ी पहल भी ...

देव कुमार
नवम्बर, १३, २००९

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