गुरुवार, 24 जनवरी 2013

लेफ़्ट, राईट, सेंटर और हम...

मित्रों, लेफ़्ट राईट और सेंटर... तीनों के बारह बजे हुए हैं। सच कहा जाए तो जो कुछ यह सभी दल कर रहे हैं और जिस प्रकार की क्षवि प्रस्तुत कर रहे हैं वह दुर्भाग्यपूर्ण है। चाहे कुछ भी कहें लेकिन दोनों बडे दलों पर परिवार हावी हैं और रिमोट से चलायमान होना इनकी नियति है। ऐसे में देश आखिर करे तो क्या करे? 

कांग्रेस पर परिवार वादी होनें का आरोप लगता है और वह वाकई में हिन्दुस्तान की दुर्दशा के लिए बडे हद तक ज़िम्मेदार है, लेकिन विकल्प हीनता की स्थिति में आखिर जनता करे भी तो क्या करे.... वाजपयी जैसे व्यक्तित्व के कारण भाजपा सत्ता शिखर तक पहुंची लेकिन क्या वह स्थिति अभी भी है? भानुमती का पिटारा बन चुके एनडीए के सभी दल कैसी मिसाल प्रस्तुत कर रहे है? आखिर राजनीति किस रसातल में जा रही है? केन्द्रीय गॄह मंत्री जब आरएसएस और भाजपा को भगवा आतंकवाद से जोड देते हैं और खुद को हिन्दुत्व लाईन में गिननें वाली भाजपा उसका पुरज़ोर विरोध करनें के स्थान पर इस बात को भी तय नहीं कर पाती की उसके शिखर पर कौन बैठेगा? मेरे मन में खिन्नता है क्योंकी मैं स्वयं संघ से जुडा रहा हूं और संघ की पॄष्ठभूमि राष्ट्रवादी और अखंड भारत की पक्षधर रही है। संघ का क्या योगदान है यह किसी कांग्रेसी को बतानें की आवश्यकता नहीं है। यह बात स्वय़ं कांग्रेस भी मानेगी लेकिन यह उसकी वोट बैंक की राजनीति है जो दिग्गी राजा हाफ़िज़ सईद जैसे आतंकी को साहब और शिंदे साहब संघ को आतंकी घोषित कर देते हैं। यह राजनीति की सबसे निम्न स्तरीय तुलनाएं हैं। 

मित्रों जब कांग्रेस को अंग्रेजों से सत्ता मिली तो विरासत में कई टिप्स भी मिलें... मतलब हिन्दुस्तानियों पर राज करनें का मूल मंत्र "बांटों और राज किए जाओ" का उसनें आत्म सात किया। इसीलिए तो कभी एक साथ एक मंच पर आनें का और एकीकरण का कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। उसका नतीज़ा यह है की आज भी हम बंटे हुए हैं.... कोई उत्तर भारतीय है, कोई दक्षिण भारतीय... कोई हिन्दु है, मुसलमान है और सिख है, जैन हैं, इसाई और पारसी हैं... यह सभी वोटर हैं... मुसलमान रीझ जाएं उसके लिए कांग्रेसी किसी भी सीमा तक जानें के लिए तैयार हैं। समाजवादी पार्टी की हरकतें तो वाकई निन्दनीय हैं।

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समाजवादी पार्टी आरोपियों को छुडवानें के लिए इस हद तक गई? भला हो न्यायप्रणाली का जो आज भी सक्रिय है, अन्यथा न जानें क्या हो गया होता। अब संसद और न्यायिक व्यवस्था में टकराव की स्थिति बनती दीख रही है,  न्यायालयें अब उन मामलें में भी फ़ैसले देती दीख रहीं है जो पहले दीगर होती थीं.. इनके पीछे कारण हमारी पंगु होती राजनीतिक व्यवस्था हैं। मेरी आज तक समझ में नहीं आया की आखिर मुस्लिम भारत में केवल वोट बैंक क्यों हैं? आखिर उनके जीवन प्रणाली में कोई फ़ायदा आया आज तक उनके चुनाव से? फ़िर क्यों न वह जातिय समीकरण से उपर उठकर सकारात्मक रूप से अपनें विकास को देखे? आखिर दिक्कत क्या है... आखिर मुस्लिम वोटर को रिझानें के लिए हाफ़िज़ सईद को "साहब" से संबोधित करना कहां तक न्यायसंगत है।

मित्रों हिन्दुस्तान की आज़ादी से लेकर आज तक हमनें कभी इंसान नहीं गिने, राजनीति के इस रूप का हमनें कभी विरोध नहीं किया। हम स्वयं इसी गुणा-गणित में लगे रहे की किस क्षेत्र की जातिय स्थिति क्या है और वहां फ़लां फ़लां पार्टी नें इस जाति का उम्मीदवार खडा किया है तो क्या स्थिति बनेंगी... क्या हम उम्मीदवार की योग्यता को देखते हैं? यदि नहीं तो फ़िर हमें बोलनें का भी कोई अधिकार नहीं... मैं रोज कई लोगों से मिलता हूं और उनमें से लगभग सभी आजकल की स्थिति से दुखी हैं... सरकार को गाली देते हुए थकते नहीं... और न जानें कैसे कैसे विश्लेशण करते हैं... मैने केवल इतना पूछा की क्या आपका वोटिंग लिस्ट में नाम है... तो उत्तर देते हैं की वोटिंग देने में उनका विश्वास नहीं.. मित्रों यह एक विचित्र विडम्बना है क्योंकी भारत की राजनीति यदि आज इस स्तर तक पहुंची है तो फ़िर उसे उठाने के लिए वोटिंग प्रणाली में विश्वास आना ज़रूरी है। यदि शत-प्रतिशत चुनाव हो तो संसद का एक अलग ही रंग होगा... वाकई में यदि ऐसा हो तो फ़िर एक ही दिन में स्थिति उलट हो जाएगी। तिहाड के योग्य व्यक्ति जो आज संसद में पहुंचे हैं तो वह अपनें असल ठिकानें पहुंच जाएंगे... जातिगत राजनीति करनें वाले दल दुम दबा के निकल लेंगे। हाफ़िज़ सईद को "साहेब" कहनें वाले मूंह काला कराके किसी कोनें में दुबक के बैठे मिलेंगे।

विकास यात्रा में हम बाकी सभी देशों से पिछड गये हैं, चीन आज हमसे कहीं आगे है... हम आई-टी में आगे होनें का दम ज़रूर भरते हैं लेकिन उसमें भी हम टेक्नोलोजी के उपभोक्ता अधिक हैं.. हम कुछ नया बनानें में आगे नहीं... ठीक ऐसे ही हर क्षेत्र में देखिए.. दुनियां के हर कोनें में आपको हिन्दुस्तानी दिखेंगे लेकिन बाहर... यहां हम केवल बक बक करनें में आगे हैं।  सुरक्षा देखिए... हमारे हथियार विदेश से आते हैं... हम इस क्षेत्र में आत्म निर्भर कभी नहीं बन सकते। चीन ज़ब बैलेस्टिक मिसाईल का परीक्षण करता है तो हम मूंह बाए उसे भारत के ऊपर से हिन्द महासागर में जाते हुए देखते हैं और जब वह दुनियां की सबसे तेज़ रेल का उदघाटन करता है तो भी उसे वक्र दृष्टि दे देखते हैं.... आखिर भारत पीछे क्यों रह गया?

न कोई राजनीति बन्द होगी और न ही यह नेता हमारे लिए कुछ सोचनें वाले हैं। सरकार केवल चूसनें और माल दबाके खूब मौज मनानें के मूड में है.. उसे मालूम है की देश की जनता मूर्ख है और उसे ही वोट देगी... और विपक्ष का तो कहना ही क्या...  वह तो इस छलावे में है की सरकार से त्रस्त जनता उसे ही वोट देगी.... न कोई दिशा है और न कोई मार्ग दर्शन का माद्दा लेकिन सभी खुशमिज़ाजी में हैं।

मित्रों जाग जानें और जो न जागे उसे जगानें का समय है... अपनी ताकत को पहचानिए... वोटिंग लिस्ट में अपना नाम लिखाईए... और वोट डालनें के लिए हर सम्भव प्रयास कीजिए... आपका एक वोट किसी अपराधी को आपका प्रतिनिधि बनानें से रोकेगा। आपका प्रतिनिधित्व कोई पढा लिखा और योग्य व्यक्ति करेगा।

सोचिए ज़रा...

(इस पोस्ट को मैनें अपने टैब से लिखा है सो कोई वर्तनी त्रुटि के लिए क्षमा प्राथी हूं)

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