मित्रों, आज की कांग्रेस जो खुद को गांधी वादी कहती है और शहरी करण और ग्लोबलाईज़ेशन के ज़रिए देश की मुद्रा की कीमत को रसातल में पहुंचा कर खुद की तरक्की पर स्वयं ही खुश होती है... उस गांधी की विचारधारा की सबसे अधिक दुर्दशा कांग्रेस ने ही तो की है। आज स्वदेशी जैसे मुद्दे कांग्रेस को टीस की तरह चुभते हैं, कोई असली गांधीवादी विचारधारा का व्यक्ति आ जाए तो कांग्रेस को कापीराईट उल्लंघन जैसा लगता है। मित्रों आईए आपको गांधीजी की आखिरी चिट्ठी से रूबरू कराते हैं। यह आखिरी वसीयतनामें के तौर पर गांधीजी के द्वारा देश को दी गई आखिरी विरासत थी। इसमें गांधीजी नें स्वदेशी, ग्रामीण विकास, पंचायत इकाई और आत्मनिर्भरता की बात की थी, लेकिन नेहरू की नीति में विकास केवल शहरीकरण और उद्योगीकरण से ही हो सकता था। वैसे दिक्कत यह भी रही की हम ना तो शहरीकरण में ही विकास कर पाए और न ही ग्रामीण भारत को ही बचा कर रख पाए। हमनें शहरों के विकास के लिए ग्रामीण भारत का दोहन किया और जो कुछ भी योजनाएं बनी उसके पैसे को कुर्ता पैजामा खा गया... भारत भ्रष्ट बना और दुनिया के नक्शे पर हमारी पहचान एक गरीब देश की ही रही। सोने की चिडिया..... थी... आज तो अजीब सा भारत है। लीजिए इस आखिरी वसीयतनामें पर नज़र डालिए और सोचिए हम कहां पहुंच गये?
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गांधीजी का आखिरी वसीयतनामा
[कांग्रेस के नये विधान का नीचे दिया जा रहा मसविदा गांधीजी ने 29 जनवरी, 1948 को अपनी मृत्यु के एक ही दिन पहले बनाया था। यह उनका अन्तिम लेख था। इसलिए इसे उनका आखिरी वसीयतनामा कहा जा सकता है। ]
देश का बंटवारा होते हुए भी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्धारा मुहैया किये गये साधनों के जरिये हिन्दुस्तान को आजादी मिल जाने के कारण मौजूदा स्वरूप वाली कांग्रेस का काम अब खतम हुआ- यानी प्रचार के वाहन और धारा सभा की प्रवूत्ति चलाने वाले तंत्र के नाते उसकी उपयोगिता अब समाप्त हो गई है। शहरों और कस्बों से भिन्न उसके सात लाख गांवो की दृष्टि से हिन्दुस्तानी की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। लोकशाही के मकसद की तरफ हिन्दुस्तान की प्रगति के दरमियान फौजी सत्ता पर मुल्की सत्ता को प्रधानता देने की लडा़ई अनिवार्य है। कांग्रेस को हमें राजनीतिक पार्टियों और साम्प्रदायिक संस्थाओं के साथ की गन्दी होड़ से बचाना चाहिये। इन और ऐसे ही दूसरे कारणों से आखिल भारत कांग्रेस कमेटी के नीचे दिये हुए नियमों के मुताबिक अपनी मौजूदा संस्था को तोड़ने और लोक-सेवक- संघ के रूप में प्रकट होने का निश्चय करे। जरूरत के मुताबिक इन नियमों में फेर फार करने का इस संघ को अधिकार रहेगा।
गांववाले या गांववालों के जैसी मनोवृत्ति वाले पांच वयस्क पुरूषों या स्त्रियों की बनी हुई हर एक पंचायत एक इकाई बनेगी।
पास-पास की ऐसी हर दो पंचायतों की, उन्हीं में से चुने हुए एक नेता की रहनुमाई में, एक काम करने वाली पार्टी बनेगी।
जब ऐसी 100 पंचायतें बन जायं, तब पहले दरजे के पचास नेता अपने में से दूसरे दरजे का एक नेता चुनें और इस तरह पहले दरजे का नेता दूसरे दरजे के नेता के मातहत काम करे। दो सौ पंचायतों के ऐसे जोड़ कायम करना तब तक जारी रखा जाय, जब तक कि वे पूरे हिन्दुस्तान को न ढक लें। और बाद में कायम की गई पंचायतों को हर एक समूह पहले की तरह दूसरे दरजे का नेता चुनता जाय। दूसरे दरजे के नेता सारे हिन्दुस्तान के लिये सम्मिलित रीति से काम करें ओर अपने- अपने प्रदेशों में अलग- अलग काम करें। जब जरूरत महसूस तब दूसरे दरजे के नेता अपने में से एक मुखिया चुनें, और वह मुखिया चुनने वाले चाहें तब तक सब समूहों को व्यवस्थित करके उनकी रहनुमाई करें।
(प्रान्तों या जिलों की अन्तिम अभी तय न होने से सेवकों के इन समूह को प्रान्तीय जिला समितियों में बाटने की कोशिश नहीं की गई। और, किसी भी वक्त बनाये हुए समूहों को सारे हिन्दुस्तान में काम करने का अधिकार रहेगा। यह याद रखा जाय कि सेवकों के इस समुदाय को अधिकार या सत्ता अपने उन स्वामियों से यानी सारे हिन्दुस्तान की प्रजा से मिलती है, जिसकी उन्होंने अपनी इच्छा से और होशियारी से सेवा की है।)
1. हर एक सेवक अपने हाथ- काते सूत की या चरखा- सेघ द्धारा प्रमाणित खादी हमेशा पहनने वाला और नशीली चीजों से दूर रहने वाला होना चाहिये। अगर वह हिन्दू है तो उसे अपने में से और अपने परिवार में से हर किस्म की छुआछूत दूर करनी चाहिये और जातियों के बीच एकता के, सब धर्मों के प्रति समभाव के और जाति, धर्म या स्त्री- पुरूष के किसी भेदभाव के बिना सबके लिए समान अवसर और समान दरजे के आदर्श में वि श्वास रखने वाला होना चाहिये।
2. अपने कार्यक्षेत्र में उसे हर एक गांववालों के निजी संसर्ग में रहना चाहिये।
3. गांववालों में से वह कार्यकर्ता चुनेगा और उन्हें तालीम देगा। इन सबका वह रजिस्टर रखेगा।
4. वह अपने रोजाना के काम का रेकार्ड रखेगा।
5. वह गांवों को इस तरह संगठित करेगा कि वे अपनी खेती और गृह- उद्योगों द्धारा स्वंयपूर्ण और स्वावलम्बी बनें।
6. गांववालों को वह सफाई और तन्दुरूस्ती की तालीम देगा और उनकी बीमारी व रोगों को रोकने के लिए सारे उपाय काम में लायेगा।
7. हिन्दुस्तानी तालीमी संघ की नीति के मुताबित नई तालीम के आधार पर वह गांववालों की पैदा होने से मरने तक की सारी शिक्षा का प्रबंध करेगा।
8. जिनके नाम मतदाताओं की सरकारी यादी में न आ पायें हों, उनके नाम वह उसमें दर्ज करायेगा।
9. जिन्होंने मत देने के अधिकार के लिए जरूरी योग्यता हासिल न की हो, उन्हें वह योग्यता हासिल करने के लिए प्रोत्साहन देगा।
10. ऊपर बताये हुए और समय- समय पर बढा़ये हुए उद्देश्यों को पूरा करने के लिए, योग्य कर्त्तव्य- पालन करने की दृष्टि से, संघ के द्धारा तैयार किये गये नियमों के अनुसार वह स्वयं तालीम लेगा और योग्य बनेगा। संघ नीचे की स्वाधीन को मान्यता देगा
1. आखिल भारत चरखा- संघ
2. आखिल भारत ग्रामोंद्योग संघ
3. हिन्दुस्तानी तालीमी संघ
4. हरिजन-सेवक-संघ
5. गोसेवा- संघ
संघ अपना मकसद पूरा करने के लिए गासंववालों से और दूसरों से चंदा लेगा। गरीब लोगों का पैसा इकट्ठा करने पर खास जोर दिया जायेगा।
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1 टिप्पणी:
आज के दिन ... सार्थक पोस्ट !
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