मैं शिक्षकों की बहुत इज़्ज़त करता हूँ, हमारे समाज में शिक्षक और गुरु का बहुत सम्मान है। हम उस संस्कृति के हैं जहाँ शिक्षकों ने बाल सुलभ मन को देश के लिए तैयार किया है। रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाकर चरित्र निर्माण किया है। गीता का कर्मयोग और राम की दृढ़ता, लक्ष्मण का तेज़ और भरत का धर्म, हमने कई पीढ़ियों से गुरु से ही सीखा होगा। मुझे यह ज्ञान मेरे दादाजी और माँ से मिला, किसी स्कूल के मास्टर ने मुझे कभी इस बारे में कुछ न सिखाया। आज मैं इस पोस्ट के माध्यम से एक प्रश्न करना चाहता हूँ हर उस शिक्षक से जो सिर्फ़ किताबी कीड़ा पैदा करना चाहते हैं और उनका व्यावहारिक ज्ञान से कोई लेना देना नहीं है।
शिक्षा और शिक्षक का कांग्रेसी हो जाना आज का कड़वा सत्य है क्योंकि किताबों को रटने और रटाने वाले मास्टर हो सकते हैं गुरु तो क़तई नहीं। मैं आज तक जितने मास्टरों के सम्पर्क में आया (स्कूल में) वह सभी या तो वामपंथी सोच वाले थे या फिर घनघोर कांग्रेसी थे,आज कल आपिए होने का फ़ैशन हो चला है। वैसे यह एक सुनियोजित साज़िश थी जिसका हिस्सा हम सब थे। अंग्रेज़ों से जब सत्ता हस्तांतरित होकर नेहरु के पास सत्ता आयी तो उन्होंने युगों युगों से विश्व का मार्गदर्शन करने वाली प्रणाली के स्थान पर मैकाले की शिक्षा पद्धति को ही अपनाया। विदेश में पढ़ाई, अंग्रेज़ीयत से सराबोर ज़िंदगी जीने वाले नेहरु को भारतीय संस्कृति का कोई ज्ञान रहा ही नहीं होगा। रही सही कसर पूरी हो गयी जाति आधारित चुनावी जोड़ तोड़ से। अब तो संस्कृति से अलग चाटुकारिता और साम्प्रदायिक राजनीति खुलकर खेली जाने लगी। किताबें और पाठ्यक्रम बदले जाने लगे, महाराणा प्रताप की जगह मुग़ल किताबों का हिस्सा बने। हिंदूहित की बात साम्प्रदायिक श्रेणी में चली गयी और बिखरे और आपसी वैमनस्य से घिरे हिंदू इसके शिकार होते चले गए। मास्टरों ने भी सिर्फ़ किताबी ज्ञान रटाना शुरू किया और हम पढ़े लिखे क्लर्क बनते गए।
हमने एक बार भी अपने इतिहास की ओर नहीं देखा, शून्य, दशमलव, पाई और वैदिक गणित जैसे अनेक रत्न देने वाला भारत पिछड़ता चला गया। राष्ट्र निर्माण में गुरु कहीं विलुप्त से हो गए, और मास्टरों ने स्कूल क़ब्ज़ा लिए, धीरे धीरे हम आधुनिकता की चपेट में अपना इतिहास भुलाकर सुविधावाद के शिकार होते गए और हमने भी इस शिक्षा प्रणाली में रहकर ही शिक्षा प्राप्त की। नतीजा हमारा ज्ञान घनघोर साज़िशों और अपराधों वाली कांग्रेस के महिमामंडन में ही रहा। मुग़ल महान, महान इंदिरा, राजीव के क़िस्से स्कूलों में सुनाए गए। मुझे याद है हमारे स्कूल में एक सर गर्व से बताते कि इंदिरा गांधी ने कराची तक फ़ौज घुसेड दी थी लेकिन वह यह कभी नहीं बोले कि उसी इंदिरा ने आपातकाल की आड़ में विपक्ष के नेताओं को जेल में सड़ा गला कर मारा था। यह कभी नहीं बोले की इंदिरा गांधी भिंडरावाले को पालपोस कर कैसे इतना शक्तिशाली बना गयीं? नेहरु को महान बताने वाले शिक्षक कभी यह क्यों नहीं बोले कि नेहरु अय्याश था, अपनी अय्याशियों के चलते वह ऐड़्स से घिसट घिसट कर मरा। क्या इतिहास के कम महान विभूतियाँ थी जो नेहरु जैसे देशद्रोहियों को चाचा बना दिया गया? महाराणा प्रताप के क़िस्से सुनाने वाले कांग्रेसी टीचर हँसते हुए कहते,"उन्होंने घास की रोटियाँ खायीं और फिर गुरु चेला दोनों हँसते, "हाउ?" वह एक बार भी यह नहीं कहते कि महाराणा ने कैसे अपने आत्म सम्मान के लिए कितने बलिदान दिए। राजपूताना, पद्मिनी का जौहर, पृथ्वीराज चौहान और देश के महान सपूतों का गौरव उन्हें कभी दिखा ही नहीं क्योंकि उनपर सिर्फ़ किताबी ज्ञान चटाने का ही शौक़ रहा। देश के विकास में बालकों का विकास कितना योगदान कर सकता है वह यह कभी समझे ही नहीं।
शिक्षकों का कांग्रेसीकरण सिर्फ़ इसलिए हुआ क्योंकि शिक्षक कभी पाठ्यक्रम से बाहर गया ही नहीं। वह उसी किताब में घुसा रहा जिसे उसको अपने बच्चों को चटाना था। उसकी उम्र भी उतनी ही रही, मसलन पाँचवी को पढ़ाने वाला मास्टर कभी छठी में गया ही नहीं फिर उसको देश दुनियाँ कहाँ से दिखती? शिक्षकों में एक नया वर्ग आया, जो बुद्धिजीवी बन गया, उसे कांग्रेसीपन से ऊब होने लगी और वह अपनी तथाकथित इंटाइलेक्चुअलपँती को शांत करने के लिए आपिया बन गया। यह और भी ख़तरनाक क़ौम बन गयी क्योंकि वह विचारधारा तो कांग्रेसी और वामपंथी दोनों की नाजायज़ औलाद सरीखी है और किसी भी समस्या का समाधान तो छोड़िए, ख़ुद में एक समस्या हैं।
इस देश का भगवान ही मालिक है जहाँ शिक्षक को राष्ट्रवाद से लेना देना नहीं। बड़ा होना ही नहीं, रटी रटाई बातों से इतर कुछ सोचना ही नहीं और बस सिर्फ़ कुएँ के मेंढक की तरह बर्ताव करना है। यदि कोई इस मास्टर को दिशा सिखाने का प्रयास करे तो वह इनके हत्थे चढ़ जाएगा। यक़ीन मानिए इस पोस्ट को पढ़कर मास्साब मुझे सौ गालियाँ देंगे लेकिन एक रत्ती का सुधार नहीं करेंगे।
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नोट: इस पोस्ट का उद्देश्य सिर्फ़ उन शिक्षकों पर प्रश्न करना है जो कभी किताबी पाठ्यक्रम से बाहर निकले ही नहीं या फिर राजनीतिक विचारधारा या पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं।
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