बुधवार, 25 नवंबर 2015

थोड़ी सी सच्चाई...

मैं जानता हूँ इसको पढ़ने की तकलीफ बहुत कम लोग करेंगे और या फिर शायद दो चार लोगो को ही फुरसत होगी इसे पढ़ने की। फिर भी समय मिले तो पढ़ लीजियेगा। किसी पर कोई असर होगा, वैसी भी उम्मीद नहीं फिर भी......  
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आज हम बात करते हैं ईसाई धर्म के प्रचारकों की कर्मठता की, वह कैसे महान प्रचारक थे। उन्होंने कैसे अपने धर्म का प्रचार किया, धर्मांतरण किये और कैसे गोवा (गोकर्ण-भूमि) को ईसाइयत का केंद्र बनाया। दुनिया के हर धर्म, पंथ का एक प्रचार तंत्र होता है (हिन्दू धर्म को छोड़कर) जिसके द्वारा वह अधिक से अधिक लोगों को अपने धर्म से जोड़ने को तत्पर रहते हैं। आइए इसे समझने का प्रयास करते हैं, जब संसार में कोर्ट कचहरी नहीं थे तब पश्चिम में हर गाँव का शासन उस गाँव के गिरिजाघर के पास रहता था, यह गाँव के गिरिजाघर सम्पत्ति का बँटवारा, लड़ाई झगड़े, नैतिक अनैतिक सवालों में अपने निर्णय दिया करते। गाँव के गिरिजाघर एक शहर के बड़े गिरिजाघर से और फिर कई शहर के गिरिजाघर अपने अपने मुख्य गिरिजाघर से जुड़े होते। यह फिर अंत में वैटिकन से जुड़े रहकर अपना शासन चक्र चलाते। प्रत्येक राजा इसी अनुसार शासन चलने का प्रयास करता और धर्म का राज कायम रहता। यहाँ इस प्रकार से गिरिजाघरों का अपना एक शासन तंत्र होता जिसका वह सभी पालन करते। ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार के लिए बिशप नियुक्त किए जाते जो देश विदेश में घूम घूमकर अपने धर्म का प्रचार करते। यह प्रचार के लिए और अपने धर्म को फ़ैलाने के लिए किसी भी हद्द तक जाते। अब श्रीमान फ्रांसिस ज़ेवियर साहब को ही देखिये, इन्होने गोकर्ण भूमि(आज का गोवा) में भयंकर नरसंहार करके ईसाइयत फैलाई और हिन्दुओं को धर्म परिवर्तन करके ईसाई बनाये जाने के लिए मजबूर कर दिया। भारत के अंदरुनी राजाओं की रंज़िशोंं ने इसमें विदेशी शासकों का काम बहुत आसान कर दिया। उन्होंने तीन वर्ष तक धर्म प्रचारक (मिशनरी) कार्य किया। मलाया प्रायद्वीप में एक जापानी युवक से जिसका नाम हंजीरो था, उनकी मुलाकात हुई। सेंट जेवियर के उपदेश से यह युवक प्रभावित हुआ। 1549 ई. में सेंट ज़ेवियर इस युवक के साथ पहुँचे और जापानी भाषा न जानते हुए भी उन्होंने हंजीरों की सहायता से ढाई वर्ष तक प्रचार किया और बहुतों को अपने धर्म का अनुयायी बनाया। जापान में अपनी इस कामयाबी के इनाम स्वरूप वह भारत भेजे गए और 1552 ई. में गोवा लौटे। वहाँ दक्षिणी पूर्वी भाग के एक द्वीप में जो मकाओ के समीप है बुखार के कारण उनकी मृत्यु हो गई। फ्रांसिस जेवियर ने केवल दस वर्ष के अल्प मिशनरी समय में 52 भिन्न भिन्न राष्ट्रों में यीशु मसीह का प्रचार किया। कहा जाता है, उन्होंने नौ हजार मील के क्षेत्र में घूम घूमकर प्रचार किया और लाखों लोगों को यीशु मसीह का शिष्य बनाया। अब आप इसी प्रचार का असर देखिये जो आज भारतवर्ष में लगभग हर शहर में सेंट फ़्रांसिस ज़ेवियर के नाम पर स्कूल हैं, हर स्कूल के अपना एक फ़ादर होते हैं जो उस स्कूल के प्रिन्सिपल होते हैं। इन स्कूलों का मक़सद क्या है? यह स्कूल मुख्यतः ईसाई धर्म में अनुसार चलते हैं, आपने कई बार सुना होगा की स्कूल में मेहंदी लगाने के वजह से पिटाई कर दी गयी और क्लास से बाहर निकाल दिया गया। दरअसल यह इसलिए क्योंकि ईसाई धर्म के अनुसार यह वर्जित है। यहाँ क्रिसमस मनाया जाता है लेकिन आपको दीवाली या होली मनाए जाने की कोई ख़बर सुनने को नहीं मिलेगी। इनकी शिक्षा व्यवस्था सीबीएसई बोर्ड के अनुसार ही होगी लेकिन यह रोज के कार्यकलाप ईसाई धर्म के अनुसार ही करेंगे। इन स्कूलों के पास मिशनरीज़  संस्थाओं के ज़रिये भरपूर पैसा आता है और यह अपनी फीस भी खूब चढ़ा कर रखते हैं। उसके दो कारण हैं, १) अमीर परिवारों के बच्चे वैसे भी अंग्रेजियत की बीमारी के शिकार होते हैं और २) कैटेल क्लास के बच्चों को अपने स्कूल में भर्ती कराकर कौन क्लास की फोटो ख़राब करे। अपना भारतीय समाज, जहाँ बुद्धिजीवी इस विनाशकारी सोच से पीड़ित हैं कि कान्वेंट में पढ़ना उसके लिए अंग्रेजियत और मॉडर्नाइजेशन की निशानी है। ऐसे में इनका काम काफी आसान हो जाता है। 

ईसाई, बौद्ध धर्म ने अपने प्रचार के लिए जिस प्रकार का प्रयास किया वह अनूठा है। हिन्दू धर्म इस प्रकार के प्रचारकों से वंचित रहा, यदि मैं आदि शंकराचार्य के अलावा किसी और को याद करने का प्रयास करूँ तो कोई भी नाम मष्तिष्क पटल पर नहीं आता। इस्लाम के सूफियों ने इसी प्रकार अपने पंथ का प्रचार करने का प्रयास किया और वह भी एक बड़े हद तक कामयाब भी रहे। भारत में इन सभी को अपार सफलता मिली क्योंकि भारत के राजा कभी संगठित रहे ही नहीं। इसके कारण सभी राजाओं ने विदेशी आक्रान्ताओं का साथ देकर अपने क्षणिक लाभ के लिए अपनी ही मातृभूमि के साथ ही गद्दारी की। 

अब अगर मैं आपको समझाने का प्रयास करूँ तो गोवा महाभारत काल में गोकर्ण भूमि था, स्कन्द पुराण के अनुसार 

गोकर्णादुत्तरे भागे सप्तयोजनविस्तृतं
तत्र गोवापुरी नाम नगरी पापनाशिनी 

गोवा आदि काल से परशुराम की कर्म स्थली रहा और हिन्दू धर्म में इसका उल्लेख बहुत प्रमुखता से है।  राजा भोज, चालुक्य, कदम्ब, देवगिरि, विजयनगरम राष्ट्रों के साथ रहने के बाद उसे मुस्लिम शासकों के नियंत्रण में रहना पड़ा। वह प्रमुखता से हिन्दू बहुल क्षेत्र था लेकिन मुस्लिम और फिर पुर्तगालियों के नियंत्रण में होने के कारण हिन्दू धर्म को बहुत हानि हुई। इसमें हद तब हो गयी जब गोवा में सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर आये और उन्होंने बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण करने के लिए आर्थिक लाभ, सरकारी फायदा और कई अन्य सुविधाओं की घोषणा कर दी। उस समय लोगों के पास अपनी जान बचाने के लिए कोई अन्य उपाय न था। नतीजा गोवा का इसाईकरण हुआ और सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर प्रमुख संत घोषित कर दिए गए और वह आज भी ईसाई धर्म के सबसे प्रमुख मिशनरी प्रचारकों में गिने जाते हैं। वैसे गोवा के ईसाई आज भी कई रीति रिवाज़ हिन्दू धार्मिक पद्धतियों से ही करते हैं लेकिन समय की मार से वह ईसाई हैं। लोग पूछ सकते हैं की मैं आज इस विषय पर क्यों लिख रहा हूँ। मित्रों मैं कभी धर्म, अधर्म की चर्चाओं में नहीं पड़ता लेकिन जब धर्म को सहिष्णुता से जोड़ कर कोई भी ऐरा गैरा हिन्दू धर्म को ही गाली देने लगे तो मुझ जैसे व्यक्ति को खामोश बैठ जाना तर्क संगत नहीं है। 

आप कई सदियों तक हमारे धर्म को लूटते आये, हम चुप रहे 
आप स्कूलों, कालेजों में शिक्षा के नाम पर अपना प्रचार करते रहे, हम चुप रहे 
आप हमारे धर्म को गालियां देते रहे, हम चुप रहे 

अब बस कीजिये, हमें भी बोलने का मौका दीजिये, हम कई सदियों से अत्याचार सहते रहे हैं, लुटते रहे हैं, पिटते रहे हैं अब अगर थोड़ी सी सच्चाई बयां करके आपकी असलियत ज़ाहिर कर दी तो अपना चेहरा देखकर आप इतना बिलबिला क्यों रहे हैं? 



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