मित्रों आज छब्बीस जनवरी है आज के ही दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। लेकिन क्या वाकई ऐसा था? क्या वाकई भारत में कभी संविधान बना? अगर सच्चाई से कहा जाए तो नहीं। नेहरू की साज़िशों का यह भी एक हिस्सा मात्र है।
आइये इसकी भी आज परतें खोली जाएँ: सन 1935 में अंग्रेजों ने अपने उपनिवेशों में अपने शासन को और मजबूती से बनाये रखने के लिए कई एक्ट निकाले। जैसे कि गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट, गवर्नमेंट ऑफ़ बर्मा एक्ट इत्यादि। यह कानून भारत में ब्रिटिश राज को और मजबूत करने, और अधिक अधिकार देने और भारत के लोगों को आराम से गुलाम बनाये रखने के लिए लिखा गया। इस एक्ट के तहत बर्मा को भारत से अलग किया गया, संघीय ढाँचे यानि की राज्य की शासन प्रणाली गवर्नर जनरल को लाना ताकि नौकरशाही को मजबूत बनाया जा सके। इसी संघीय ढाँचे के तहत विधान सभा और विधान परिषद सरीखे केन्द्रों को लाना और गवर्नर जनरल के द्वारा उनका नियंत्रण किया जाना। मंत्री मंडल, उनके अधिकार, ऑफिसर्स ऑफ़ चैम्बर्स और उनके वोटिंग अधिकार की भी बात कही गयी। इसी एक्ट के तहत सदस्यों की शपथ और उनके अधिकार, सैलेरी और भत्ते निर्धारित किये गए। इसमें सेना, भारतीय पुलिस एक्ट, प्रशासनिक सेवा एक्ट, ऑडिट के लिए जनरल, भूमि अधिग्रहण , रेलवे, न्यायतंत्र (हाई कोर्ट और फ़ेडरल कोर्ट का गठन), सचिवालयों का गठन, भारतीय विदेश सेवा का गठन और अन्य कई संस्थानों को एक नया प्रारूप दिया गया। वर्ष 1919 के भारतीय एक्ट में कई संसोधन हुए और यह नया एक्ट भारत पर लाद दिया गया। जब अंग्रेजो ने द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को भरपूर तरीके से दोह लिया और एक कमज़ोर अर्थव्यवस्था के कारण अब उन्हें भारत पर राज्य करना कठिन लगने लगा। उस पर भी जब नेताजी की आज़ाद हिन्द फ़ौज ने पूर्वी कमान से अंग्रेजों को कमज़ोर करना शुरू किया और उस आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिलने लगा तब उन्होंने मजबूर होकर भारत में सत्ता हस्तांतरण के बारे में सोचना शुरू किया। इस एक्ट में राष्ट्रकुल देशों से सम्बंधित अति महत्वपूर्ण दिशा निर्देश दिए गए। मित्रों राष्ट्रकुल यानि की कॉमनवेल्थ देशों का अर्थ वह देश जो ब्रिटेन के उपनिवेश रह चुके हैं। मित्रों जब सत्ता का हस्तांतरण हुआ तो संविधान सभा बनाई गयी। संविधान सभा बनाने का विचार 1934 में कम्युनिस्ट नेता मानबेन्द्र नाथ रॉय ने ही दिया था, बाद में 1935 में कांग्रेस ने इसे अपने अजेंडे में लाया और अंग्रेजों ने इसे अगस्त 1940 में माना। 8 अगस्त 1940 में वाइसराय लार्ड लिनलिथगो ने गवर्नर जर्नल के अधिकार को बढ़ाने और वॉर एडवाइजरी कौंसिल बनायीं। इसके तहत भारत के संविधान में अल्पसंख्यक शब्द घुसेड़ा गया। कैबिनेट मिशन प्लान के तहत 1946 में भारत के संविधान सभा के लिए पहला चुनाव हुआ। इसी संविधान सभा ने भारत का पहला संविधान सोलह मई 1946 को दिया। इस संविधान सभा में लगभग सभी प्राथमिक राज्य और दिल्ली, अजमेर मेवाड़, कूर्ग और ब्रिटिश बलूचिस्तान के चीफ कमिश्नर ने प्रतिनिधित्व दिया। इसी के तहत भारत के राज्यों में चुनाव हुए जिसमे कांग्रेस ने 296 में से 208 सीटें जीतकर विजय हासिल की। दुसरे नंबर पर मुस्लिम लीग को 73 सीटें मिलीं। इसके बाद ही मुस्लिम लीग की अलग देश की मांग जोर पकड़ती गयी और अंग्रेजों ने इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट लाकर भारत और पाकिस्तान नाम के दो डोमिनियन देश बनाने का प्रारूप दे दिया। ब्रिटिश भारत के समय बनी संविधान सभा की अंतिम बैठक 3 जून 1947 में हुई और लार्ड माउंटबैटन ने पाकिस्तान के लिए एक अलग संविधान सभा का गठन कर दिया। बहरहाल देश में सत्ता हस्तांतरित हुई और भारत का शासन नेहरू कांग्रेस को मिल गया।
भारत के संविधान को लेकर असली सर्कस अब शुरू हुआ। नेहरू के साथ हुई अंग्रेजों की संधि और इस सत्ता के हस्तांतरण में कई छुपे हुए बिंदु थे। इनमें बहुत सी ऐसी बातें थी जो कोई राष्ट्रवादी व्यक्ति कभी नहीं मानता लेकिन सत्ता लोलुप नेहरू ने उन सभी को माना और अंग्रेजों के एजेंट की तरह भारत को एक उपराज्य स्वीकार किया।
मित्रों जिस संविधान को हम आज भारत का संविधान कहते हैं जिसे बाबा साहेब आम्बेडकर ने बनाया था उसे देखकर एक बार स्वयं आम्बेडकर बोले थे की इसे फाड़कर फेंक दिया जाना चाहिए क्योंकि यह हड़बड़ी में बनाया गया और यह मौलिक नहीं है। दरअसल यह पूरी तरह से गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 का ही कॉपी था। अब आप सोच कर देखिये: कॉमनवेल्थ देशों में हमारे राजदूत क्यों नहीं है? हाई कमिशनर ही क्यों हैं? क्योंकि ऐसा गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 में लिखा हुआ था कि ब्रिटेन द्वारा संचालित देशों में ब्रिटेन ही का शासन है तो राजदूत की क्या आवश्यकता है। यह आज भी वैसा ही है, सोच कर देखिये, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भारत का कोई राजदूत है ही नहीं। भारत के संविधान के मुख्य बिंदु दुसरे देशों से कॉपी किये गए हैं, उसमे भी 1935 के एक्ट का मूल प्रारूप वैसे का वैसा ही रखा गया है।
हमने कहाँ से क्या क्या उठाया है वह देखिये:
ब्रिटिश संविधान से:
- सरकार बनाने का संसदीय तरीका, अर्थात लोकसभा और राज्यसभा / राज्यों के लिए विधान सभा और विधान परिषद का मॉडल
- एक नागरिकता: कोई भी राज्य का निवासी लेकिन नागरिकता एक ही देश की
- कानून का शासन
- संसदीय प्रणाली में स्पीकर का रोल
- संसदीय प्रणाली से कानून बनाने का तरीका
- उस क़ानून का पालन करने का तरीका
अमेरिकी संविधान से (अमेरिका खुद भी ब्रिटेन का उपनिवेश था और अमेरिकी संविधान भी ब्रिटेन से ही बना है)
- नागरिकों के मूल अधिकार
- संघीय ढांचा
- चुनाव प्रणाली
- न्याय प्रणाली की स्वायत्तता और उसका कार्यपालिका से अलग अस्तित्व
- न्याय प्रणाली का गठन
- राष्ट्रपति का तीनो सेनाओ का कमांडर बनाया जाना
- कानून के तहत सभी को एक समान सुरक्षा सुनिश्चित किया जाना
आयरलैंड संविधान से (यह भी ब्रिटेन का ही उपनिवेश था)
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व
ऑस्ट्रेलिया से (यह भी ब्रिटेन का ही उपनिवेश था)
- व्यापार की स्वतन्त्रता : अलग अलग राज्यों में व्यापार की स्वतंत्रता
- संसद को देशव्यापी मान्यता
इसके अलावा फ्रेंच, कनाडा, सोवियत रूस, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और जापान जैसे कई देशों से मुख्य बिंदु संविधान में जोड़े गए। इसका नतीजा यह हुआ कि संविधान जरूरत से ज्यादा लम्बा और बोझिल हो गया। यह संविधान अपने आप में कई बिन्दुओं में विरोधाभास देने लगा। लगभग सब कुछ ब्रिटेन से लिया जाना, उसपर भी ब्रिटिश संसद द्वारा लाया गया भारत सरकार एक्ट 1935 को वैसे का वैसे ही ले लिया जाना एक बहुत बड़ी गलती थी। यदि देश का संविधान देश के लोगों द्वारा मौलिक रूप से बनाया जाता तो स्थिति दूसरी होती। नतीजा यह निकला कि आज तक हम अपने संविधान में सैकड़े भर का बड़ा संशोधन कर चुके हैं। हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है और यह विश्व का सबसे अधिक संशोधन वाला लॉ बुक कहलाता है।
वैसे अंग्रेज गए लेकिन अपने कानून वहीँ के वहीँ छोड़ गए साथ ही उनका पालन सुनिश्चित करने के लिए अपने सबसे वफादार नेहरू को यहीं छोड़ गए।
नतीजा देखिये, हमारा इंडियन सिविल सर्विसेज एक्ट: 1858 का आज भी वैसे का वैसा: आईसीएस का अंतिम अमेंडमेंट पहले विश्व युद्ध के बाद हुआ और यह 1947 में भारत और पाकिस्तान नामके दो अधिराज्यों (डोमिनियन) में बाँट दिया गया। भारत वाले हिस्से का नया नाम इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस यानि की आई ए एस रखा गया। ब्रिटिश आई सी एस के 1944 बैच के अंतिम अधिकारी श्रीमान निर्मल मुखर्जी को 1980 में सेवानिवृत हुए।
ठीक इसी तरह भारतीय पुलिस सेवा: 1857 के ग़दर को कुचलने के लिए पुलिस को अत्यधिक अधिकार और दमनकारी बनाये जाने के लिए इस एक्ट को 1858 में लाया गया। इसके तहत पुलिस वालों को लाठी पकड़ा दी गयी और उन्हें जहाँ जरुरी हो वहां लाठी चार्ज करने की स्वतंत्रता मिली। कहने को संविधान बन गया लेकिन आज भी हमारे पुलिस ऑफिसर लाठी पकडे घूम रहे हैं।
ऐसे लगभग 203 ऐसे कानून हैं जो आज भी "हर मैजेस्टी" और "ईस्ट इण्डिया कंपनी" का तमगा लिए घूम रहे हैं। लीजिये इसकी सूची यह रही: आज़ादी के बाद पहली बार मोदी सरकार ने संविधान की सफाई पर ध्यान देना शुरू किया है और इन अवांछित कानूनो को ख़त्म करने के बारे में सोचा है।
मित्रों आज जब हम 67वाँ गणतंत्र दिवस बना रहे हैं तब आज भी हमारे विमान VT (वाइसराय टेरिटरी) का टैग लिए घूम रहे हैं। हर आंदोलन का दमन करने के लिए पुलिस वाले वहीँ अंग्रेजों का पकड़ाया डंडा लिए आ रहे हैं, वही लगान वसूलने वाले टैक्स कलेक्टर आज जिला कलेक्टर बने हुए हैं। वही अंग्रेजों के बनाये हुए संसद हमारे कानून बना रहे हैं। वही अंग्रेजों के बनाये 1861 का इंडियन हाई कोर्ट एक्ट आज भी चालू है जो 1857 के आंदोलन के दमन के लिए बनाया गया था। इसी एक्ट के तहत बनाये गए बम्बई, मद्रास और कलकत्ते के हाई कोर्ट आज भी वैसे के वैसे हैं। हम इस एक्ट के कारण बम्बई उच्च न्यायालय को मुंबई उच्च न्यायालय नहीं कह सकते, मद्रास उच्च न्यायालय को चेन्नई उच्च न्यायालय नहीं कह सकते और कलकत्ता उच्च न्यायालय को कोलकाता उच्च न्यायालय नहीं कह सकते। भारतीय दण्ड संहिता 1860 से आज भी है, सन 1833 के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट में पास किये गए क़ानून आज भी हैं।
अगर हम गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि जब रोम में मार काट मची थी, अंग्रेज पेड़ के पत्ते पहन कर घूम रहे थे तब भारत एक संभ्रांत देश था। बहुत अमीर, विश्व की पूरी अर्थव्यवस्था का एक चौथाई अकेला भारत था। जब अंग्रेज ककहरा भी नहीं जानते थे तब हमारे यहाँ साढ़े सात लाख से अधिक गुरुकुल थे जो सामाजिक और नैतिकता पर आधारित शिक्षा देते थे, उसी का परिणाम था जो भारत से त्रिकोणमिति, बीजगणित, अर्थशास्त्र के कितने सूत्र निकले, यह अंक गणित है, शून्य, दशमलव, पाई, पूर्णांक विश्व को भारत की ही देन है। ऐसे समृद्ध देश को लार्ड मैकाले जैसा कोई व्यक्ति पश्चिमी और अंग्रेजी शिक्षा पर आधारित शिक्षा प्रणाली दे और आज़ादी के बाद भी हम उसे वैसे ही चलाये रखें यह बात मुझे बहुत खटकती है। आज हम विश्व में सबसे बड़े मजदूर देश हैं, कोई नया आविष्कार भारत से नहीं आ रहा और हम दुनिया से सिर्फ सीख रहे हैं।
लोग कह सकते हैं आज देश का दिन है, आज गणतंत्र पर गर्व करने का दिन है लेकिन मैं विद्रोही स्वभाव का व्यक्ति हूँ मुझे अपने देश पर गर्व है, अपनी सभ्यता पर गर्व है लेकिन इस तंत्र पर बहुत अधिक क्रोध है। सरकार के नाम पर जिन ब्रिटिश एजेंटों ने हम पर इतने साल राज किया है उसपर मैं गर्व नहीं कर सकता, आप कीजिये यदि आपका मन माने तो।
2 टिप्पणियां:
गंभीर विचारशील प्रस्तुति ...
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बदल रहे हैं लोकतंत्र के मायने - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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