मैं आज कुछ कांग्रेसियों और आपियों के तर्कों से हैरान हूँ, वह कह रहे हैं कि जो व्यक्ति सत्तर साल पहले मर गया उसके लिए क्यों इतना बवाल मचाये हो। उनका इस प्रकार से नेताजी के लिए सोचना मुझे हैरान कर रहा था और इस सोच को पक्का कर रहा था किसी भी कांग्रेसी के मन में नेताजी के लिए कोई सम्मान नहीं है। उनके लिए गाँधी और नेहरू ही भारतीय आज़ादी के प्रतीक हैं और इनके अलावा कोई अन्य क्रांतिकारी का कोई योगदान है ही नहीं। वस्तुतः इस प्रकार की सोच उनके मानसिक दिवालियेपन को ही दर्शाता है और आज़ादी की पूरी फैब्रिकेटेड अहिंसात्मक आंदोलन को जिस प्रकार अंग्रेजी सरकार पर अपनी जीत बताकर आज तक परोसा गया और इतिहास की किताबों में पढ़ाया गया वह वाकई बहुत बड़ी आपराधिक साज़िश है। आज नेताजी के गैर वर्गीकृत फाइलों को पढ़ रहा था और कुछ ही फाइलों में जो देखा वह वाकई शर्मसार करने के लिए काफी था। कुछ अंश आप भी देखिये और स्वयं ही फैसला लीजिये कि क्या भारत कभी भी आज़ाद हुआ? नेताजी को लेकर और हमारे अन्य क्रांतिकारियों को लेकर कांग्रेस, गाँधी और नेहरू सरीखे सर्वोच्च शिखर के नेताओं के क्या विचार थे।
नेताजी वार क्रिमिनल थे या नहीं उनसे सम्बंधित कुछ पत्र देखिये
अंग्रेजी सरकार नेताजी और आज़ाद हिन्द फ़ौज के वर्चस्व से न सिर्फ घबराये थे बल्कि वह नेताजी पर कार्यवाही के लिए हर विकल्प तलाशने के प्रयास में थे। |
भारत के पावर ट्रांसफर के बुकलेट में नेताजी को फांसी, उनके भारत में ही ट्रायल पर भी विचार किया। |
बहरहाल यह कहना कि उन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा युद्ध अपराधी कहा गया मुझे कोई हैरान नहीं करता क्योंकि हम सभी जानते हैं कि उस समय का संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों के हाथ की कठपुतली से अधिक कुछ नहीं था (वैसे आज भी स्थिति वैसी ही है) हैरानी इस बात पर थी कि मुझे इस आर्काइव में भारत सरकार का कोई ऐसा पत्र नहीं मिला जिसमे उन्होंने नेताजी को ब्रिटिश सरकार द्वारा युद्ध अपराधी कहे जाने पर कोई आपत्ति जताई हो। राजगोपालाचारी के पत्र में उलटे देश के सत्ता हस्तांतरण में ब्रिटिश सरकार द्वारा किये गए प्रयासों के लिए उलटे उन्हें धन्यवाद कहा गया है।
भारत की आज़ादी और कांग्रेस/अंग्रेजों का ख़ुफ़िया समझौता
सन उन्नीस सौ निन्यानवे में गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भेजे गए रिपोर्ट में प्रधानमन्त्री के मुख्य सचिव बिजन घोष के इन श्वेत पत्र को ध्यान से देखिये:
इस पत्र में सत्ता के हस्तांतरण के लिए किये गए समझौते के तहत नेताजी को सौंपे जाने और उनपर कार्यवाही करना सुनिश्चित किये जाने की शर्त के साथ ही सत्ता हस्तांतरित किये जाने की बात कही है। पावर ट्रांसफर के किसी भी कागज़ का इसलिए उपलब्ध न किया जाना क्योंकि उसमे नेताजी का ज़िक्र है, अपने आप में एक शर्मनाक बात है। यह छुपा हुआ खेल, कांग्रेस और नेहरू की सत्ता लोलुप मानसिकता को ही दर्शाता है।
वाकई हैरानी की बात है न पर सच यही है की भारत कभी आज़ाद हुआ ही नहीं, सिर्फ सत्ता हस्तांतरित हुई "अंग्रेजों से नेहरू को"
इसी दस्तावेज में नेताजी के गायब होने को लेकर उनके "युद्ध अपराधी" होने और कार्यवाही किये जाने को लेकर गायब हो जाने के कारण पर संदेह किया गया है।
पूर्ववर्ती गृह मंत्रालय के द्वारा दिए गए गलत रिपोर्ट को भी इसमें खुलकर कहा गया है। फिलहाल अभी तक जितने भी दस्तावेज मैंने देखे और पढ़े हैं उनमे इस बात की तो पुष्टि हो जाती है कि नेताजी को युद्ध अपराधी माना गया है और अंग्रेजो का सत्ता हस्तांतरण में कांग्रेस के साथ कोई गुप्त समझौता था और शक करने की हर संभव वजह है की यहाँ नेहरू पूरी तरह से न सिर्फ दोषी हैं बल्कि वह सिर्फ अंग्रेजों के एजेंट के रूप में भारत के सत्ता के अधिकारी बने।
(अभी और पढ़ाई ज़ारी है और मैं अपनी रपट को कई अंशों में पोस्ट करूँगा। इस पोस्ट के सभी अंश मेरे निजी विचार हैं)
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