आज यूँ ही साईं बाबा की चर्चा निकली। श्रद्धा से जुडी हुई बातें हैं सो इस पर कुछ भी कहना बहुत कठिन होता है उस पर भी मुझ जैसा मूढ़मति, क्या ही कहा जाए।
मैं किसी भी भक्ति या विचारधारा के समर्थन के खिलाफ नहीं लेकिन अंध-भक्ति के खिलाफ ज़रूर हूँ। सनातन धर्म को चोट पहुँचाने वाले कोई और नहीं, स्वयं हिन्दू धर्म के बुद्धिजीवी लोग ही हैं जिन्होंने न जाने किस स्वार्थ से पीड़ित होकर सनातन धर्म को घनघोर क्षति पहुंचाई है। यहाँ बात शिरडी के साईं बाबा के चेलों की व्यापारिक सोच को लेकर है जिसने सनातन धर्म को इस कदर चोट पहुंचाई की स्वयं भोले हिन्दू धर्म के लोग भी इसको समझ नहीं पाए। आज जब मैंने जर्सी सिटी में भी साईं की पालकी के बाद सत्यनारायण मंदिर में पूजा का कार्यक्रम देखा तो अजीब लगा क्योंकि साईं बाबा का भगवान विष्णु की पूजा से क्या लेना देना?
साईं को साईं रहने दीजिये और भगवान विष्णु स्वरुप और भागवत को अपनी जगह रहने दीजिये। आधुनिकता के चक्कर में पहले ही पिछली पीढ़ियों ने धर्म को बहुत भ्रष्ट किया है और ऊपर से अगर सब कुछ छोड़ते चले जायेंगे तो फिर अगली पीढ़ी को पकड़ने के लिए रह क्या जाएगा? अपने धर्म को समझने का प्रयास तो कीजिये, साईं बाबा की पूजा करनी है तो कीजिये लेकिन यदि आप ऐसा अपने धर्म और दर्शन को भूलने की कीमत पर करते हैं तो फिर यह आपकी भयंकर भूल है।
मुझे तकलीफ इस बात से है कि इन्होने एक बड़े व्यापारी के समान इन्होंने साजिशन प्लान के तहत अपनी फ्रेंचाइजी बेचीं और हिंदुओं की सहिष्णुता का भरपूर लाभ उठाया और इस हद तक भ्रष्ट कर दिया जिससे आज कई एक हिन्दू समाज के लोग साईं को भगवान मान राम और कृष्ण के समतुल्य साईं उनकी पूजा करने लगे। भोले हिन्दू पहले इस साज़िश का शिकार बने और अब इसी साजिश का हिस्सा हैं।
अगर आपको बात न समझ में आ रही हो तो कुछेक बातों पर ध्यान दीजिए:
मैं किसी भी भक्ति या विचारधारा के समर्थन के खिलाफ नहीं लेकिन अंध-भक्ति के खिलाफ ज़रूर हूँ। सनातन धर्म को चोट पहुँचाने वाले कोई और नहीं, स्वयं हिन्दू धर्म के बुद्धिजीवी लोग ही हैं जिन्होंने न जाने किस स्वार्थ से पीड़ित होकर सनातन धर्म को घनघोर क्षति पहुंचाई है। यहाँ बात शिरडी के साईं बाबा के चेलों की व्यापारिक सोच को लेकर है जिसने सनातन धर्म को इस कदर चोट पहुंचाई की स्वयं भोले हिन्दू धर्म के लोग भी इसको समझ नहीं पाए। आज जब मैंने जर्सी सिटी में भी साईं की पालकी के बाद सत्यनारायण मंदिर में पूजा का कार्यक्रम देखा तो अजीब लगा क्योंकि साईं बाबा का भगवान विष्णु की पूजा से क्या लेना देना?
साईं को साईं रहने दीजिये और भगवान विष्णु स्वरुप और भागवत को अपनी जगह रहने दीजिये। आधुनिकता के चक्कर में पहले ही पिछली पीढ़ियों ने धर्म को बहुत भ्रष्ट किया है और ऊपर से अगर सब कुछ छोड़ते चले जायेंगे तो फिर अगली पीढ़ी को पकड़ने के लिए रह क्या जाएगा? अपने धर्म को समझने का प्रयास तो कीजिये, साईं बाबा की पूजा करनी है तो कीजिये लेकिन यदि आप ऐसा अपने धर्म और दर्शन को भूलने की कीमत पर करते हैं तो फिर यह आपकी भयंकर भूल है।
मुझे तकलीफ इस बात से है कि इन्होने एक बड़े व्यापारी के समान इन्होंने साजिशन प्लान के तहत अपनी फ्रेंचाइजी बेचीं और हिंदुओं की सहिष्णुता का भरपूर लाभ उठाया और इस हद तक भ्रष्ट कर दिया जिससे आज कई एक हिन्दू समाज के लोग साईं को भगवान मान राम और कृष्ण के समतुल्य साईं उनकी पूजा करने लगे। भोले हिन्दू पहले इस साज़िश का शिकार बने और अब इसी साजिश का हिस्सा हैं।
अगर आपको बात न समझ में आ रही हो तो कुछेक बातों पर ध्यान दीजिए:
- इन्होंने वैदिक पद्धितियों की आड़ लेकर साईं की पूजा के कर्मकाण्ड तय किये और साईं को भगवान के रूप में स्थापित करने का पूरा प्रयास किया
- साईं तो सर्व धर्म समभाव के हितकारी थे तो उनकी कोई मूर्ति या कोई प्रतीक किसी मस्ज़िद या गिरिजाघर में क्यों नहीं? यदि है तो बताने का कष्ट कीजिये?
- वैदिक रीति रिवाज़ से पूजा करने के लिए सनातन वैदिक मंत्रों को ही तोड़ मोड़ कर उसमे साईं नाम को इस प्रकार पिरोया जैसे मानो स्वयं वेदव्यास या वाल्मीकि या स्वयं ब्रम्हा ही यह मन्त्र लिख गए हों
- हर सनातन धर्म के मंदिर में फ्रेंचाइजी दे दी गयी और बड़ा मुनाफा बटोर लिया गया
- मुझे बताइये कि साईं को किसी भी साहित्य में साईं अल्लाह या साईं यीशु कहा गया? नहीं क्योंकि साईं ट्रस्ट जानता है हिन्दू धर्म में मूर्ख ज्यादा हैं सो दूकान यहाँ अच्छे से चलेगी। अगर मुस्लिम या ईसाईयों को छुआ तो एक ही दिन में दूकान बंद करा देंगे
(यह आलेख साईं ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहे बिज़नस रैकेट की पोल खोल है, इसका किसी धर्म या समुदाय से कोई लेना देना नहीं)
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