भाजपा उत्तर प्रदेश में नहीं जीत सकती, इसलिए नहीं कि उसके पास नेता नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि उसके पास अपने कार्यकर्ता की देखभाल करने और पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपना समझने की ही समझ नहीं है। अभी नया हादसा देखिये, दयाशंकर ने जो भी कहा हो उसके बाद दयाशंकर के परिवार के प्रति भाजपा का उदासीन रवैया निंदनीय है। एक कार्यकर्ता अपनी ज़िन्दगी पार्टी को दे देता है, लेकिन सत्ता की मलाई मिल जाने पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कांग्रेस सरीखा हो रहा है। मोदी के सिपहसालार अपनी ही वोट बैंक की अनदेखी कर रहे हैं और कार्यकर्ता हाशिये पर जा रहा है।
हाँ एक और बात, दयाशंकर ने जो कहा वो तो जाने दीजिए लेकिन पैसा लेकर सीट बांटने वाले के लिए क्या शब्द इस्तेमाल होने चाहिए? उसपर मायावती की पार्टी के कार्यकर्ता और वोटबैंक? लेकिन यह वोट बैंक इतना संगठित है कि मायावती जो बिना किसी एजेंडे(बसपा का कोई एजेंडा है क्या?) के दल की नेता और थाली के बैंगन सरीखी स्थिति होने पर भी एकदम तैयार हैं चुनाव के लिए।
उधर भाजपा समझ ही नहीं रही कि उत्तर प्रदेश को जीतने के लिए सड़क पर उतरना होगा, यह अपने आम कार्यकर्ता के परिवार को तो संभाल नहीं पा रही... उत्तर प्रदेश क्या ख़ाक संभालेगी...
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