मंगलवार, 3 सितंबर 2013

धर्म की परिभाषा.....

आखिर धर्म की परिभाषा क्या है? यह प्रश्न शायद कुछ लोगों को अजीब लगे लेकिन फ़िर भी आज कल इस प्रश्न का उत्तर खोजना ज़रूरी बन पडा है? क्या धर्म वह है जो हर सुबह चैनलों पर बक बक करता हुआ दीखता है.. या फ़िर कैम्पों में भारी भरकम फ़ीस चुकानें के बाद तथाकथित बुद्धिजीवियों के साथ बैठकर गम्भीर मुद्रा में चिन्तन सीखता हुआ दीखता है.. आखिर धर्म है क्या? मेरे विचार से वाकई धर्म और आध्यात्म दो अलग अलग चीजें हैं... धार्मिक होना और आध्यात्मिक होनें में फ़र्क है। धर्म रुढिवादिता के दलदल में घसीटता है और आध्यात्म मनुष्य को प्रकाश की ओर ले जाता है। आध्यात्म मानव में विश्वास का संचार करता है और धर्म अन्ध-विश्वास का। 

बचपन से आदर पूर्वक सभी किस्सों कहानियों से यही तो सीखा.. सच बोलो और साफ़ बोलो। बात को घुमाए फ़िराए बिना बोलो... मैं भगवान राम में मानवीय आदर्श देखता हूं.. अब कोई राम पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगाए तो क्या कहा जाए.. मेरे लिए राम से बडा आदर्श अपनी किसी भी धार्मिक पुस्तक या फ़िर किसी समाज सेवक में नहीं दिखता.. वह एक मानव के लिए आचार संहिता हैं। अब राम के प्रति मेरा यह अनुराग विश्वास जनित है... यदि इसमें अन्ध-विश्वास का पुट आ जाएगा तो फ़िर यह भी प्रदूषित हो जाएगा। विश्वास प्रेरणा है, संजीवनी है और अन्धविश्वास विष है। 

आईए अब हम अपने मुख्य मुद्दे की ओर आते हैं। धर्म की परिभाषा को आज कल के दौर में कुछ ठेकेदारों नें अजीब रूप में प्रदर्शित की है, यह हज़ारो करोड के टर्न ओवर वाले व्यापारी खुले आम धर्म बेचते हैं। यह बहुत बडे एक्टर हैं... और बालीवुड को भी मात दे सकते हैं। कोई किरपा बेच रहा है तो कोई किस्से कहानियां... हज़ारो लोग चंदे के रूप में उनको अपना पैसा दान दे रहे हैं। और यह भगवान बने बैठे हैं.... 

मुझे तकलीफ़ है इन बाबाओं के अन्ध भक्तो से... जो पैसे लूटनें के लिए कलेक्शन एजेंट की तरह व्यवहार करते हैं। जो कभी पुलिस से भिड लेते हैं तो कभी जनता से... एक पल को अगर सच और झूठ का फ़ैसला कर लो तो समझ जाएगा की कितनी बडी बेवकूफ़ी कर रहे हो... और यह बाबा लोग... भाई पैसा देकर किराए पर बाऊंसर रखे जाते हैं सतसंग में? यह धर्म की कैसी परिभाषा लिख रहे हैं यह बाबा लोग... सरकार और सत्ताधारी दल इनसे एक बडी रकम चंदे के रूप में पाते हैं सो वह कोई कार्यवाही नहीं करते और यह अपनी मनमानी करते रहते हैं... हम और आप एक मूर्ख के समान ठगे से दोनों पक्षों को देखते रहते हैं...

इस पोस्ट के पीछे मेरा उद्देश्य है की आप और हम किसी भी प्रकार के अंध-विश्वास से बचें... और अपने बुद्धि का परिचय देकर सकारात्मक फ़ैसला करें।  अब अंध-भक्ति चाहे भगवान की हो या इंसान की वह भयानक परिणाम ही लाएगी। सत्य सबसे बडा धर्म है.. और यही मानव के लिए सबसे उत्तम मार्ग है।

सोमवार, 17 जून 2013

भाजपा और कांग्रेस के अन्तर को पहचानिए....

आईए आपको कुछ तथ्यों से रूबरू कराते हैं। बहुत दिनों से हम और आप केन्द्र सरकार के भारत निर्माण के प्रचार को देख कर हैरानी से हक और शक के अन्तर को समझनें का प्रयास कर रहे हैं। आईए आपको कुछ आंकडे दिखाएं ताकि आप समझ सकें की वाकई भाजपा और कांग्रेस में क्या अन्तर है। वामपंथी विचारधारा और तटस्थ प्रजाति के कुछ प्राणियों को मेरा यह लेख पसन्द न आए मुझे उम्मीद है लेकिन फ़िर भी देखिए और समझिए... यूपीए-१ कामयाब रहा था... देश नें कांग्रेस को एक बार फ़िर जनाधार दे दिया था। क्या किसी नें कभी गौर किया की यूपीए-१ की कामयाबी के पीछे कारण क्या थे, जी उसके पीछे कोई कांग्रेस की नीतियां ज़िम्मेदार नहीं थीं। उसके पीछे ज़िम्मेदार थे एनडीए के समय की एक कामयाब, मजबूत और नीतिगत आर्थिक विचार। यूपीए-१ के दौर की नाकामयाबी यूपीए-२ के दौर में सामनें आईं क्योंकि इन्होनें किसी भी योजनाओं को न आगे बढाया और न ही कोई अन्य मोर्चे पर मजबूती के संकेत दिए। देश का आर्थिक ढांचा चरमरा गया और हम फ़िर से सन नब्बे के रास्ते पर आ गये। न देश के आधारभूत ढांचे के विकास के लिए कोई प्रयास हुआ और न ही आन्तरिक सुरक्षा, फ़ूड गारंटी बिल जैसे मुद्दे समाधान तक पहुंचे।

मुम्बई स्थित वरली बांद्रा सी लिंक जिसको कांग्रेस राजीव गांधी समुद्र सेतु का नाम देकर फ़ूली नहीं समाती, दर-असल उसका विचार और शिलान्यास बाला साहेब ठाकरे ने १९९९ मे किया था। महज़ पांच वर्ष में पूरा होने वाला यह प्रोजेक्ट कांग्रेस के हाथ में जाते ही दस साल तक खिच गया। वैसे ही दिल्ली की मेट्रो जिसका श्रेय कांग्रेस लेनें से नहीं चूकती, वह भी बाजपई सरकार द्वारा शुरु की गई एक प्रक्रम का ही हिस्सा था। मित्रों बाजपई सरकार के दौर में देश में आधारभूत ढांचे को मजबूत करनें के लिए एक सार्थक प्रयास हुए थे। यह प्रयास किसी अन्य शासक नें कभी नहीं सोचे। किसी भी कांग्रेसी सरकार नें कभी भी देश की सडको को मजबूत और पक्का करनें का कोई प्रयत्न नहीं किया। यूपीए-१ और २ बाजपई सरकार के किए हुए कार्यक्रम को ही आगे चलाती दिखी वह भी कछुआ रफ़्तार से। हर परियोजना में अपनें और सभी के खानें पीनें के इंतज़ाम करते हुए। 

कांग्रेसी मानसिकता कभी किसी भी समस्या का समाधान नहीं देखती। वह केवल राजनीति देखती है, वह एक इस प्रकार का राजनीतिक तंत्र खडा कर देती है जिसमें अपनें विरोधियों को या तो समाप्त कर दिया जाए या फ़िर उन्हे तोड दिया जाए।

  • महाराष्ट्र में वामपंथ को तोडनें के लिए शिवसेना को खडा किया
  • शिवसेना के वर्चस्व को तोडनें के लिए राज ठाकरे को खडा किया
  • भिंडरावाले को बढावा देनें वाली कांग्रेस
  • कावेरी जल विवाद का कभी समाधान निकालने का प्रयास न हुआ
  • नेपाल से कोई जल सन्धि नहीं
  • चीन पर कोई नीति नहीं
  • पाकिस्तान पर कोई नीति नहीं
  • आतंकवाद पर कोई कठोर कानून नहीं, केवल इस्लामिक वोट पर नज़र गडाए यह लोग आतंकवाद पर भी नरम रवैया अपनाते हैं
  • कमजोर आर्थिक नीति 
  • कमजोर विदेश नीति
  • भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र
  • दंभी मंत्री
  • दमन कारी सरकार :- यूपीए-२ के किए गये कार्यकलापों को याद रखिए


इसके अलावा भी बहुत से मुद्दे निकलेंगे... सबसे गंभीर मसला है देश की मीडिया का कांग्रेसी करण हो जाना। अब गुजरात में साबरमती नदी के किनारे पर लोग टट्टी करते थे। मोदी सरकार नें साबरमती नदी को साफ़ करके उसके किनारे पक्के करनें का सफ़ल प्रयास किया। इसकी रिपोर्टिंग एनडीटीवी नें कुछ ऐसे की, "मोदी की सरकार में लोगों का टट्टी करना भी दूभर हो गया" यह एक बानगी भर है।

जो मीडिया एक बार भी सोनिया गांधी की बीमारी का कारण नहीं खोज पाया, वह मीडिया भाजपा और एनडीए की हर खबर की कांग्रेसी ढंग से विवेचना क्यों करता है। सोच कर देखिए.....  देश वाकई में बदलाव चाहता है.... कांग्रेस को हटाना और मोदी को लाना वाकई में इस समय की एक बडी जरूरत है। एक बिना रीढ की हड्डी वाले प्रधानमंत्री की जगह एक मजबूत शासक का आना बहुत बडी ज़रूरत है।

बुधवार, 15 मई 2013

बदलता और सुलगता भारत:- भाग-२... राम भरोसे हिन्दुस्तान

पिछली पोस्ट में हमनें देश की समस्याओं और आज के पक्ष और विपक्ष की प्रतिक्रियाओं से अवगत कराया था। आज हम कुछ समाधान की ओर चलते हैं। 



देश की वोटिंग प्रणाली

. देश की वोटिंग प्रणाली पर गौर कीजिए। देश का सबसे बड़ा युवा वर्ग  जो अपने मूल स्थान से दूर किसी महानगर में नौकरी करता है। इस बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाली एक बड़ी आबादी का वोटिंग लिस्ट में नाम वहां नहीं होता जहाँ वह रहता है. मेरे साथ काम करने वाले लोग मुंबई की वोटिंग लिस्ट में नाम नहीं लिखवाते क्योंकी दौड़ भाग कौन करे। यह वर्ग सोमवार से शुक्रवार काम करने के बाद वीकेंड पर आराम करना पसंद करता है… यह हमारा युवा वर्ग है और आज कल की देश की हालत से फेसबुक पर सबसे ज्यादा यही चिल्लाता है। कांग्रेस का फायदा यही है की उसको सोशल मीडिया पर हो रहे जनता के विरोध करने वाले अधिकतर लोग असल में वोटर हैं ही नहीं। 

समाधान:

ई -वोटिंग: इस वर्ग को जोड़ने का सबसे आसान रास्ता है इलेक्ट्रानिक तरीके से वोटिंग करना। देश के वोटिंग लिस्ट को एक सेन्ट्रल सर्वर से जोड़ा जाये और हर शहर में चुनाव आयोग पूरे देश में कहीं भी और किसी भी संसदीय क्षेत्र की वोटिंग करवा सके।  वोटर केवल अपना आई-डी प्रूफ दिखाए और अपना कोई एक और पहचान चिन्ह देकर वोट डाल सकें। यदि कोई वोटर अपने मूल स्थान से अपना नाम कहीं और लिखाना चाहे तो यह प्रक्रिया सरल हो।

वोटिंग करना अनिवार्य हो:
हर नागरिक के लिए वोटिंग अनिवार्य हो, वोटिंग करने से यदि कोई कतराता हो तो फ़िर उसके खिलाफ़ कार्यवाही की जाए, नागरिको के लिए यह सरकारी छूट में कटौती, सब्सिडी न देना या फ़िर कोई भी सरकारी सुविधा का बन्द कर दिया जाना। बैंक ब्याज़ देना बन्द करें ऐसे लोगों को... वगैरह वगैरह...  मतलब जनता पर कार्यवाही का डर होगा तो ही डंडे के जोर पर काम करनें वाला हमारा भेड-तंत्र वोट डालनें अनिवार्य रूप से आएगा।

वोट में "कोई नहीं" का विकल्प 
यदि किसी संसदीय क्षेत्र में कोई भी उम्मीदवार जनता के मापदंड पर खरा न उतरता हो तो फ़िर वह कोई नहीं का उत्तर चुन सकता है। 

नतीजे सेन्ट्रल आफ़िस से निकले
चुनाव आयोग हर चुनाव का नतीजा सेन्टल लोकेशन से करे। सीबीएसई के परीक्षा परिणाम की तरह चुनाव आयोग नतीजे घोषित करे। 

  • उम्मीदवारों की सम्पत्ति का ब्यौरा अखबारों में निकले  
  • किसी भी प्रकार का अपराधिक मामला न्यायालय में लम्बित होनें पर भी उम्मीदवार चुनावी प्रक्रिया से बाहर रहे
  • कोई मामला साबित होनें की दशा में उस उम्मीदवार पर आजीवन प्रतिबंध लग जाए
  • किसी भी क्षेत्र से उम्मीदवारी करनें से पहले उस व्यक्ति का उस क्षेत्र से होना ज़रूरी है 
  • लोकसभा के नेता को लोकसभा से चुनकर आना होगा
  • कोई राजनीतिक दल यदि प्रांतवाद या फ़िर अलगाववाद को बढावा दे तो प्रतिबंधित हो 
  • गुंडई और दबंगई बन्द की जाए 
चुनाव आयोग को एक स्वायत्त संस्था बना दिया जाए और उसे सरकार के नियंत्रण से दूर रखा जाए। इसकी स्वायत्तता से किसी भी कीमत पर समझौता न हो। 

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अलगाववादियों का बहिष्कार

हिन्दुस्तान का भाषाई आधार पर बंटवारा एक बहुत बडी भूल थी, हिन्दुस्तान को एडमिन की सहुलियत के हिसाब से बांटना अधिक श्रेयस्कर होता। एक देश और एक ही प्रकार की शासन प्रणाली होनी चाहिए।

आज किसी भी प्रकार के अलगाववाद को बन्द करना होगा। हिन्दुस्तान के सभी नागरिकों का भारतीयकरण होना ज़रूरी है। 

जो राष्ट्रवादी सोच के खिलाफ़ जाता हो, भाषाई आधार पर भारत के नागरिकों में भेद करता हो। और संप्रदाय को संप्रदाय से टकरानें की सोच का समर्थन करता है उस पर प्रतिबंध लगाना और उसे दडित करना पहला काम होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर: १९८४ के दंगो के बाद कांग्रेस पर कम से कम दस वर्ष का प्रतिबंध लगना चाहिए था। अगर एक भी ऐसी मिसाल होती तो भारत में कभी भी राजनीति से प्रेरित दंगे न होते।   

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एक शिक्षा प्रणाली
पूरे देश में एक ही शिक्षा का पाठ्यक्रम हो, भाषा कोई भी हो लेकिन पाठ्यक्रम एक ही होना चाहिए। उदाहरण के लिए दसवीं का बच्चा वही चीज़े उत्तर प्रदेश में, केरल में, गुजरात में या फ़िर किसी भी राज्य में पढे। एक ही पाठ्यक्रम रखनें से एकीकरण होगा। मैकाले की प्रणाली की जगह अपनी स्वयं की प्रणाली बनाईए

  • नैतिक शिक्षा
  • संस्कार
  • व्यवहारिक ज्ञान 
  • हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत
  • एप्लाईड साईस
  • किताबों को घोलकर पिलानें की जगह इंटरएक्टिव तरीके से शिक्षित करना
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समान टैक्स प्रणाली
हमारे यहां हर राज्य में अलग टैक्स प्रणाली है, उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में हिन्दुस्तान मे सबसे अधिक आक्ट्राई है और यहां हर चीज़ पर सबसे अधिक टैक्स देना पडता है। अभी एलबीटी नाम की एक नई नौटंकी आनें को है। 

आप एक कार खरीदते हैं, दिल्ली मे यदि वह पांच लाख में मिलेगी तो वही कार आपको मुम्बई में पांच लाख पचपन हज़ार में मिलेगी आखिर एक देश में इतना अन्तर क्यों ? 

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मित्रों देश के नागरिकों का देश की आज की स्थिति को समझना बहुत बडी चुनौती है। हमें युवा वर्ग को जगाना होगा और उसे बदलाव के लिए प्रेरित करना होगा। हमारी कमज़ोर याददाश्त घोटालेबाजो की संजीवनी है। याद रखिए और याद कराते रहिए। कमज़ोर भारत और कमज़ोर सरकार की जगह एक साहसी भारत और साहसी सरकार की ज़रूरत है। जो सही माईनो में हमारा प्रतिबंध कर सके। 

सोच कर देखिए... कम से कम एक सपनें जैसा ही सही, क्या पता यह सपना एक दिन सच हो जाए।  

रविवार, 5 मई 2013

बदलता और सुलगता भारत:- भाग-१... राम भरोसे हिन्दुस्तान

यह हो क्या रहा है भाई





मित्रों पिछले कुछ दिनों से हम और आप हिंदुस्तान की हालत से काफी चिंचित हैं। चीन भारत में घुसने को तैयार है और हमारे हिंदुस्तान के विदेश मंत्री चीनी दावत में जाने को तैयार हैं, सरबजीत को मार दिया जाता है और हमारे मंत्री डायलाग के रास्ते को बंद नहीं करेंगे और उनकी मेहमाननवाज़ी करते रहेंगे। कई सवाल हैं और उनके कोई जवाब नहीं हैं। मित्रों आखिर हमारी ऐसी हालत क्यूँ है और इस हालत के लिए ज़िम्मेदार कौन हैं। 

पिछले दिनो कुछ कांग्रेसियों से मिला, वह अपनी ही सफ़लता की गारंटी की बात करते हैं। समझते हैं की यदि मोदी के नाम की घोषणा होती है तो फ़िर यूपीए-३ पक्का है। हमनें उन्हे याद दिलाया कोयला, २जी, आदर्ष, मौन प्रधानमंत्री, देश के नेताओं का बडबोलापन, सुप्रीम कोर्ट की हर मामलें में सरकार को लगनें वाली लात वगैरह वगैरह.... चुप्पी के बाद वह केवल इतना ही बोले की देखिएगा २०१४ में हमी आएंगे।  

उसी दिन भाजपा और शिवसेना के भी कुछ लोकल नेताओं से बात हुई। यह इस मुगालते में जी रहे हैं की देश की त्रस्त जनता अगले चुनाव में हर हालत में कांग्रेस को निकाल बाहर करेगी। देश के पक्ष और विपक्ष को इस हालत में देखकर भाई मेरा तो सर चकरा गया। आखिर यह क्या हो रहा है भारत में। कांग्रेस ऐसा सोच सकती है क्योंकी हिन्दुस्तान का एक बहुत बडा वर्ग विमुख है सरकार से और उसका वोटिंग प्रणाली में कोई दखल है ही नहीं। फ़ेसबुक पर चिल्लानें वाला युवा वर्ग आखिर किस काम का? यह थोडे ही धूप में लाईन में लग कर वोट करेगा? यह तो वोटिंग के दिन को छुट्टी का दिन समझ कर किसी ट्रिप पर निकल लेता है। 

कुछ बातें: ( ताकि सनद रहे अगले चुनाव तक)

पक्ष से
  • हमारे प्रधानमंत्री हमारे देश का नेतॄत्व नहीं करते
  • वह जनता से कभी कोई संवाद नहीं करते, उनके बयान कोई और लिखता है और कोई और उसे साईन आफ़ करता है और वह उसे पढते हैं और बाद में "ठीक हैं" कहकर अपनी गम्भीरता दिखा देते हैं
  • आजतक कभी किसी डिबेट में नहीं आए
  • कभी किसी बात की ज़िम्मेदारी नहीं लेते
  • कांग्रेस सीबीआई का दुरुपयोग बन्द नहीं करती
  • घोटाले बन्द नहीं होते क्योंकी सरकार अपनी ज़ेब भरनें के लिए कॄतसंकल्प दिखती है
  • यूनाईटेड नेशन भारत को महिलाओं के लिए असुरक्षित घोषित करता है लेकिन यह कुछ नहीं करते
  • महिलाओं की सुरक्षा, खाद्यसुरक्षा गारंटी जैसे विधेयक लटका कर रखती है
  • किसी भी समस्या के समाधान की ओर नहीं देखती केवल और केवल राजनीति खेलती है
  • अलगाववादियों को संरक्षण देती है
  • क्षद्म धर्मनिरपेक्षता है, यह अलगाववादियों को बढावा देते हैं। मुंह में राम बगल में छूरी वाली बात को सार्थक करते हैं
  • प्रव्क्ताओं पर कोई लगाम नहीं है 
  • आर्थिक मंदी से निकलने का कोई दूरगामी सुधार प्रक्रिया नहीं है


विपक्ष से:
  • विपक्ष की दशा और दिशा के बारे में देश कन्फ़्यूज़ है
  • सार्थक और सकारात्मक विपक्ष जैस कुछ दीख नहीं रहा
  • नेतॄत्व का संकट है
  • कुनबे में दरारे साफ़ दिख रहीं हैं
  • नीयत पर भरोसा नहीं हो रहा
  • जनता से जुडनें का कोई प्रयास नहीं हो रहा
  • फ़ेसबुक मीडिया पर हो रहे सरकार विरोधी स्वर से खुश हैं लेकिन हकीकत से कोसों दूर
क्षेत्रिय दलों का राष्ट्रीय राजनिति पर हावी होना एक बहुत बडी समस्या है, यह दल केवल और केवल अपनी छोटी सोच के कारण देशव्यापी हित के कार्य़क्रमों को नदर-अंदाज़ कर देते हैं। 


मित्रों आखिर हिन्दुस्तान की समस्याएं बहुत हैं लेकिन इस सुलगते और बदलते भारत में कुछ सकारात्मक बदलाव ज़रूरी हैं। आईए जागरूकता फ़ैलानें के लिए ही सही 

कल की पोस्ट में हम आज के भारत की समस्याओं के समाधान के रास्ते तलाशेंगे। 

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बुधवार, 10 अप्रैल 2013

भ्रमित हम... आखिर कैसे?

आज शाम को शिवम मिश्रा जी ने अपनें फ़ेसबुक स्टेटस पर चौरासी के दंगो पर एक लाईन लिखी और उस पर जो तर्क, कुतर्क हुए उसनें मुझे सोचनें पर मजबूर कर दिया की आखिर जनता की याददाश्त इतनी कम क्यों होती है। आखिर क्या वाकई हमारी सोच इतनी कमज़ोर है जो हमें चौरासी याद नहीं और गुजरात याद है? आखिर ऐसा कैसे हो रहा है...  देखो, हिन्दुस्तान की सबसे बडी विडम्बना यही है की हमारे यहां इतिहास को पाठ्यक्रम में उसी हिसाब से लिया गया जैसा आज़ादी के पहले गोरे चाहते थे और बाद में कांग्रेसी। यह मैकाले की एक सोची समझी साज़िश थी जिसको कांग्रेस नें आज़ादी के बाद भी फ़ालो किया। इसमें भारत के इतिहास को तोड मरोड कर नई तस्वीर खींची गई। मुझे बडा खेद होता है जब कोई यह कहता है की फ़लां फ़लां बात बहुत पुरानी हुई और अब तो उसका कोई औचित्य नहीं है। यार नरसंहार को कैसे भुलाया जा सकता है। अगर गुजरात याद रखना है तो गोधरा याद रखो,  चौरासी भी याद रखो.... और भागलपुर भी याद रखो... 


सरकारी साज़िश है जो हर चीज़ को अपनें फ़ायदे से तोडती है... मरोडती है और जनता के सामनें वही रखती है जो वह चाहती है। कितनें लोग जानते हैं की नेहरू की मौत कैसे हुई थी.. कितनें लोगो को पता है की शास्त्री जी की मौत में भी साज़िश थी.. अब चुंकि हर जानकारी मौजूद है तो हमारा फ़र्ज़ है की सच सभी के सामनें लाएं। सरकार जो चाहे वह करे लेकिन हमें अपनें इतिहास को भूलनें की जगह उसे एकदम याद रखना चाहिए। कांग्रेस हो या भाजपा जो कोई भी गलत है वह गलत है। कोई धुला हुआ नहीं है हर कोई एक ही जैसा है। कांग्रेस एक छुपा हुआ चेहरा है जिसकी कथनी और करनी में जमीन आसमान का अन्तर है। गांधी जी के यह तथाकथित चेले गांधी वाद के सबसे बडे हत्यारे हैं। सोच कर देखो.... 

मित्रों हमारी याददाश्त की कमज़ोरी का फ़ायदा हमेशा राजनीतिक दलों नें उठाया है। अगर कोई आम आदमी या हमारे जैसा कोई आम ब्लागर यह कहता है की "चौरासी के दंगो को हमनें भुला दिया क्योंकी उस समय हम नहीं थे और उनसे हमारा भावनात्मक जुडाव नहीं है लेकिन चूकि गुजरात के दंगे हाल फ़िलहाल में हुए तो उनसे हमारा भावनात्मक जुडाव है" यह अपनें आप में एक बहुत बडी बात है... आम आदमी की सोच में ऐसी बात... लेकिन इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है की हमारी देश की जनता वाकई कांग्रेसी राज के ही लायक है। और कांग्रेसी साज़िश एकदम कामयाब है। मित्रों आज सारी जानकारी उपलब्ध है... आईए बेनकाब करें हर उस  चीज़ को जो हमें हकीकत से दूर करे। खुद समझे और अपनें आस पास के लोगों को जागरूक करें। सरकारें आएंगी और जाएंगी... लेकिन यदि हम अपने विवेक से अपनें प्रतिनिधि चुनेंगे तो अपना ही विकास करेंगे। 

याद रखिए... अपनें अतीत को... और अपनें वर्तमान और अपनें भविष्य को देखिए.... जो मुल्क अपने इतिहास की गलती से नहीं सीखता.... वह पिछड जाता है। और शायद हमारे पिछडनें का कारण यही है... शहीदे-आज़म भगत सिंह की कुरबानी भूलकर गांधीजी का नाम कैसे लिया जा सकता है। आज़ाद और नेताजी को कांग्रेस आतंकवादी की संज्ञा देती है, तो ऐसे में इनकी हकीकत को सबके सामनें लाना क्या हमारा फ़र्ज़ नहीं? अब इसके आगे क्या लिखें, थोडा आन्दोलित हूं इसलिए बात यहीं खत्म करता हूं... 

-देव

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

राष्ट्र हित मे आप भी इस मुहिम का हिस्सा बने




 सन 1945 मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तथाकथित हवाई दुर्घटना या उनके जापानी सरकार के सहयोग से 1945 के बाद सोवियत रूस मे शरण लेने या बाद मे भारत मे उनके होने के बारे मे हमेशा ही सरकार की ओर से गोलमोल जवाब दिया गया है उन से जुड़ी हुई हर जानकारी को "राष्ट्र हित" का हवाला देते हुये हमेशा ही दबाया गया है ... 'मिशन नेताजी' और इस से जुड़े हुये मशहूर पत्रकार श्री अनुज धर ने काफी बार सरकार से अनुरोध किया है कि तथ्यो को सार्वजनिक किया जाये ताकि भारत की जनता भी अपने महान नेता के बारे मे जान सके पर हर बार उन को निराशा ही हाथ आई !

मेरा आप से एक अनुरोध है कि इस मुहिम का हिस्सा जरूर बनें ... भारत के नागरिक के रूप मे अपने देश के इतिहास को जानने का हक़ आपका भी है ... जानिए कैसे और क्यूँ एक महान नेता को चुपचाप गुमनामी के अंधेरे मे चला जाना पड़ा... जानिए कौन कौन था इस साजिश के पीछे ... ऐसे कौन से कारण थे जो इतनी बड़ी साजिश रची गई न केवल नेता जी के खिलाफ बल्कि भारत की जनता के भी खिलाफ ... ऐसे कौन कौन से "राष्ट्र हित" है जिन के कारण हम अपने नेता जी के बारे मे सच नहीं जान पाये आज तक ... जब कि सरकार को सत्य मालूम है ... क्यूँ तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया जाता ... जानिए आखिर क्या है सत्य .... अब जब अदालत ने भी एक समय सीमा देते हुये यह आदेश दिया है कि एक कमेटी द्वारा जल्द से जल्द इस की जांच करवा रिपोर्ट दी जाये तो अब देर किस लिए हो रही है ??? 


आप सब मित्रो से अनुरोध है कि यहाँ नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ और इस मुहिम का हिस्सा बने और अपने मित्रो से भी अनुरोध करें कि वो भी इस जन चेतना का हिस्सा बने !
  Set up a multi-disciplinary inquiry to crack Bhagwanji/Netaji mystery
यहाँ ऊपर दिये गए लिंक मे उल्लेख किए गए पेटीशन का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है :- 

सेवा में,
अखिलेश यादव, 
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश सरकार 
लखनऊ 
प्रिय अखिलेश यादव जी,

इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, आप भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री इस स्थिति में हैं कि देश के सबसे पुराने और सबसे लंबे समय तक चल रहे राजनीतिक विवाद को व्यवस्थित करने की पहल कर सकें| इसलिए देश के युवा अब बहुत आशा से आपकी तरफ देखते हैं कि आप माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के हाल ही के निर्देश के दृश्य में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाग्य की इस बड़ी पहेली को सुलझाने में आगे बढ़ेंगे|
जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में | 1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उस संत के सामान को सुरक्षित रखने का अंतरिम आदेश दिया।

भगवनजी, जो अब गुमनामी बाबा के नाम से बेहतर जाने जाते है, एक पूर्ण वैरागी थे, जो नीमसार, अयोध्या, बस्ती और फैजाबाद में किराए के आवास पर रहते थे। वह दिन के उजाले में कभी एक कदम भी बाहर नहीं रखते थे,और अंदर भी अपने चयनित अनुयायियों के छोड़कर किसी को भी अपना चेहरा नहीं दिखाते थे। प्रारंभिक वर्षों में अधिक बोलते नहीं थे परन्तु उनकी गहरी आवाज और फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदुस्तानी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे वह बचना चाहते थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा उनका कहना है कि भगवनजी बुजुर्ग नेताजी की तरह लगते थे। वह अपने जर्मनी, जापान, लंदन में और यहां तक कि साइबेरियाई कैंप में अपने बिताए समय की बात करते थे जहां वे एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की एक मनगढ़ंत कहानी "के बाद पहुँचे थे"। भगवनजी से मिलने वाले नियमित आगंतुकों में पूर्व क्रांतिकारी, प्रमुख नेता और आईएनए गुप्त सेवा कर्मी भी शामिल थे।
2005 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थापित जस्टिस एम.के. मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट में पता चला कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में नहीं हुई थी। सूचनाओं के मुताबिक वास्तव में उनके लापता होने के समय में वे सोवियत रूस की ओर बढ़ रहे थे।
31 जनवरी, 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ललिता बोस और उस घर के मालिक जहां भगवनजी फैजाबाद में रुके थे, की संयुक्त याचिका के बाद अपनी सरकार को भगवनजी की पहचान के लिए एक पैनल की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देशन दिया।

जैसा कि यह पूरा मुद्दा राजनैतिक है और राज्य की गोपनीयता के दायरे में है, हम नहीं जानते कि गोपनीयता के प्रति जागरूक अधिकारियों द्वारा अदालत के फैसले के जवाब में कार्यवाही करने के लिए किस तरह आपको सूचित किया जाएगा। इस मामले में आपके समक्ष निर्णय किये जाने के लिए निम्नलिखित मोर्चों पर सवाल उठाया जा सकता है:

1. फैजाबाद डीएम कार्यालय में उपलब्ध 1985 पुलिस जांच रिपोर्ट के अनुसार भगवनजी नेताजी प्रतीत नहीं होते।
2. मुखर्जी आयोग की खोज के मुताबिक भगवनजी नेताजी नहीं थे।
3. भगवनजी के दातों का डीएनए नेताजी के परिवार के सदस्यों से प्राप्त डीएनए के साथ मेल नहीं खाता।
वास्तव मे, फैजाबाद एसएसपी पुलिस ने जांच में यह निष्कर्ष निकाला था, कि “जांच के बाद यह नहीं पता चला कि मृतक व्यक्ति कौन थे" जिसका सीधा अर्थ निकलता है कि पुलिस को भगवनजी की पहचान के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला।

हम इस तथ्य पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकला है कि "किसी भी ठोस सबूत के अभाव में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भगवनजी नेताजी थे"। दूसरे शब्दों में, आयोग ने स्वीकार किया कि नेताजी को भगवनजी से जोड़ने के सबूत थे, लेकिन ठोस नहीं थे।

आयोग को ठोस सबूत न मिलने का कारण यह है कि फैजाबाद से पाए गए भगवनजी के तथाकथित सात दातों का डी एन ए, नेताजी के परिवार के सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त के नमूनों के साथ मैच नहीं करता था। यह परिक्षण केन्द्रीय सरकार प्रयोगशालाओं में किए गए और आयोग की रिपोर्ट में केन्द्र सरकार के बारे मे अच्छा नहीं लिखा गया। बल्कि, यह माना जाता है कि इस मामले में एक फोरेंसिक धोखाधडी हुई थी।
महोदय, आपको एक उदाहरण देना चाहेंगे कि बंगाली अखबार "आनंदबाजार पत्रिका" ने दिसंबर 2003 में एक रिपोर्ट प्रकाशित कि कि भगवनजी ग्रहण दांत पर डीएनए परीक्षण नकारात्मक था। बाद में, "आनंदबाजार पत्रिका", जो शुरू से ताइवान एयर क्रेश थिओरी का पक्षधर रहा है, ने भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष स्वीकार किया कि यह खबर एक "स्कूप" के आधार पर की गयी थी। लेकिन समस्या यह है कि दिसंबर 2003 में डीएनए परीक्षण भी ठीक से शुरू नहीं किया गया था। अन्य कारकों को ध्यान में ले कर यह एक आसानी से परिणाम निकलता है कि यह "स्कूप" पूर्वनिर्धारित था।
जाहिर है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश, एम.के. मुखर्जी ऐसी चालों के बारे में जानते थे और यही कारण है कि 2010 में सरकार के विशेषज्ञों द्वारा आयोजित डी एन ए और लिखावट के परिक्षण के निष्कर्षों की अनदेखी करके,उन्होंने एक बयान दिया था कि उन्हें "शत प्रतिशत यकीन है" कि भगवनजी वास्तव में नेताजी थे।यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि सर्वोच्च हस्तलेख विशेषज्ञ श्री बी लाल कपूर ने साबित किया था कि भगवनजी की अंग्रेजी और बंगला लिखावट नेताजी की लिखावट से मेल खाती है।
भगवनजी कहा करते थे की कुछ साल एक साइबेरियाई केंप में बिताने के बाद 1949 में उन्होंने सोवियत रूस छोड़ दिया और उसके बाद गुप्त ऑपरेशनो में लगी हुई विश्व शक्तियों का मुकाबला करने में लगे रहे। उन्हें डर था कि यदि वह खुले में आयेंगे तो विश्व शक्तियां उनके पीछे पड़ जायेंगीं और भारतीय लोगो पर इसके दुष्प्रभाव पड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि “मेरा बाहर आना भारत के हित में नहीं है”। उनकी धारणा थी कि भारतीय नेतृत्व के सहापराध के साथ उन्हें युद्ध अपराधी घोषित किया गया था और मित्र शक्तियां उन्हें उनकी 1949 की गतिविधियों के कारण अपना सबसे बड़ा शत्रु समझती थी।
भगवनजी ने यह भी दावा किया था कि जिस दिन 1947 में सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाएगा, उस दिन भारतीय जान जायेंगे कि उन्हें गुमनाम/छिपने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा।
खासा दिलचस्प है कि , दिसम्बर 2012 में विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय, लंदन, ने हम में से एक को बताया कि वह सत्ता हस्तांतरण के विषय में एक फ़ाइल रोके हुए है जो "धारा 27 (1) (क) सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम (अंतरराष्ट्रीय संबंधों) के तहत संवेदनशील बनी हुई है और इसका प्रकाशन संबंधित देशों के साथ हमारे संबंधों में समझौता कर सकता है" ।

महोदय, इस सारे विवरण का उद्देश्य सिर्फ इस मामले की संवेदनशीलता को आपके प्रकाश में लाना है। यह बात वैसी नहीं है जैसी कि पहली नजर में लगती है। इस याचिका के हस्ताक्षरकर्ता चाहते है कि सच्चाई को बाहर आना चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि भगवनजी कौन थे। वह नेताजी थे या कोई "ठग" जैसा कि कुछ लोगों ने आरोप लगाया है? क्या वह वास्तव में 1955 में भारत आने से पहले रूस और चीन में थे, या नेताजी को रूस में ही मार दिया गया था जैसा कि बहुत लोगों का कहना है।

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, भगवनजी के तथ्यों के विषय में एक पूरी तरह से जांच के सुझाव से काफी प्रभावित है। इसलिए हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रशासन को अदालत के निर्णय का पालन करने हेतू आदेश दें। आपकी सरकार उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों और उच्च अधिकारियों की एक टीम को मिलाकर एक समिति की नियुक्ति करे जो गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी की पहचान के सम्बन्ध में जांच करे।

यह भी अनुरोध है कि आपकी सरकार द्वारा संस्थापित जांच -

1. बहु - अनुशासनात्मक होनी चाहिए, जिससे इसे देश के किसी भी कोने से किसी भी व्यक्ति को शपथ लेकर सूचना देने को वाध्य करने का अधिकार हो । और यह और किसी भी राज्य या केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से सरकारी रिकॉर्ड की मांग कर सके।

2. सेवानिवृत्त पुलिस, आईबी, रॉ और राज्य खुफिया अधिकारी इसके सदस्य हो। सभी सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों, विशेष रूप से उन लोगों को, जो खुफिया विभाग से सम्बंधित है,उत्तर प्रदेश सरकार को गोपनीयता की शपथ से छूट दे ताकि वे स्वतंत्र रूप से सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों के लिए अपदस्थ हो सकें।

3. इसके सदस्यों में नागरिक समाज के प्रतिनिधि और प्रख्यात पत्रकार हो ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके। ये जांच 6 महीने में खत्म की जानी चाहिए।

4. केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा आयोजित नेताजी और भगवनजी के बारे में सभी गुप्त रिकॉर्ड मंगवाए जाने पर विचार करें। खुफिया एजेंसियों के रिकॉर्ड को भी शामिल करना चाहिए। उत्तर प्रदेश कार्यालयों में खुफिया ब्यूरो के पूर्ण रिकॉर्ड मंगावाये जाने चाहिए और किसी भी परिस्थिति में आईबी स्थानीय कार्यालयों को कागज का एक भी टुकड़ा नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

5.सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भगवनजी की लिखावट और अन्य फोरेंसिक सामग्री को किसी प्रतिष्ठित अमेरिकन या ब्रिटिश प्रयोगशाला में भेजा जाये.
हमें पूरी उम्मीद है कि आप, मुख्यमंत्री और युवा नेता के तौर पर दुनिया भर में हम नेताजी के प्रसंशकों की इस इच्छा को अवश्य पूरा करेंगे |

सादर
आपका भवदीय
अनुज धर
लेखक "India's biggest cover-up"

चन्द्रचूर घोष
प्रमुख - www.subhaschandrabose.org और नेताजी के ऊपर आने वाली एक पुस्तक के लेखक

बुधवार, 30 जनवरी 2013

आखिरी वसीयतनामा और आज का भारत


मित्रों, आज की कांग्रेस जो खुद को गांधी वादी कहती है और शहरी करण और ग्लोबलाईज़ेशन के ज़रिए देश की मुद्रा की कीमत को रसातल में पहुंचा कर खुद की तरक्की पर स्वयं ही खुश होती है... उस गांधी की विचारधारा की सबसे अधिक दुर्दशा कांग्रेस ने ही तो की है।  आज स्वदेशी जैसे मुद्दे कांग्रेस को टीस की तरह चुभते हैं, कोई असली गांधीवादी विचारधारा का व्यक्ति आ जाए तो कांग्रेस को कापीराईट उल्लंघन जैसा लगता है। मित्रों आईए आपको गांधीजी की आखिरी चिट्ठी से रूबरू कराते हैं। यह आखिरी वसीयतनामें के तौर पर गांधीजी के द्वारा देश को दी गई आखिरी विरासत थी। इसमें गांधीजी नें स्वदेशी, ग्रामीण विकास, पंचायत इकाई और आत्मनिर्भरता की बात की थी, लेकिन नेहरू की नीति में विकास केवल शहरीकरण और उद्योगीकरण से ही हो सकता था। वैसे दिक्कत यह भी रही की हम ना तो शहरीकरण में ही विकास कर पाए और न ही ग्रामीण भारत को ही बचा कर रख पाए। हमनें शहरों के विकास के लिए ग्रामीण भारत का दोहन किया और जो कुछ भी योजनाएं बनी उसके पैसे को कुर्ता पैजामा खा गया...  भारत भ्रष्ट बना और दुनिया के नक्शे पर हमारी पहचान एक गरीब देश की ही रही। सोने की चिडिया..... थी... आज तो अजीब सा भारत है। लीजिए इस आखिरी वसीयतनामें पर नज़र डालिए और सोचिए हम कहां पहुंच गये?
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गांधीजी का आखिरी वसीयतनामा
[कांग्रेस के नये विधान का नीचे दिया जा रहा मसविदा गांधीजी ने 29 जनवरी, 1948 को अपनी मृत्‍यु के एक ही दिन पहले बनाया था। यह उनका अन्तिम लेख था। इसलिए इसे उनका आखिरी वसीयतनामा कहा जा सकता है। ]
देश का बंटवारा होते हुए भी, भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस द्धारा मुहैया किये गये साधनों के जरिये हिन्‍दुस्‍तान को आजादी मिल जाने के कारण मौजूदा स्‍वरूप वाली कांग्रेस का काम अब खतम हुआ- यानी प्रचार के वाहन और धारा सभा की प्रवूत्ति चलाने वाले तंत्र के नाते उसकी उपयोगिता अब समाप्‍त हो गई है। शहरों और कस्‍बों से भिन्‍न उसके सात लाख गांवो की दृष्टि से हिन्‍दुस्‍तानी की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। लोकशाही के मकसद की तरफ हिन्‍दुस्‍तान की प्रगति के दरमियान फौजी सत्‍ता पर मुल्‍की सत्‍ता को प्रधानता देने की लडा़ई अनिवार्य है। कांग्रेस को हमें राजनीतिक पार्टियों और साम्‍प्रदायिक संस्‍थाओं के साथ की गन्‍दी होड़ से बचाना चाहिये। इन और ऐसे ही दूसरे कारणों से आखिल भारत कांग्रेस कमेटी के नीचे दिये हुए नियमों के मुताबिक अपनी मौजूदा संस्‍था को तोड़ने और लोक-सेवक- संघ के रूप में प्रकट होने का निश्‍चय करे। जरूरत के मुताबिक इन नियमों में फेर फार करने का इस संघ को अधिकार रहेगा।
गांववाले या गांववालों के जैसी मनोवृत्ति वाले पांच वयस्‍क पुरूषों या स्त्रियों की बनी हुई हर एक पंचायत एक इकाई बनेगी।
पास-पास की ऐसी हर दो पंचायतों की, उन्‍हीं में से चुने हुए एक नेता की रहनुमाई में, एक काम करने वाली पार्टी बनेगी।
जब ऐसी 100 पंचायतें बन जायं, तब पहले दरजे के पचास नेता अपने में से दूसरे दरजे का एक नेता चुनें और इस तरह पहले दरजे का नेता दूसरे दरजे के नेता के मातहत काम करे। दो सौ पंचायतों के ऐसे जोड़ कायम करना तब तक जारी रखा जाय, जब तक कि वे पूरे हिन्‍दुस्‍तान को न ढक लें। और बाद में कायम की गई पंचायतों को हर एक समूह पहले की तरह दूसरे दरजे का नेता चुनता जाय। दूसरे दरजे के नेता सारे हिन्‍दुस्‍तान के लिये सम्मिलित रीति से काम करें ओर अपने- अपने प्रदेशों में अलग- अलग काम करें। जब जरूरत महसूस तब दूसरे दरजे के नेता अपने में से एक मुखिया चुनें, और वह मुखिया चुनने वाले चाहें तब तक सब समूहों को व्‍यवस्थित करके उनकी रहनुमाई करें।
(प्रान्‍तों या जिलों की अन्तिम अभी तय न होने से सेवकों के इन समूह को प्रान्‍तीय जिला समितियों में बाटने की कोशिश नहीं की गई। और, किसी भी वक्‍त बनाये हुए समूहों को सारे हिन्‍दुस्‍तान में काम करने का अधिकार रहेगा। यह याद रखा जाय कि सेवकों के इस समुदाय को अधिकार या सत्‍ता अपने उन स्‍वामियों से यानी सारे हिन्‍दुस्‍तान की प्रजा से मिलती है, जिसकी उन्‍होंने अपनी इच्‍छा से और होशियारी से सेवा की है।)
1. हर एक सेवक अपने हाथ- काते सूत की या चरखा- सेघ द्धारा प्रमाणित खादी हमेशा पहनने वाला और नशीली चीजों से दूर रहने वाला होना चाहिये। अगर वह हिन्‍दू है तो उसे अपने में से और अपने परिवार में से हर किस्‍म की छुआछूत दूर करनी चाहिये और जातियों के बीच एकता के, सब धर्मों के प्रति समभाव के और जाति, धर्म या स्‍त्री- पुरूष के किसी भेदभाव के बिना सबके लिए समान अवसर और समान दरजे के आदर्श में वि श्‍वास रखने वाला होना चाहिये।
2. अपने कार्यक्षेत्र में उसे हर एक गांववालों के निजी संसर्ग में रहना चाहिये।
3. गांववालों में से वह कार्यकर्ता चुनेगा और उन्‍हें तालीम देगा। इन सबका वह रजिस्‍टर रखेगा।
4. वह अपने रोजाना के काम का रेकार्ड रखेगा।
5. वह गांवों को इस तरह संगठित करेगा कि वे अपनी खेती और गृह- उद्योगों द्धारा स्‍वंयपूर्ण और स्‍वावलम्‍बी बनें।
6. गांववालों को वह सफाई और तन्‍दुरूस्‍ती की तालीम देगा और उनकी बीमारी व रोगों को रोकने के लिए सारे उपाय काम में लायेगा।
7. हिन्‍दुस्‍तानी तालीमी संघ की नीति के मुताबित नई तालीम के आधार पर वह गांववालों की पैदा होने से मरने तक की सारी शिक्षा का प्रबंध करेगा।
8. जिनके नाम मतदाताओं की सरकारी यादी में न आ पायें हों, उनके नाम वह उसमें दर्ज करायेगा।
9. जिन्‍होंने मत देने के अधिकार के लिए जरूरी योग्‍यता हासिल न की हो, उन्‍हें वह योग्‍यता हासिल करने के लिए प्रोत्‍साहन देगा।
10. ऊपर बताये हुए और समय- समय पर बढा़ये हुए उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए, योग्‍य कर्त्‍तव्‍य- पालन करने की दृष्टि से, संघ के द्धारा तैयार किये गये नियमों के अनुसार वह स्‍वयं तालीम लेगा और योग्‍य बनेगा। संघ नीचे की स्‍वाधीन को मान्‍यता देगा

1. आखिल भारत चरखा- संघ
2. आखिल भारत ग्रामोंद्योग संघ
3. हिन्‍दुस्‍तानी तालीमी संघ
4. हरिजन-सेवक-संघ
5. गोसेवा- संघ

संघ अपना मकसद पूरा करने के लिए गासंववालों से और दूसरों से चंदा लेगा। गरीब लोगों का पैसा इकट्ठा करने पर खास जोर दिया जायेगा।
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गुरुवार, 24 जनवरी 2013

लेफ़्ट, राईट, सेंटर और हम...

मित्रों, लेफ़्ट राईट और सेंटर... तीनों के बारह बजे हुए हैं। सच कहा जाए तो जो कुछ यह सभी दल कर रहे हैं और जिस प्रकार की क्षवि प्रस्तुत कर रहे हैं वह दुर्भाग्यपूर्ण है। चाहे कुछ भी कहें लेकिन दोनों बडे दलों पर परिवार हावी हैं और रिमोट से चलायमान होना इनकी नियति है। ऐसे में देश आखिर करे तो क्या करे? 

कांग्रेस पर परिवार वादी होनें का आरोप लगता है और वह वाकई में हिन्दुस्तान की दुर्दशा के लिए बडे हद तक ज़िम्मेदार है, लेकिन विकल्प हीनता की स्थिति में आखिर जनता करे भी तो क्या करे.... वाजपयी जैसे व्यक्तित्व के कारण भाजपा सत्ता शिखर तक पहुंची लेकिन क्या वह स्थिति अभी भी है? भानुमती का पिटारा बन चुके एनडीए के सभी दल कैसी मिसाल प्रस्तुत कर रहे है? आखिर राजनीति किस रसातल में जा रही है? केन्द्रीय गॄह मंत्री जब आरएसएस और भाजपा को भगवा आतंकवाद से जोड देते हैं और खुद को हिन्दुत्व लाईन में गिननें वाली भाजपा उसका पुरज़ोर विरोध करनें के स्थान पर इस बात को भी तय नहीं कर पाती की उसके शिखर पर कौन बैठेगा? मेरे मन में खिन्नता है क्योंकी मैं स्वयं संघ से जुडा रहा हूं और संघ की पॄष्ठभूमि राष्ट्रवादी और अखंड भारत की पक्षधर रही है। संघ का क्या योगदान है यह किसी कांग्रेसी को बतानें की आवश्यकता नहीं है। यह बात स्वय़ं कांग्रेस भी मानेगी लेकिन यह उसकी वोट बैंक की राजनीति है जो दिग्गी राजा हाफ़िज़ सईद जैसे आतंकी को साहब और शिंदे साहब संघ को आतंकी घोषित कर देते हैं। यह राजनीति की सबसे निम्न स्तरीय तुलनाएं हैं। 

मित्रों जब कांग्रेस को अंग्रेजों से सत्ता मिली तो विरासत में कई टिप्स भी मिलें... मतलब हिन्दुस्तानियों पर राज करनें का मूल मंत्र "बांटों और राज किए जाओ" का उसनें आत्म सात किया। इसीलिए तो कभी एक साथ एक मंच पर आनें का और एकीकरण का कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। उसका नतीज़ा यह है की आज भी हम बंटे हुए हैं.... कोई उत्तर भारतीय है, कोई दक्षिण भारतीय... कोई हिन्दु है, मुसलमान है और सिख है, जैन हैं, इसाई और पारसी हैं... यह सभी वोटर हैं... मुसलमान रीझ जाएं उसके लिए कांग्रेसी किसी भी सीमा तक जानें के लिए तैयार हैं। समाजवादी पार्टी की हरकतें तो वाकई निन्दनीय हैं।

इस लिंक को देखिए:

समाजवादी पार्टी आरोपियों को छुडवानें के लिए इस हद तक गई? भला हो न्यायप्रणाली का जो आज भी सक्रिय है, अन्यथा न जानें क्या हो गया होता। अब संसद और न्यायिक व्यवस्था में टकराव की स्थिति बनती दीख रही है,  न्यायालयें अब उन मामलें में भी फ़ैसले देती दीख रहीं है जो पहले दीगर होती थीं.. इनके पीछे कारण हमारी पंगु होती राजनीतिक व्यवस्था हैं। मेरी आज तक समझ में नहीं आया की आखिर मुस्लिम भारत में केवल वोट बैंक क्यों हैं? आखिर उनके जीवन प्रणाली में कोई फ़ायदा आया आज तक उनके चुनाव से? फ़िर क्यों न वह जातिय समीकरण से उपर उठकर सकारात्मक रूप से अपनें विकास को देखे? आखिर दिक्कत क्या है... आखिर मुस्लिम वोटर को रिझानें के लिए हाफ़िज़ सईद को "साहब" से संबोधित करना कहां तक न्यायसंगत है।

मित्रों हिन्दुस्तान की आज़ादी से लेकर आज तक हमनें कभी इंसान नहीं गिने, राजनीति के इस रूप का हमनें कभी विरोध नहीं किया। हम स्वयं इसी गुणा-गणित में लगे रहे की किस क्षेत्र की जातिय स्थिति क्या है और वहां फ़लां फ़लां पार्टी नें इस जाति का उम्मीदवार खडा किया है तो क्या स्थिति बनेंगी... क्या हम उम्मीदवार की योग्यता को देखते हैं? यदि नहीं तो फ़िर हमें बोलनें का भी कोई अधिकार नहीं... मैं रोज कई लोगों से मिलता हूं और उनमें से लगभग सभी आजकल की स्थिति से दुखी हैं... सरकार को गाली देते हुए थकते नहीं... और न जानें कैसे कैसे विश्लेशण करते हैं... मैने केवल इतना पूछा की क्या आपका वोटिंग लिस्ट में नाम है... तो उत्तर देते हैं की वोटिंग देने में उनका विश्वास नहीं.. मित्रों यह एक विचित्र विडम्बना है क्योंकी भारत की राजनीति यदि आज इस स्तर तक पहुंची है तो फ़िर उसे उठाने के लिए वोटिंग प्रणाली में विश्वास आना ज़रूरी है। यदि शत-प्रतिशत चुनाव हो तो संसद का एक अलग ही रंग होगा... वाकई में यदि ऐसा हो तो फ़िर एक ही दिन में स्थिति उलट हो जाएगी। तिहाड के योग्य व्यक्ति जो आज संसद में पहुंचे हैं तो वह अपनें असल ठिकानें पहुंच जाएंगे... जातिगत राजनीति करनें वाले दल दुम दबा के निकल लेंगे। हाफ़िज़ सईद को "साहेब" कहनें वाले मूंह काला कराके किसी कोनें में दुबक के बैठे मिलेंगे।

विकास यात्रा में हम बाकी सभी देशों से पिछड गये हैं, चीन आज हमसे कहीं आगे है... हम आई-टी में आगे होनें का दम ज़रूर भरते हैं लेकिन उसमें भी हम टेक्नोलोजी के उपभोक्ता अधिक हैं.. हम कुछ नया बनानें में आगे नहीं... ठीक ऐसे ही हर क्षेत्र में देखिए.. दुनियां के हर कोनें में आपको हिन्दुस्तानी दिखेंगे लेकिन बाहर... यहां हम केवल बक बक करनें में आगे हैं।  सुरक्षा देखिए... हमारे हथियार विदेश से आते हैं... हम इस क्षेत्र में आत्म निर्भर कभी नहीं बन सकते। चीन ज़ब बैलेस्टिक मिसाईल का परीक्षण करता है तो हम मूंह बाए उसे भारत के ऊपर से हिन्द महासागर में जाते हुए देखते हैं और जब वह दुनियां की सबसे तेज़ रेल का उदघाटन करता है तो भी उसे वक्र दृष्टि दे देखते हैं.... आखिर भारत पीछे क्यों रह गया?

न कोई राजनीति बन्द होगी और न ही यह नेता हमारे लिए कुछ सोचनें वाले हैं। सरकार केवल चूसनें और माल दबाके खूब मौज मनानें के मूड में है.. उसे मालूम है की देश की जनता मूर्ख है और उसे ही वोट देगी... और विपक्ष का तो कहना ही क्या...  वह तो इस छलावे में है की सरकार से त्रस्त जनता उसे ही वोट देगी.... न कोई दिशा है और न कोई मार्ग दर्शन का माद्दा लेकिन सभी खुशमिज़ाजी में हैं।

मित्रों जाग जानें और जो न जागे उसे जगानें का समय है... अपनी ताकत को पहचानिए... वोटिंग लिस्ट में अपना नाम लिखाईए... और वोट डालनें के लिए हर सम्भव प्रयास कीजिए... आपका एक वोट किसी अपराधी को आपका प्रतिनिधि बनानें से रोकेगा। आपका प्रतिनिधित्व कोई पढा लिखा और योग्य व्यक्ति करेगा।

सोचिए ज़रा...

(इस पोस्ट को मैनें अपने टैब से लिखा है सो कोई वर्तनी त्रुटि के लिए क्षमा प्राथी हूं)

सोमवार, 21 जनवरी 2013

नेताजी... सत्य क्या है?

२३ जनवरी.... नेताजी का जन्मदिवस.... २३ जनवरी आनें को है और हमारे सामनें फ़िर से वही सवाल आने को हैं। पिछले दिनों अनुज धर जी की पुस्तक मॄत्यु से वापसी और बिगेस्ट कवर-अप को पढा और कई अन-सुलझे सवालों के उत्तर मिले। मैं अपनें ब्लाग के माध्यम से अनुज जी को धन्यवाद देना चाहूंगा की उन्होनें जिस बेबाकी से अपनी राय रखी है उसकी मिसालें बहुत कम हैं। सार्थक और सटीक लेखन अभी जीवित है और हमारी पत्रकारिता अभी भी बहुत मज़बूत है। 




एक प्रश्न मेरे दिमाग में हमेशा कौंधता रहता था की आखिर नेताजी से कांग्रेस इतना डरी हुई क्यों थी... आखिर नेहरू के समर्थन वाली कांग्रेस क्या वाकई हिन्दुस्तान का प्रतिनिधित्व करती थी? 

"१९४४ में अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर से बात करते हुए, महात्मा गाँधी ने नेताजी को देशभक्तों का देशभक्त कहा था। नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि अगर उस समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन न होता। स्वयं गाँधीजी ने इस बात को स्वीकार किया था।"

जय हिन्द का नारा देने वाले नेताजी वाकई में जन जन के नेता थे इसमें किसी तत्कालीन कांग्रेसी को भी शक न होगा। लेकिन उस समय भी कांग्रेस का रवैया वैसा ही था जैसा आज है... सत्ता प्राप्ति... कैसे भी... जब गांधी जी पूर्ण स्वराज के स्थान पर डोमीनियन नेशन की मांग पर समझौता करनें को तैयार थे और सत्ता प्राप्त करनें को आतुर थी। शहीदे-आज़म और नेताजी नें पूर्ण स्वराज के अतिरिक्त किसी और माडल पर बात करनें से इनकार किया। मजबूरन कांग्रेस को झुकना पडा और उसके बाद पूर्ण स्वराज की मांग को आगे अंग्रेजों के साथ टेबल पर रखा गया। लेकिन शहीदे आज़म भगत सिंह की फ़ांसी पर गांधी जी और अंग्रेजो के बीच हुई डील नें नेताजी को झकझोड दिया। भगत सिंह को न बचा पाने पर, नेताजी गाँधीजी और कांग्रेस के तरीकों से बहुत नाराज हो गए। 

१९३८ की फ़रवरी में नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष चुनें गये... वह कांग्रेस के सबसे कम आयू के अध्यक्ष बनें। 


अपनें भाषण में उन्होनें सहिष्णुता, सहनशीलता और अहिंसक आन्दोलन पर जोर दिया और साथ ही साथ यह भी जोडा की कोई भी शान्ति प्रधान देश भी बिना सैन्य शक्ति के अपनी शान्ति व्यवस्था बनाएं नहीं रख सकता। नेताजी के काम करनें के तरीके से महात्मा गान्धी जी खुश नहीं थे और 1938 में गाँधीजी ने कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू को चुना तो था, मगर गाँधीजी को सुभाषबाबू की कार्यपद्धती पसंद नहीं आयी। 1939 में जब नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का वक्त आया, तब सुभाषबाबू चाहते थे कि कोई ऐसी व्यक्ती अध्यक्ष बन जाए, जो इस मामले में किसी दबाव के सामने न झुके। ऐसी कोई दुसरी व्यक्ती सामने न आने पर, सुभाषबाबू ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष बने रहना चाहा। लेकिन गाँधीजी अब उन्हे अध्यक्षपद से हटाना चाहते थे। गाँधीजी ने अध्यक्षपद के लिए पट्टाभी सितारमैय्या को चुना। कविवर्य रविंद्रनाथ ठाकूर ने गाँधीजी को खत लिखकर सुभाषबाबू को ही अध्यक्ष बनाने की विनंती की। प्रफुल्लचंद्र राय और मेघनाद सहा जैसे वैज्ञानिक भी सुभाषबाबू को फिर से अध्यक्ष के रूप में देखना चाहतें थे। लेकिन गाँधीजी ने इस मामले में किसी की बात नहीं मानी। कोई समझोता न हो पाने पर, बहुत सालो के बाद, कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए चुनाव लडा गया। सब समझते थे कि जब महात्मा गाँधी ने पट्टाभी सितारमैय्या का साथ दिया हैं, तब वे चुनाव आसानी से जीत जाएंगे। लेकिन वास्तव में, सुभाषबाबू को चुनाव में 1580 मत मिल गए और पट्टाभी सितारमैय्या को 1377 मत मिलें। गाँधीजी के विरोध के बावजूद सुभाषबाबू 203 मतों से यह चुनाव जीत गए।

जब अंग्रेजो ने दूसरे विश्व युद्ध में हिन्दुस्तानी फ़ौजियों के समर्थन के लिए गांधी जी से बात की तो उस समय नेताजी ऐसी किसी भी बात के उलट हिन्दुस्तानियों को अंग्रेजों के खिलाफ़ एक नया मोर्चा खोलनें के लिए और हिन्दुस्तान की आज़ादी के संघर्ष करनें के लिए कृत संकल्प कर चुके थे।   

जापान के पतन के बाद नेताजी के साथ क्या हुआ... सच कहें तो १९४५ की उस घटना की कभी भारत सरकार द्वारा कोई जांच कराई ही नहीं गई । शायद नेताजी को लेकर नेहरू जी और अंग्रेजों के रवैये के कारण ऐसा हुआ होगा। वैसे यह कहना गलत नहीं होगा की नेताजी के तरीके से आन्दोलन के ज़रिए मिलनें वाली आज़ादी एक सच्ची आज़ादी होती। अभी तो है वह हमारे देश वासियों के लिए सत्ता हस्तांरतरण प्रक्रिया मात्र था।  नेताजी होते तो विभाजन न होता, देश आज भी एक संघ होता। आईए देश के विभाजन के समय के कुछ तथ्यों पर गौर फ़रमाएं। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७, जिसके तहत अंग्रेजों नें सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को एक अमली जामा पहनाया । भारत और पाकिस्तान दो टुकडों में बंटनें को तैयार थे। अंग्रेजों का षडयंत्र कामयाब हो चुका था। 

कुछ लोगों के व्यक्तिगत स्वार्थ नें देश के टुकडे करा दिए थे, सत्ता हस्तांतरित हुई... और हमें सदैव लडनें और मरनें के लिए एक दुश्मन मिल गया... जी पाकिस्तान के रूप में। यह कांग्रेस और मुस्लिम लीग पर अंग्रेजों की सबसे शातिर बाज़ी थी। जिसमें विरासत के रूप में हमें पाकिस्तान से दुश्मनी मिली। 

अब आईए नेताजी के दर्शन और नेताजी के प्लान आफ़ एक्शन पर नज़र डाली जाए... नेताजी नें आज़ाद हिन्द फ़ौज को सम्बोधित करते हुए जो कहा वह ज्यों का त्यों पढिए... 
“भारत की आज़ादी की सेना के सैनिकों!...  आज का दिन मेरे जीवन का सबसे गर्व का दिन है। प्रसन्न नियति ने मुझे विश्व के सामने यह घोषणा करने का सुअवसर और सम्मान प्रदान किया है कि भारत की आज़ादी की सेना बन चुकी है। यह सेना आज सिंगापुर की युद्धभूमि पर- जो कि कभी ब्रिटिश साम्राज्य का गढ़ हुआ करता था- तैयार खड़ी है।...
“एक समय लोग सोचते थे कि जिस साम्राज्य में सूर्य नहीं डूबता, वह सदा कायम रहेगा। ऐसी किसी सोच से मैं कभी विचलित नहीं हुआ। इतिहास ने मुझे सिखाया है कि हर साम्राज्य का निश्चित रुप से पतन और ध्वंस होता है। और फिर, मैंने अपनी आँखों से उन शहरों और किलों को देखा है, जो गुजरे जमाने के साम्राज्यों के गढ़ हुआ करते थे, मगर उन्हीं के कब्र बन गये। आज ब्रिटिश साम्राज्य की इस कब्र पर खड़े होकर एक बच्चा भी यह समझ सकता है कि सर्वशक्तिमान ब्रिटिश साम्राज्य अब एक बीती हुई बात है।...  
“1939 में जब फ्राँस ने जर्मनी पर आक्रमण किया, तब अभियान शुरु करते वक्त जर्मन सैनिकों के होंठों से एक ही ललकार निकली- “चलो पेरिस! चलो पेरिस!” जब बहादूर निप्पोन के सैनिकों ने दिसम्बर 1941 में कदम बढ़ाये, तब जो ललकार उनके होंठों से निकली, वह थी- “चलो सिंगापुर! चलो सिंगापुर!” साथियों! मेरे सैनिकों! आईए, हम अपनी ललकार बनायें- “चलो दिल्ली! चलो दिल्ली!”...
“मैं नहीं जानता आज़ादी की इस लड़ाई में हममें से कौन-कौन जीवित बचेगा। लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि अन्त में हमलोग जीतेंगे और हमारा काम तबतक खत्म नहीं होता, जब तक कि हमारे जीवित बचे नायक ब्रिटिश साम्राज्यवाद की दूसरी कब्रगाह- पुरानी दिल्ली के लालकिला में विजय परेड नहीं कर लेते।...
“अपने सम्पूर्ण सामाजिक जीवन में मैंने यही अनुभव किया है कि यूँ तो भारत आज़ादी पाने के लिए हर प्रकार से हकदार है, मगर एक चीज की कमी रह जाती है, और वह है- अपनी एक आज़ादी की सेना। अमेरिका के जॉर्ज वाशिंगटन इसलिए संघर्ष कर सके और आज़ादी पा सके, क्योंकि उनके पास एक सेना थी। गैरीबाल्डी इटली को आज़ाद करा सके, क्योंकि उनके पीछे हथियारबन्द स्वयंसेवक थे। यह आपके लिए अवसर और सम्मान की बात है कि आपलोगों ने सबसे पहले आगे बढ़कर भारत की राष्ट्रीय सेना का गठन किया। ऐसा करके आपलोगों ने आज़ादी के रास्ते की आखिरी बाधा को दूर कर दिया है। आपको प्रसन्न और गर्वित होना चाहिए कि आप ऐसे महान कार्य में अग्रणी, हरावल बने हैं।...
 “जैसा कि मैंने प्रारम्भ में कहा, आज का दिन मेरे जीवन का सबसे गर्व का दिन है। गुलाम लोगों के लिए इससे बड़े गर्व, इससे ऊँचे सम्मान की बात और क्या हो सकती है कि वह आज़ादी की सेना का पहला सिपाही बने। मगर इस सम्मान के साथ बड़ी जिम्मेदारियाँ भी उसी अनुपात में जुड़ी हुई हैं और मुझे इसका गहराई से अहसास है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि अँधेरे और प्रकाश में, दुःख और खुशी में, कष्ट और विजय में मैं आपके साथ रहूँगा। आज इस वक्त मैं आपको कुछ नहीं दे सकता सिवाय भूख, प्यास, कष्ट, जबरन कूच और मौत के। लेकिन अगर आप जीवन और मृत्यु में मेरा अनुसरण करते हैं, जैसाकि मुझे यकीन है आप करेंगे, मैं आपको विजय और आज़ादी की ओर ले चलूँगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश को आज़ाद देखने के लिए हममें से कौन जीवित बचता है। इतना काफी है कि भारत आज़ाद हो और हम उसे आज़ाद करने के लिए अपना सबकुछ दे दें। ईश्वर हमारी सेना को आशीर्वाद दे और होनेवाली लड़ाई में हमें विजयी बनाये।...
“इन्क्लाब ज़िन्दाबाद!...
“आज़ाद हिन्द ज़िन्दाबाद!”
 


जून 1943 में टोकियो रेडियो से सुभाष बोस ने घोषणा की कि अंग्रेजों से यह आशा करना व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे। हमें स्वयं भारत के भीतर व बाहर से भी स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करना होगा। 21 अक्टूबर 1943 के सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपाइन, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी। 

नेताजी ने देश वासियों को टोकियो से सम्बोधित किया

मित्रों, जापान के पतन के साथ आज़ाद हिन्द फ़ौज का भी पतन हो गया। आज़ादी पानें के लिए नेताजी का यह प्रयास असफ़ल रहा क्योंकि कांग्रेस और गांधी का कोई समर्थन न मिला। देश आज़ाद हुआ और हम दो देश बन गये... किसी विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण।

आज हम समस्याओं से ग्रसित हैं, भ्रष्टाचार से पीडित हैं.. और न जानें कैसे कैसे नासूर आज भी नाक में दम किए हुए हैं। इनका प्रमुख कारण कांग्रेस की विचारधारा और कुछ न करनें के निर्णय पर अडे रहना और राजनीतिक नफ़े नुकसान का आंकलन कर लेने के बाद ही कोई कार्यवाही करना। यह सब कांग्रेस को अंग्रेजों से विरासत में मिला हुआ ज्ञान है। कांग्रेस आज अंग्रेजों की तरह अडियल रुख अपनाती है और देश की जनता को हर विरोध के लिए सडक पर आना पडता है। यह अपनें आप में एक त्रासदी है जब हमारे संसद में आधे से अधिक लोग किसी न किसी मामले में आरोपी हैं और उनके खिलाफ़ मामलें लम्बित हैं।

नेताजी जिस स्वराज की कल्पना करते थे उसमें उनका मानना था की भारत को आज़ादी के बाद एक अच्छे तानाशाह की ज़रूरत होगी जो भारत के ढांचे में नीतिगत बदलाव करे और उसे मज़बूत करे। उनकी यह सोच आपको किसी साम्यवादी की तरह लगेगी परन्तु भारत और चीन के आज के अन्तर को देखिए आप शायद उनकी इस सोच को भी समझ पाएंगे। हम लोकतंत्र बनें, लेकिन यह लोक तंत्र भीड तंत्र बन गया। जातिगत जनगणना, अस्पर्शयता, छुआ-छूत जैसी समस्याओं से हम आज भी पीडित हैं और शायद हमेशा रहेंगे। ग्राम विकास और आत्मनिर्भरता के लिए नेताजी के माडल पर शायद कभी कोई विचार हुआ ही नहीं। नेहरू हमेशा शहरी करण में विश्वास करते थे और उनके इस माडल में ग्राम अपना महत्व खोते गये। नतीज़तन हमारा विकास शहरों में होता गया और ग्राम विकास यात्रा में पिछडते गये। इसकी परिणिति देखिए की आज कॄषि प्रधान भारत देश की कुल विकास दर में खेती का योगदान केवल सोलह प्रतिशत हैं।  

लेकिन सबसे बडा यक्ष प्रश्न अभी भी वहीं का वहीं है। आखिर नेताजी के साथ हुई सन पैतालीस की घटना में वाकई नेताजी की मॄत्यू हो चुकी थी? या फ़िर कोई ऐसा रहस्य है जो कभी खुला ही नहीं। हमनें और आपनें जो इतिहास पढा वह वही था जो हमारे प्रतिनिधियों नें हम पर थोप दिया।

नेताजी की मृत्यू को दर्शानें वाली जापान सरकार के इस नोट को देखिए



शाहनवाज़ समिति, खोसला आयोग, मुखर्जी आयोग तीन बार जांच कराई जा चुकी है और हर बार तथ्यों को नकारा जाता रहा है। गुमनामी बाबा या भगवान जी पर भारत सरकार कभी कोई स्पष्ट वक्तव्य देती नहीं दिखी। हर बार ढुल मुल तरीके से होनें वाली जांच किसी न किसी राजनीतिक निर्देश से प्रभावित दिखी। मित्रों नेताजी का सच क्या था... आप अनुज धर की पुस्तक मॄत्यू से वापसी और बिगेस्ट कवर अप को पढकर अपनें कुछ अन्य प्रश्नों का हल पा सकते हैं। यकीनन मैनें जबसे इन पुस्तकों को पढा है आन्दोलित भी हूं और आक्रोशित भी। आखिर सच क्या है?  

कुछ चित्रों पर नज़र डालिए... यकीनी तौर पर १९४५ के दावे पर शक की पूरी सूई घुमती है।







क्यों नेताजी को भारत रत्न दिया जाता है और साथ में मरणोपरान्त जोड दिया जाता है। बाद में सुप्रीम कोर्ट के दखल से उसको सुधारा जाता है.. लेकिन सच्चाई बयान करनें से हर कोई बचता है। मित्रों यह स्वतंत्र भारत की सबसे बडी कहानी है जिसके बारे में आज तक कभी कोई कांग्रेसी सरकार नें कोई बयान नहीं दिए... कोई प्रयास नहीं किए गए जिससे देशवासियों को असलियत से रूबरू कराया जाता। आखिर क्यों....

-देव