शनिवार, 26 दिसंबर 2015
भ्रष्ट होता न्यायतंत्र...
मंगलवार, 22 दिसंबर 2015
हवाबाज़ी की राजनीति...
सोमवार, 14 दिसंबर 2015
।।जय लोकतंत्र।।
शुक्रवार, 27 नवंबर 2015
आयातित शब्दावली और दक्षिणपंथ
बुधवार, 25 नवंबर 2015
थोड़ी सी सच्चाई...
मंगलवार, 17 नवंबर 2015
कांग्रेस का ज़माना ही अच्छा था
रविवार, 8 नवंबर 2015
जंगलराज मुबारक
गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015
शिक्षक का कांग्रेसी हो जाना
गुरुवार, 13 अगस्त 2015
कौन है आदिल शहरयार?
आदिल शहरयार!! कांग्रेसियों के लिए एक काला अध्याय... किसी बॉलीवुड की मसाला फ़िल्म सरीखी कहानी है यह। क्या आप इनकी हकीकत जानते हैं? यह घंडी परिवार का एक अहम और काला अध्याय है। मैं राजनीति में निजी ज़िन्दगी को लाने के खिलाफ हूँ लेकिन यदि विपक्ष सुषमा स्वराज सरीखी नेता पर पारिवारिक लाभ लेने जैसा आरोप लगाता है तो फिर इनकी भी हकीकत सामने लाना एक तरह से जरूरी हो जाता है। कल सुषमा स्वराज ने आदिल शहरयार का भूत सबके सामने लाकर बहुत अच्छा काम किया, कांग्रेस उस क्षण को कोसेगी जब उसने सुषमा स्वराज पर आरोप लगाकर उन्हें बयान देने पर मजबूर कर दिया।
अब सवाल यह है कि यह शख्स कौन है? मोहम्मद युनुस और आदिल शहरयार की नेहरू परिवार से क्या दोस्ती थी? आइए इतिहास के पन्नें टटोलते हैं.... “The Nehru Dynasty” (ISBN 10:8186092005) किताब में प्रोफ़ेसर जे. एन. राव कहते हैं कि इंदिरा गाँधी (श्रीमती फिरोज खान) का जो दूसरा बेटा था, संजय गाँधी वो फिरोज खान कि औलाद नहीं था! बल्कि वो एक दुसरे महानुभाव मोहम्मद युनुस के साथ अवैध संबंधों के चलते हुए था! दिलचस्प बात ये है कि संजय गाँधी की शादी मेनका के साथ मोहम्मद युनुस के ही घर पर दिल्ली में हुई थी! जाहिर तौर पर युनुस इस शादी से ज्यादा खुश नहीं था क्यूंकि वो संजय कि शादी अपनी पसंद की एक मुस्लिम लड़की से करवाना चाहता था! जब संजय गाँधी की प्लेन दुर्घटना में मौत हुई तब मोहम्मद युनुस ही सबसे ज्यादा रोया था! युनुस की लिखी एक किताब “Persons, Passions & Politics” (ISBN-10: 0706910176) से पता चलता है कि बचपन में संजय गाँधी का मुस्लिम रीती रिवाज के अनुसार खतना किया गया था"
संजय कभी अपनी माँ की भी नहीं सुनता था, वह एक अपनी अलग राजशाही चलाता था उसकी हरकतें माँ को और तत्कालीन सरकार को नागवार गुज़रती थी। एक दावा यह भी है कि इंदिरा ने खुद अपने बेटे की मृत्यु की साज़िश रची, हालांकि मैं उस पर विश्वास नहीं करता क्योंकि मेरा मानना है कि एक माँ कभी अपने बेटे के लिए ऐसा नहीं करेगी।
बहरहाल जब अमेरिकी जांच एजेंसी ने आदिल शहरयार को पकड़ा तब मोहम्मद युनुस ने राजीव गांधी को मजबूर कर दिया कि वह उसके बेटे को छुड़वायें वरना वह नेहरू वंश की हकीकत सबके सामने ला देंगे। यही है वह काला अध्याय जिसकी चर्चा कल सुषमा स्वराज ने की। इसके संबंधी दस्तावेज नष्ट किये जा चुके होंगे और इन्होंने सबूत मिटाने की हर संभव कोशिस की होगी। आज सुषमा स्वराज ने इस भूत को बोतल से निकालकर सबके सामने ला खड़ा किया है, विपक्ष अपनी भमिका को लेकर सवालों के घेरे में है। ललितगेट में सुषमा को घेरने की जगह वह खुद घिर चुकी है। यह उसी के पाले हुए मुद्दे हैं तो उसे हथियार डाल देने चाहिए और चुपचाप से संसद चलने देना चाहिए। जनता के पैसे को बरबाद करने की जगह चुपचाप काम करो वर्ना अगले चुनाव में चौवालीस के चार हो जाओगे।
संभल जाओ रे कांग्रेसियों!!
गुरुवार, 6 अगस्त 2015
अगस्त, आतंक और आज के हमारे मूल्य
अगस्त का महीना... हिरोशिमा और नागासाकी की तबाही को याद करने का महीना है। विध्वंस की पराकाष्ठा और मानवीय संवेदना के नाश को याद करने का महीना है। अमेरिका के पर्ल-हारबर में हुई जापानी कार्यवाही के बाद द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका को परोक्ष रूप से उतरना पड़ा (इसके पहले यह सिर्फ आग में चिंगारी देकर दूर से मजे ले रहे थे)। शक्तिशाली अमेरिका के कूदने के बाद जापान और उसके मित्र देश कमज़ोर पड़ गए और इस विध्वंसकारी युद्ध की पूर्णाहुति परमाणु हमले और लाखों लोगों की आहुति से हुई। आज जब परमाणु शक्ति से संपन्न अनेकानेक देश अपनी शक्ति के मद में चूर हैं वैसे में विश्व को बचाए रखने और इसका संतुलन बनाए रखने में देशों को महती भूमिका निभानी होगी।
अमेरिका सरीखे देश सदैव अपने स्वार्थ के लिए क्षद्म लड़ाइयां करते आये हैं। शीत युध्द का सहारा लेकर और वामपंथी शक्तियों को कमज़ोर करने के लिए अमेरिका ने ही इस्लामिक आतंक की पौध को तैयार की थी। वामपंथी शक्तियाँ (रूस और चीन) सदा से अमेरिका के लिए चुनौती बने रहे और इस इस्लामिक गठबंधन ने अमेरिका को शीत युद्ध में विजय दिलाने में महती भूमिका निभाई। अब यदि आप भूत पालेंगे तो वह आपको ही खायेगा और यही अमेरिका के साथ भी हुआ है। आज अमेरिका संभल चुका है और उसको अपनी इस गलती की बहुत बड़ी सजा मिल चुकी है। इसलिए आतंकवाद के खिलाफ विश्वव्यापक कार्यवाही में अमेरिका बहुत हद तक सम्मिलित है और उसे और देशों का समर्थन चाहिए। इस्लामिक आतंक आज विश्व के लिए आज एक बड़ा खतरा है और लगभग सभी देश इससे चिंतित हैं। आज जब आईएस जैसा संगठन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अपनी नापाक हरकतें फैलाने की बात करता है और उसे भारत से ही देशद्रोहियों का समर्थन मिलता है तब मुझे बहुत घृणा होती है। भारत में आज भी जयचन्दों की फ़ौज बैठी हुई है और यह देशद्रोही लोग हर प्रकार से निजी स्वार्थ के लिए देशहित से समझौते कर सकते हैं। वैसे अभी सत्य असत्य और धर्म अधर्म पर भारी है इसलिए हमारा अस्तित्व बना हुआ है।
आज प्रत्येक भारतीय (चाहे उसकी कोई भी जाति हो), समझे अपनी संस्कृति को। धर्म और आध्यात्म, योग और परमात्म हमारा सत्य है। विश्व बंधुत्व और मानवमात्र की सेवा हमारा सत्य है। भगवान राम, कृष्ण और विवेकानंद का देश है भाई। भ्रमित युवा, भ्रमित शिक्षा, खुले और उद्विग्न समाज में फैले कुचक्र मानवीय मूल्यों को कम कर रहे हैं। अब समय आ गया है जब सत्य को समझा जाए और अपने मूल्यों की ओर चला जाए। अब भी न चेते तो विनाश निश्चित है।
शुक्रवार, 31 जुलाई 2015
बुद्धिजीवी मने क्या?
आज एक प्रमुख अखबार ने बुद्धिजीवी शब्द को लेकर काफी तल्ख़ टिप्पणी की है। कह रहा है मानो यह गाली हो चला है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उनकी इस खीझ पर हंसु या रोऊँ। भाई सेकुलर और बुद्धिजीवी शब्द की व्याख्याएं खराब करने में लश्करे-मीडिया ही तो ज़िम्मेदार है। यह लोग खबर को तोड़ मरोड़ कर, खरीद फरोख्त कर बिके हुए लोग हैं और इनके जवाब में अगर शोशल मीडिया है तो इन प्रेश्याओ का अनर्गल प्रलाप कौन झेले। राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोप्परि है सो ऐसे में आप मेमन को हीरो क्यों बना रहे हैं? उसको कवरेज आप ही दे रहे हैं न? कितनी बार और दुनिया के किसी और देश में क्या आतंकवादी की सजा माफ़ी के लिए रात में दो बजे सर्वोच्च न्यायालय कभी भी बैठा है? आपका सौभाग्य यह है कि आप भारत जैसे देश में हैं जहाँ आपको आतंकवादी के भी मानवाधिकार की बात कहने की आज़ादी है। आप आसानी से पुलिस, सरकार, सोशल मीडिया, हिन्दू संगठनों को गाली दे सकते हैं क्योंकि यह तो सुनने के आदी हो चुके हैं। वैसे भी मुसलमान वोट बैंक है न और इन भटके हुए नौजवानों के लिए देश हित जैसी कोई बात नहीं है।
प्रेस भारत की बिकी हुई है। यह एक बार भी राष्ट्रवाद की बात नहीं करते, देशहित सबसे ऊपर है, धर्म उसके बाद तो आतंकवादी को सजा देने में उसका मजहब कहाँ से आ गया? यह ओवैसी जैसा आदमी और ऐसी कमीनी प्रेश्याऐं आखिर कौन से देश का हित साध रही हैं? कौन है इनके पीछे? आखिर इन वकीलों को पैसे कौन दे रहा है? इन प्रेश्याओँ को कौन पाल रहा है?
सुरेश जी की ब्लॉग पोस्ट से सहमत हूँ की चार लिस्ट निकाली जाए
- मोदी को वीज़ा न देने की चिठ्ठी लिखने वाले
- अफज़ल गुरु की फांसी का विरोध करने वाले
- कसाब की फांसी का विरोध करने वाले
- मेमन की फांसी का विरोध करने वाले
और इस लिस्ट में जो भी नाम कॉमन हो, पता लगाया जाए उसकी संदिग्ध गतिविधियों का। यह निःसंदेह बड़े देशद्रोह की साज़िश का खुलासा करेगा।
और हाँ प्रेश्याओँ अगर शर्म है तो डूब मरो चुल्लू भर पानी में.... जो पुलिस वाला उस आतंकवादी से लड़ते हुए मर गया उसके घर वालों की आँख में आँख डाल कर बोलो.... मुम्बई हादसे में मरे लोगों के परिवार से मिले हो कभी? जानते हो हवलदार तुकाराम काम्बले कौन था?
।।धिक्कार।। धिक्कार।।